Maternity Leave: देश में लागू हो सकती है 9 महीने की मैटरनिटी लीव, नीति आयोग ने दी सलाह 

देश की कामकाजी महिलाओं को मिलने वाली मैटरनिटी लीव बढ़ाई जा सकती है. इसको लेकर नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल की ओर से एक बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि महिला कर्मचारियों के लिए मैटरनिटी लीव की अवधि छह से बढ़ाकर नौ महीने करने पर विचार करना चाहिए. 

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 16 मई 2023,
  • अपडेटेड 9:52 AM IST

देशभर की कामकाजी महिलाओं को नौ महीने की मैटरनिटी लीव मिल सकती है. इसको लेकर नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल का बयान सामने आया है. डॉ. पॉल ने सोमवार को कहा कि सरकारी और प्राइवेट संस्थानों को महिला कर्मचारियों के लिए मैटरनिटी लीव (Maternity Leave) की अवधि छह महीने से बढ़ाकर नौ महीने करने पर विचार करना चाहिए. 

मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 को 2017 में संसद में पारित किया गया था, जिसके तहत पहले 12 सप्ताह के वैतनिक मातृत्व अवकाश को बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया था.  

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भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (FICCI) के महिला संगठन FLO ने एक बयान जारी कर पॉल के हवाले से कहा, "प्राइवेट और सरकारी क्षेत्रों को मातृत्व अवकाश को मौजूदा छह महीने से बढ़ाकर नौ महीने करने को लेकर साथ बैठकर विचार करना चाहिए."  

बच्चों की परवरिश के लिए खुलें क्रैच: पॉल 

बयान के अनुसार, पॉल ने कहा कि प्राइवेट क्षेत्र को बच्चों की बेहतर परवरिश सुनिश्चित करने के लिए और अधिक क्रैच (शिशु गृह) खोलने चाहिए और उनकी एवं जरूरतमंद बुजुर्गों की समग्र देखभाल की व्यवस्था तैयार करने के आवश्यक कार्य में नीति आयोग की मदद करनी चाहिए.  

पॉल ने कहा, "चूंकि भविष्य में लाखों देखभाल कर्मियों की आवश्यकता होगी, इसलिए हमें व्यवस्थित सॉफ्ट और हार्ड स्किलिंग ट्रेनिंग विकसित करना होगा." 

केयर टेकिंग एक अहम क्षेत्र: FLO 

FLO अध्यक्ष सुधा शिवकुमार ने कहा कि वैश्विक स्तर पर देखभाल की अर्थव्यवस्था एक अहम क्षेत्र है, जिसमें देखभाल करने और घरेलू कार्य करने वाले वैतनिक और अवैतनिक श्रमिक शामिल हैं. उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र आर्थिक विकास, लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है. उन्होंने कहा कि देखभाल का काम आर्थिक रूप से मूल्यवान है लेकिन विश्व स्तर पर इसका मूल्यांकन नहीं किया गया है. 

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शिवकुमार ने कहा कि भारत में एक बड़ी खामी है कि हमारे पास देखभाल अर्थव्यवस्था से जुड़े श्रमिकों की ठीक से पहचान करने की कोई प्रणाली नहीं है और अन्य देशों की तुलना में देखभाल अर्थव्यवस्था पर भारत का सार्वजनिक खर्च बहुत कम है. 

 

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