MP: रायफल-पिस्टल नहीं, इस शख्स को मिला 'धारदार हथियार' रखने का लाइसेंस, 8 साल तक लड़ी कानूनी लड़ाई

सुभाष सिंह तोमर ने दावा किया, ''देश में पहली बार मुझे ऐसा शस्त्र लाइसेंस मिला है, जिसके तहत मुझे तय क्षेत्र में अपने साथ धारदार हथियार लेकर चलने की अनुमति दी गई है.''

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(प्रतीकात्मक तस्वीर) (प्रतीकात्मक तस्वीर)

aajtak.in

  • इंदौर ,
  • 06 मई 2025,
  • अपडेटेड 3:29 PM IST

MP News: इंदौर के एक तकनीकी शिक्षा प्रशिक्षक ने 8 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जिला प्रशासन से धारदार हथियार का लाइसेंस लेने में कामयाबी हासिल की है. आमतौर पर लोग बंदूक सरीखे आग्नेय अस्त्रों के लाइसेंस के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन धारदार हथियार रखने के लिए लाइसेंस का अपनी तरह का यह पहला मामला है.

जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया कि स्थानीय निवासी सुभाष सिंह तोमर (57) को तीन साल तक धारदार हथियार रखने का लाइसेंस प्रदान किया गया है. उन्होंने लाइसेंस के ब्यौरे के हवाले से बताया कि तोमर 8अप्रैल 2028 तक इंदौर जिले की सीमा में अपने पास तलवार, खुखरी और कटार में से कोई एक धारदार हथियार रख सकेंगे.

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तोमर ने एक न्यूज एजेंसी को बताया कि यह लाइसेंस हासिल करने के लिए उन्हें लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, जिसकी शुरुआत 2017 में उस समय हुई, जब उन्होंने शस्त्र अधिनियम 1959 का अध्ययन करके सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत सरकारी दस्तावेज और कानूनी ब्यौरा जुटाना आरंभ किया.

सुभाष सिंह तोमर ने दावा किया, ''देश में पहली बार मुझे ऐसा शस्त्र लाइसेंस मिला है, जिसके तहत मुझे तय क्षेत्र में अपने साथ धारदार हथियार लेकर चलने की अनुमति दी गई है.''

तोमर पेशे से तकनीकी शिक्षा प्रशिक्षक हैं और उनका कहना है कि यह लाइसेंस हासिल करने के लिए उनके संघर्ष का मकसद अपने साथ धारदार हथियार लेकर चलना नहीं था.

उन्होंने कहा, ''मुझे पता चला कि पश्चिमी मध्यप्रदेश में आदिवासियों के खिलाफ धारदार हथियार रखने के आरोप में शस्त्र अधिनियम के तहत बड़ी तादाद में आपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं, जबकि वे ऐसे हथियारों का इस्तेमाल खेती-किसानी और घास काटने में भी करते हैं.''

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तोमर ने कहा, ''मैं इन आदिवासियों को अनुचित कानूनी कार्रवाई से बचाने के लिए जागरूकता फैलाना चाहता हूं. मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि धारदार हथियार का लाइसेंस भी कानूनन लिया जा सकता है.''

तोमर के मुताबिक शुरुआत में जिला प्रशासन ने धारदार हथियार के लाइसेंस के लिए उनकी अर्जी बिना कोई तार्किक कारण बताए खारिज कर दी थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर करके कानूनी लड़ाई जारी रखने का फैसला किया.

उन्होंने कहा, ''एक वक्त वह भी था, जब कुछ सरकारी अफसर यह कहकर मुझ पर हंसते थे कि भला धारदार हथियार का भी कोई लाइसेंस जारी किया जाता है?''

अतिरिक्त जिलाधिकारी (ADM) रोशन राय ने बताया कि तोमर को हाई कोर्ट के निर्देश पर धारदार हथियार का लाइसेंस जारी किया गया है.

यह पूछे जाने पर कि क्या इस तरह का लाइसेंस देश में पहली बार जारी किया गया है, एडीएम ने जवाब दिया, ''फिलहाल मुझे जानकारी नहीं है कि देश के अन्य हिस्सों में ऐसा कोई लाइसेंस जारी किया गया है या नहीं, लेकिन इंदौर में इससे पहले दो-तीन लोगों को इस तरह का शस्त्र लाइसेंस जारी किया गया है.''

एडीएम ने हालांकि इसका विशिष्ट ब्योरा नहीं दिया कि इंदौर में अन्य लोगों को किस तरह के धारदार हथियार का लाइसेंस दिया गया था और इसकी क्या शर्तें थीं. हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने इस साल 27 फरवरी को जिला प्रशासन को निर्देश दिया था कि वह इंदौर संभाग के आयुक्त (राजस्व) के 12 सितंबर 2024 के आदेश का पालन करते हुए तीन हफ्ते के भीतर तोमर को धारदार हथियार का लाइसेंस जारी करे.

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तोमर के वकील विशाल श्रीवास्तव ने बताया कि हाई कोर्ट के इस निर्देश का पालन नहीं होने पर तकनीकी शिक्षा प्रशिक्षक ने अदालत में अवमानना याचिका दायर की, लेकिन इस पर सुनवाई होने से पहले ही प्रशासन ने उनके मुवक्किल के नाम धारदार हथियार का लाइसेंस जारी कर दिया. उन्होंने कहा,'' तोमर के नाम धारदार हथियार का लाइसेंस जारी किया जाना कानूनी जगत का एक ऐतिहासिक मामला है.''

वकील श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि देश के आम जन मानस में धारदार हथियारों के लाइसेंस की प्रक्रिया को लेकर जागरूकता का अभाव है और सरकार को स्पष्ट नीति घोषित करके यह कमी दूर करनी चाहिए.

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