प्रेमिका और कृष्ण-राम... साहित्य आजतक में सजा कवि सम्मेलन का मंच, सुनाई गईं एक से बढ़कर एक कविताएं

Sahitya Aaj Tak 2023: दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में आयोजित शब्दों-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आज तीसरा दिन है. सेशन 'कवि सम्मेलन' में देश के महान कवियों ने शिरकत की और अपनी रचनाओं से अनोखा समां बांध दिया.

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साहित्य आजतक में हुआ कवि सम्मेलन (तस्वीर- आजतक) साहित्य आजतक में हुआ कवि सम्मेलन (तस्वीर- आजतक)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:11 PM IST

Sahitya Aaj Tak 2023: देश की राजधानी दिल्ली में 24 नवंबर से सुरों और अल्फाज़ों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' शुरू हो चुका है. आज इसका तीसरा दिन है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में देश भर से जाने माने लेखक, साहित्यकार, कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के इस सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' के तीसरे दिन 'कवि सम्मेलन' सेशन में कवियों-शायरों ने अपनी रचनाओं से लोगों को मुखातिब करवाया. इस सेशन में कवि विष्णु सक्सेना, कवि सर्वेश अस्थाना, कवयित्री अंकिता सिंह, कवि नीलोत्पल मृणाल, कवि और IAS अधिकारी नीतीश्वर कुमार,  कवि और कॉमेडियन दिनेश बावरा, कवि चंदन राय, कवि मनु वैशाली और कवि पंकज शर्मा शामिल हुए. 

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सबसे पहले मंच पर मनु वैशाली आईं. वह मध्य प्रदेश के शिवपुरी से हैं. उनकी विधा गीत और पारंपरिक छंद हैं. उन्होंने अपनी रचनाएं सुनाकर लोगों की खूब वाहवाही लूटी.

उन्हें मेरठ में हिंदी साहित्य अकादमी ने यूथ आइकन अवॉर्ड से सम्मानित किया है. उन्होंने पढ़ा-  

नैनन को मीच-मीच नैन कोर खीच-खींच, 
मोटी कजरारी कारी धार करे मोहिनी,
मुस्काये मंद-मंद मन में ही मीत संग 
मीठी-मीठी मौन मनुहार करे मोहिनी,
देख हाल चाल-ढाल आइना करै कमाल, 
जाने कौन बात पे विचार करे मोहिनी,
बिसराय सुध-बुध खोई खड़ी ऐसन कि,
करके श्रृंगार बार-बार करे मोहिनी...

अपनी इस कविता के बाद उन्होंने 'गांव की एक शाम' कविता सुनाई. इसमें उन्होंने गांव की शाम का पूरा वर्णन किया. उन्होंने कहा कि गांव में पड़ोसी नहीं बल्कि चाची और भाभी होती हैं. इसे भी उन्होंने अपने गीत के माध्यम से बताया. उन्होंने गणित के विद्यार्थियों के लिए गाया-

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उलझे उलझे हैं, सुलझा लो
सिद्ध सरल हो जाएंगे
पूर्णफलित या समाकलित या फिर अवकल हो जाएंगे
सिर्फ निरंतरता रखना तुम और
अंक गणित के प्रश्नों जैसे हैं, हम हल हो जाएंगे.

कवि चंदन राय (तस्वीर- आजतक)

उनके बाद मंच पर कवि चंदन राय आए. उन्होंने पढ़ा-

रात भर तारीफ़ मैंने की तुम्हारे रूप की
चांद इतना जल गया सुनकर कि सूरज हो गया

उन्होंने आगे कहा-

मोहब्बत में है कितने गम, 
ये बतला नहीं सकते, 
ये होती उसी से है, 
जिसे हम पा नहीं सकते...

उन्होंने गाकर बताया कि अगर उनके जैसा कवि प्रेम में धोखा खाता है, तो वो कैसे बयां करेगा-

कि कोई हम सा ना दिवाना होगा
कोई हम सा ना दिवाना होगा
फिर तुम्हें लौटके आना होगा
कोई हम सा ना दिवाना होगा
फिर तुम्हें लौटके आना होगा
और जिस नए की तलाश है तुमको
जिस नए की तलाश है तुमको
वो भी इक रोज़ पुराना होगा
जिस नए की तलाश है तुमको
वो भी इक रोज़ पुराना होगा
फिर तुम्हें लौटके आना होगा

अपनी परफॉर्मेंस में उन्होंने आगे जिंदगियों की शिकायतों पर कविता सुनाई. चंदन राय ने गाया-

या तो हंसने दे
या तो रोने दे
बोझ दिल को 
बहुत न ढोने दे
और ज़िंदगी इस तरह से मत उलझा
तू किसी एक का तो होने दे

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अंत में उन्होंने कहा-

मुश्किलों से गुजरना पड़ता है
जो न करना चाहें वो करना पड़ता है
खूबसूरत मुझे कहा मत कर
रोज़ सजना संवरना पड़ता है.

पंकज शर्मा (तस्वीर- आजतक)

इसके बाद मंच पर उत्तर प्रदेश के बंदायू से पंकज शर्मा आए. उन्होंने कई साहित्यिक पुरस्कार जीते हैं. उन्होंने गाया- 

फकीरी जिंदगानी है
फकत इतनी कहानी
जिसे दरिया समझते हो
मेरी आंखों का पानी है
जो दिल में वही जुबां पे है मेरा
ना दो बातें ना दो चेहरे
लहू ये खानदानी है 
जिसे दरिया समझते हो
मेरी आंखों का पानी है

उन्होंने अपनी परफॉर्मेंस को प्रेम का गीत सुनाते हुए आगे बढ़ाया. उन्होंने गाया-

मैं तुम्हारा ही था
मैं तुम्हारा ही हूं
हर जन्म में तुम्हारा रहूंगा सदा
मैं तुम्हारा ही था
मैं तुम्हारा ही हूं
हर जन्म में तुम्हारा रहूंगा सदा
फिर नया रंग 
फिर नया रूप है
मैं वही कृष्ण हूं
तुम वही राधिका
मैं तुम्हारा ही था
मैं तुम्हारा ही हूं
हर जन्म में तुम्हारा रहूंगा सदा


गर तुम्हें याद है
मैं मिला था तुम्हें
रास के रंग में
और बनवास में
गर तुम्हें याद है
मैं मिला था तुम्हें
रास के रंग में
और बनवास में
तुमने तजकर महल
प्रेम पत्थर चुने
मैं वही राम हूं
जिसकी तुम साधिका
मैं तुम्हारा ही था
मैं तुम्हारा ही हूं
हर जन्म में तुम्हारा रहूंगा सदा

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तुमने मांगा मुझे कितने उपवासों में
क्रोध, आंसू ना क्या क्या सहा
तुम वही हो उमा
मैं दिगंबर वही
तेरा शिव मैं ही हूं
अंत का आदि का

जोगी बन जाऊंगा 
मैं धूनी रमाऊंगा 
ओ तेरे प्यार का चंदन मैं 
घिस घिस के लगाऊंगा
तू रूठी रहे मुझसे 
मैं तुझे मनाऊंगा
ओ तेरे नाम का चंदन मैं
घिस घिसके लगाऊंगा
अब जो चाहे मुझसे
जैसी भी कसम ले ले
इस जन्म की रहने दे
तू सौ सौ जन्म ले ले
हर जन्म में तुझसे मैं
फिर मिलने आऊंगा
तू रूठी रहे मुझसे
मैं तुझे मनाऊंगा
मैं तुझे मनाऊंगा

कवि दिनेश बावरा (तस्वीर- आजतक)

इसके बाद मंच पर कवि दिनेश बावरा आए. उन्होंने कहा कि वह अपनी कविताएं सुनाएंगे भी और दिखाएंगे भी. उन्होंने सुर के साथ गाकर अपनी कविता सुनाई. दिनेश बावरा ने मोबाइल से होने वाले नुकसानों के बारे में बताया. उन्होंने अपनी परफॉर्मेंस को इन पंक्तियों से खत्म किया-

अपने हौसले को बुलंद करना सीखिए
मोबाइल चलाना तो सीख लिया है
थोड़ी देर बंद करना सीखिए

नीलोत्पल मृणाल (तस्वीर- आजतक)

फिर मंच पर नीलोत्पल मृणाल आए. वो बिहार झारखंड से हैं. उनके उपन्यास डार्क हॉर्स और औघड़ काफी चर्चा में रहे. उन्होंने आम आदमी की तुलना आम से करते हुए कविता कही. इसके बाद एक गीत सुनाया-

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हम मिट्टी के लोग हैं बाबू 
मिट्टी ही सदा उड़ाएंगे
मिट्टी में सने
मिट्टी के बने, फिर मिट्टी के हो जाएंगे 

जब आग लगेगी दुनिया में
मिट्टी से उसे बुझाएंगे
और जब भूख से दुनिया रोएगी
अरे मिट्टी फसल उगाएंगे
उसी मिट्टी से कोड़ेंगे सोना
और माथे का मुकुट बनाएंगे
अरे मिट्टी में सने
मिट्टी के बने, फिर मिट्टी के हो जाएंगे

कोई घर जो अंधेरा देखेंगे
अरे मिट्टी के दिए से भर देंगे
और चौखट पर रखी तलवारों को
पिघलाकर मिट्टी कर देंगे
उसी माटी से लीपेंगे आंगन
और माटी के कलश बनाएंगे
मिट्टी में सने
मिट्टी के बने, फिर मिट्टी के हो जाएंगे

उन्होंने विदा लेने से पहले एक और गीत सुनाया. उन्होंने नई पीढ़ी की पुरानी पीढ़ी को लेकर सोच के बारे में बात की. उन्होंने गाया-

स्कूल की दीवारों पर जा दिल बनाने वाले लड़के
और चलते तीर को हंसके खाने वाले लड़के
उड़ती तीर भी खुद पर लेके लड़ भिड़ जाने वाले लड़के
अरे दिल टूटे तो बिस्तर पर ही झील बनाने वाले लड़के
उस दौर का जादू क्या जाने ये रील बनाने वाले लड़के


ताजी किताब पर बासी अखबार की जिल्द चढ़ाने वाले लड़के
और खाके समोसा सीनियर पर बिल टिकाने वाले लड़के
हर मेहनत के पथ पर साइकिल चलाने वाले लड़के
और संघर्षों की आग में तप तकदीर बनाने वाले लड़के
उस दौर का जादू क्या जानें ये रील बनाने वाले लड़के

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कवयित्री अंकिता सिंह (तस्वीर- आजतक)

उनके बाद मंच पर कवयित्री अंकिता सिंह आईं. वो पेशे से एक इंजीनियर हैं. वो बिहार में पली बढ़ी हैं. अंकिता अपनी रचनाओं को लेकर काफी जानी जाती हैं. उन्होंने गाया-

बहुत चाहा मगर जज़्बात की आंधी नहीं रुकती! 
हमारे दिल पे जो चलती है वो आरी नहीं रुकती
तुम्हारे बिन हमारी रात के बस दो ही क़िस्से हैं 
कभी हिचकी नहीं रुकती कभी सिसकी नहीं रुकती!

वो जिस पर उसकी रहमत हो वह दौलत मांगता है क्या
मोहब्बत करने वाला दिल मोहब्बत मांगता है क्या
तुम्हारा दिल कहे जब भी उजाला बन के आ जाना
कभी उगता हुआ सूरज इजाज़त मांगता है क्या

इसके बाद अंकिता सिंह ने प्रेम में पड़ी स्त्री को लेकर कुछ पंक्तियां कहीं. 

मोहब्बत जिसको हो जाए भला कैसे वो सोएगी
कभी मुस्कुरायेगी छुप छुप कभी तकिया भिगोएगी
बड़े नादान हो तुम तो ज़रा सोच कर तो देखो
गले मिल कर जो रोती है बिछड़कर कितना रोएगी

उन्होंने फोन पर भी एक गीत गाया. कि जब प्रेम में पड़ी लड़की बात कह नहीं पा रही, वो कैसा महसूस करती है. उन्होंने गाया 'जो तुमसे बात हो तो.' उन्होंने गीत का आखिरी अंतरा गाकर विदाई ली.  

नीतीश्वर कुमार (तस्वीर- आजतक)

अंकिता सिंह के बाद मंच पर IAS अधिकारी और कवि नीतीश्वर कुमार आए. वो महिला बाल विकास मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव और वित्तीय सलाहकार है. वो यीपी कैडर 1996 बैच के IAS अधिकारी हैं. उन्होंने कहा-

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मेरी चाहतों का सिला नहीं
नसीब से तू मिला नहीं
खत तेरे सब जला दिए
एहसास है वो जला नहीं

कवि सर्वेश अस्थाना (तस्वीर- आजतक)

इसके बाद मंच पर कवि सर्वेश अस्थाना आए. वो देश के जाने माने कवि हैं. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी कविताएं पढ़ी हैं. उन्हें कई सम्मान भी मिले हैं. उन्होंने अपनी परफॉर्मेंस की शुरुआत इन पंक्तियों से की-

मैं अकसर सोचता हूं तुम मिलो कुछ बात हो जाए
घिरें बादल घने से और फिर बरसात हो जाए
मैं तुमको साथ लेकर कार से जब घूमने निकलूं
कि पंचर हों सभी टायर वहीं पर रात हो जाए

वो अकसर बाइक पर मुझको बिठा कॉलेज पहुंचता है
मैं उसकी प्रेमिका हूं वो शायद यही समझता है
बड़ा बेवकूफ है, नादान है, बुद्धू है, पोंगा है
मैं तो इसलिए जाती हूं मेरा खर्च बचता है

विष्णु सक्सेना (तस्वीर- आजतक)

मंच पर सबसे आखिर में कवि विष्णु सक्सेना आए. उन्होंने गीतों से अपनी परफॉर्मेंस की शुरुआत की. 

जब बसाने का मन में ना हो हौसला, बेवजह घोसला मत बनाया करो
और उठा ना सको तुम गिरे फूल तो, इस तरह डालियां मत हिलाया करो

वो समंदर नहीं था, थे आंसू मेरे जिनमें तुम तैरते और नहाते रहे
एक हम थे कि आंखों की इस झील में बस किनारे पे डुबकी लगाते रहे
मछलियां सब झुलस जाएंगी झील की, अपना पूरा बदन मत डुबाया करो

वो हमें क्या संभालेंगे इस भीड़ में, जिनसे अपना दुपट्टा संभालता नहीं
कैसे मन को मैं कह दूं सुकोमल है ये, फूल को देखकर जो मचलता नहीं
जिनके दीवारों-दर हैं बने मोम के, उनके घर में न दीपक जलाया करो

प्रेम को ढाई अक्षर का कैसे कहें, प्रेम सागर से गहरा है नभ से बड़ा
प्रेम होता है दिखता नहीं है मगर, प्रेम की ही धुरी पर ये जग है खड़ा
प्रेम के इस नगर में जो अनजान हो, उसको रस्ते गलत मत बताया करो

उन्होंने युवाओं को सलाह दी कि जीवन में कभी नाउम्मीद मत होना. हमेशा सकारात्मक रहना, हर क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे.

---- समाप्त ----

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