'मैंने पिता को खोया, लेकिन अब कश्मीर में मेरे 2 भाई...' पहलगाम हमले की पीड़िता की जज्बाती दास्तां

पहलगाम हमले में अपने पिता खोने वाली आरती आर मेनन ने कहा, "वे हर वक्त मेरे साथ खड़े रहे, मुझे मोर्चरी ले गए, हमारी मदद की. मैं वहां 3 बजे तक इंतज़ार करती रही. उन्होंने एक बहन की तरह मेरी देखभाल की."

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पहलगाम हमले में जान गंवाने वाले एन रामचंद्रन की पत्नी शीला और बेटी आरती (तस्वीर: PTI) पहलगाम हमले में जान गंवाने वाले एन रामचंद्रन की पत्नी शीला और बेटी आरती (तस्वीर: PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 12:00 PM IST

जम्मू-कश्मीर  (Jammu Kashmir) के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में कुल 26 पर्यटकों की मौत हुई थी. इस हमले में जान गंवाने वाले लोगों में कोच्चि की रहने वाली आरती आर मेनन के पिता एन रामचंद्रन (65) भी शामिल थे. आरती ने पहलगाम से वापस आने के बाद मीडिया से बात करते हुए भयावह मंजर के बारे में बताया.

आरती ने गुरुवार को मीडिया से बात करते हुए बताया, "पहले तो हमें लगा कि यह पटाखे की आवाज है लेकिन अगली ही गोली चलने पर मुझे पता चल गया कि यह आतंकी हमला है."

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'गोली चली, मेरे पिता गिर पड़े...'

आरती के पिता और उनके छह साल के जुड़वां बेटे बैसरन में एक बाड़े से घिरे घास के मैदान से गुजर रहे थे, तभी आतंकवादियों ने उन पर हमला कर दिया. उनकी मां शीला कार में ही बैठी रहीं.

उन्होंने बताया, "हम भागने के लिए बाड़ के नीचे रेंग गए. लोग सभी दिशाओं में बिखर गए. जब ​​हम आगे बढ़ रहे थे, तो एक आदमी जंगल से निकलकर आया. उसने सीधे हमारी तरफ देखा. उस अजनबी ने कुछ ऐसे शब्द बोले जो वे समझ नहीं पाए. हमने जवाब दिया, हमें नहीं पता. अगले ही पल, उसने गोली चला दी. मेरे पिता हमारे बगल में गिर पड़े. मैंने दो लोगों को देखा, लेकिन उन्होंने किसी सैनिक की वर्दी नहीं पहनी हुई थी."

'परिवार जैसा व्यवहार किया...'

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एजेंसी के मुताबिक, आरती ने बताया कि वे लोग करीब एक घंटे तक जंगल में भटकते रहे. उन्होंने कहा, "मेरे बेटे चिल्लाने लगे और वह आदमी भाग गया. मुझे पता था कि मेरे पिता चले गए हैं. मैंने बच्चों को साथ लिया और वहां से निकल गई. जंगल में, मुझे नहीं पता था कि मैं कहां जा रही हूं. जब मेरा फोन का सिग्नल गायब हो गया, तो मैंने अपने ड्राइवर को कॉल किया. 

यह भी पढ़ें: 'पहलगाम के पीड़ितों को न्याय मिलकर रहेगा...', PM मोदी ने देश को फिर दिलाया आतंक के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा

आरती ने बताया कि ऐसे डरावने वक्त में कश्मीर के अजनबी लोगों से भी सहानुभूति मिली और उन लोगों ने परिवार जैसा व्यवहार किया. उन्होंने याद करते हुए बताया, "मेरा ड्राइवर मुसाफिर और एक अन्य व्यक्ति, समीर मेरे भाई बन गए. वे हर वक्त मेरे साथ खड़े रहे, मुझे मोर्चरी ले गए, हमारी मदद की. मैं वहां 3 बजे तक इंतज़ार करती रही. उन्होंने एक बहन की तरह मेरी देखभाल की."

जब आरती श्रीनगर से वापस आने लगीं, तो मदद करने वाले उन दोनों व्यक्तियों से उन्होंने कहा कि अब कश्मीर में मेरे दो भाई हैं, अल्लाह आप दोनों की हिफाजत करे.

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