'जाओ, भगवान से स्वयं कुछ करने के लिए कहो...', SC ने खारिज की खजुराहो में टूटी प्रतिमा बदलने की याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को 'पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन' करार दिया और कहा कि ये मामला ASI के अधीन आता है. अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि बगल में ही एक विशाल शिवलिंग है और अगर वो शैव धर्म का विरोधी नहीं है तो वहां पूजा कर सकता है.

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SC ने कहा कि ये मामला ASI के अधिकार क्षेत्र में आता है. (photo: ITG) SC ने कहा कि ये मामला ASI के अधिकार क्षेत्र में आता है. (photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:43 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एमपी के खजुराहो में स्थित भगवान विष्णु की सिर कटी प्रतिमा के पुनर्निर्माण की मांग को खारिज कर दिया है. अदालत ने इस याचिका को 'पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन' करार दिया है. इस दौरान चीफ जस्टिस बी आर गवई की एक टिप्पणी काफी चर्चा में है. मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि 'जाइए और अपने देवता से कहिए कि वे इस मामले में खुद कुछ करें.'

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मध्य प्रदेश में यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शामिल खजुराहो मंदिर परिसर के जवारी मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची मूर्ति की सिर टूटी हुई अवस्था में है. इस मामले में राकेश दलाल नाम के शख्स ने क्षतिग्रस्त मूर्ति को बदलने और उसकी प्राण प्रतिष्ठा करने की मांग की थी.

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली पीठ ने राकेश दलाल की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. 

इस मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने कहा, "यह पूरी तरह से प्रचार के लिए याचिका है... जाओ और खुद भगवान से कुछ करने के लिए कहो. अगर तुम कह रहे हो कि तुम भगवान विष्णु के प्रबल भक्त हो, तो तुम प्रार्थना करो और थोड़ा ध्यान करो."

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पीठ ने कहा कि यह मामला पूरी तरह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकार क्षेत्र में आता है.

सीजेआई ने कहा, "यह एक पुरातात्विक स्थल है, एएसआई ऐसा करने की अनुमति देगा या नहीं... इसमें कई मुद्दे हैं."

सीजेआई गवई ने आगे कहा, "इस बीच अगर आप शैव धर्म के विरोधी नहीं हैं तो आप वहां जाकर पूजा कर सकते हैं. वहां शिव का एक बहुत बड़ा लिंग है, जो खजुराहो के सबसे बड़े लिंगों में से एक है."

राकेश दलाल की याचिका में मूर्ति को बदलने या पुनर्निर्माण के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी, तथा तर्क दिया गया था कि इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय और एएसआई को कई बार ज्ञापन दिया गया था. 

राकेश दलाल ने याचिका में दावा किया गया है कि मुगल आक्रमणों के दौरान मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था और सरकार से इसे पुनर्स्थापित करने के लिए बार-बार अनुरोध करने के बावजूद यह उसी अवस्था में बनी हुई है.

इस याचिका में मूल रूप से चंद्रवंशी राजाओं द्वारा निर्मित खजुराहो मंदिरों के इतिहास का वर्णन किया गया है. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया गया है कि औपनिवेशिक काल में उपेक्षा और स्वतंत्रता के बाद की निष्क्रियता, यानी कि दोनों वजहों की वजह से स्वतंत्रता के 77 साल बाद भी मूर्ति की मरम्मत नहीं हो पाई है.

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याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मूर्ति को पुनर्स्थापित करने से इनकार करना भक्तों के पूजा करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. याचिका में मंदिर से संबंधित विरोध प्रदर्शनों,ज्ञापनों और अभियानों को उजागर किया गया है. जिस पर अबतक कोई जवाब नहीं मिला है. 
 

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