9 महीने में BJP से अरविंदर सिंह लवली का मोहभंग, कहीं ये वजह तो नहीं?

बीजेपी के कुछ नेता अरविंदर सिंह लवली को ये जताने में पीछे नहीं रहे कि वो बाहरी हैं. वहीं, कांग्रेस के इस बड़े कद के नेता को बीजेपी में कोई बड़ा काम नहीं सौंपा गया. ये जरूर है कि उन्हें पार्टी की अहम बैठकों में बुलाया जाता था, लेकिन कभी भी वहां उनकी बात को तरजीह नहीं मिली. बीजेपी में उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य की तस्वीर भी साफ नहीं दिख रही थी.

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मनोज तिवारी, अरविंदर सिंह लवली और अमित शाह (फाइल फोटो) मनोज तिवारी, अरविंदर सिंह लवली और अमित शाह (फाइल फोटो)

अजीत तिवारी / रोहित मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 18 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 7:12 PM IST

आखिर 9 महीने पहले ही कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए अरविंदर सिंह लवली का बीजेपी से इतनी जल्दी मोहभंग क्यों हो गया? ये वो सवाल है जिसे हर कोई जानना चाहता है.

काफी समय से सिख चेहरे को तलाश रही बीजेपी के लिए पूर्वी दिल्ली का ये दिग्गज नेता काफी अहम था. इससे पहले बीजेपी के लिए दिल्ली में सिख चेहरे के रूप में आरपी सिंह मौजूद हैं. लेकिन वो भी इतना बड़ा नाम नहीं हैं और चुनाव भी हार चुके हैं. वहीं, अरविंदर सिंह गांधीनगर सीट से कभी नहीं हारे, लेकिन बीजेपी में 'संगठन' को देख रहे लोग लवली को संभाल नहीं पाए. लवली के करीबी बताते हैं कि उनकी कांग्रेस में वापसी के पीछे यही एक बड़ी वजह रही.

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सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी के कुछ नेता अरविंदर सिंह लवली को ये जताने में पीछे नहीं रहे कि वो बाहरी हैं. वहीं, कांग्रेस के इस बड़े कद के नेता को बीजेपी में कोई बड़ा काम नहीं सौंपा गया. ये जरूर है कि उन्हें पार्टी की अहम बैठकों में बुलाया जाता था, लेकिन कभी भी वहां उनकी बात को तरजीह नहीं मिली. बीजेपी में उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य की तस्वीर भी साफ नहीं दिख रही थी.

अरविंदर सिंह लवली बीजेपी के अंदर अपनी अनसुनी से पहले से ही सकते में थे. इस बीच बीजेपी में एक ऐसा वाकया हुआ, जिसने लवली को अंदर तक झकझोर दिया. जिसने उन्हें ये सोचने को मजबूर कर दिया कि बीजेपी में उनकी कोई गिनती ही नहीं है. इसी दौरान संयोग से कांग्रेस लीडरशिप की तरफ से उनकी 'घर वापसी' की पहल बड़े स्तर पर की गई तो उन्होंने भी 'हाथ' को लपकने में बिल्कुल देरी नहीं की.

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दरअसल, केजरीवाल सरकार के तीन साल पूरे होने पर अरविंद केजरीवाल सरकार की नाकामियों और रणनीति को लेकर बीजेपी ने बैठक बुलाई. इसमें दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी के अलावा विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेन्द्र गुप्ता, पार्टी के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, तीनों महामंत्री और संगठन मंत्री को भी रहना था. लेकिन जब वो मीटिंग में शामिल होने के लिए दिल्ली बीजेपी ऑफिस पहुंचे तो वहां सिर्फ दो महामंत्री और संगठन मंत्री के अलावा कोई नहीं था.

अरविंदर सिंह को बाद में पता चला कि प्रदेश अध्यक्ष को तो इस अहम मीटिंग की जानकारी तक नहीं थी. विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेन्द्र गुप्ता भी देर से आए. संगठन मंत्री लवली को यह कहकर चलते बने कि अभी वह दोनों महामंत्रियों से चर्चा कर 'श्वेत पत्र' का मसौदा तैयार कर लें, बाद में उस पर अन्य वरिष्ठ नेताओं की भी राय ले ली जाएगी.

लवली को जिन दो महामंत्रियों के साथ मीटिंग के लिए छोड़ा गया था, राजनीतिक कद और अनुभव के मामले में वे दोनों लवली के सामने कहीं नहीं ठहरते हैं. इससे लवली काफी आहत हुए और किसी तरह जल्द ही मीटिंग निपटाकर वहां से निकल गए. यही वो वाक्या था जिससे वो आहत हुए.

अजय माकन से नाराज होकर बीजेपी में शामिल हुए अरविंदर सिंह लवली इस बात से भी काफी आहत थे कि उन्हें बीजेपी अध्यक्ष से बात करने के लिए भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ती थी. जब लवली को पार्टी अध्यक्ष से बात करना होता था तो उनके पीए को फोन करना पड़ता था. दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ज्यादातर मौकों पर फोन नहीं उठाते थे. लेकिन जैसे ही कांग्रेस में उनको लेकर थोड़ी सुगबुगाहट शुरू हुई उन्होंने बीजेपी से अलग कांग्रेस में जाना बेहतर समझा.

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