क्या केजरीवाल के खिलाफ AAP में हो चुकी है बगावत की शुरुआत?

क्या दो साल पहले प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आकर इतिहास रचने वाली आम आदमी पार्टी टूट की कगार पर है? क्या पहले पंजाब और गोवा और फिर एमसीडी में मिली हार के चलते आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बगावत का ज्वालामुखी फटने वाला है?

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केजरीवाल के खिलाफ बगावत की तैयारी केजरीवाल के खिलाफ बगावत की तैयारी

विजय रावत

  • नई दिल्ली,
  • 01 मई 2017,
  • अपडेटेड 2:20 PM IST

क्या दो साल पहले प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आकर इतिहास रचने वाली आम आदमी पार्टी टूट की कगार पर है? क्या पहले पंजाब और गोवा और फिर एमसीडी में मिली हार के चलते आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बगावत का ज्वालामुखी फटने वाला है? अगर पिछले दो-तीन दिन के घटनाक्रम और पार्टी नेताओं के बयानों पर नजर डालें तो इन दोनों सवालों का जवाब हां हो सकता है.

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अरविंद केजरीवाल ने कल मीडिया में जारी अटकलों को खारिज करने के लिए ट्वीट किया था कि कुमार विश्वास उनके छोटे भाई हैं और उन दोनों को कोई अलग नहीं कर सकता. लेकिन केजरीवाल के ट्वीट से ये मामला शांत होने के बजाय और बढ़ गया है क्योंकि अब तक केजरीवाल और कुमार विश्वास के बीच सबकुछ ठीक न होने की जो खबरें महज अटकलों पर आधारित थीं, उनपर इस ट्वीट से एक तरह से मुहर लग गई है.

पंजाब-गोवा और दिल्ली में हार से कमजोर पड़े केजरीवाल
पंजाब विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को सत्ता का दावेदार बताया जा रहा था. गोवा में भी उसके अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन विधानसभा चुनाव के जो नतीजे आए उनमें गोवा में पार्टी साफ हो गई वहीं पंजाब में भी उसके महज 20 विधायक जीत पाए. जैसे कि यही काफी नहीं था. राजौरी गार्डन के उपचुनाव में पार्टी के उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई जबकि एमसीडी चुनाव में तो पार्टी की और भी बुरी गत हुई और तीनों एमसीडी में मिलाकर भी वो 50 पार्षदों का आंकड़ा नहीं छू सकी. हार के बाद केजरीवाल ने जनता से भले ही माफी मांग ली हो लेकिन उनकी खुद की पार्टी के नेता उन्हें बख्शने के मूड में नहीं हैं.

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कुमार विश्वास में दिख रहा है केजरीवाल का विकल्प
बताया जाता है कि आम आदमी पार्टी के कई नेता केजरीवाल को पार्टी और सरकार पर एकछत्र राज करने देने के मूड में नहीं हैं. लगातार हार के बाद अब आवाज उठ रही हैं कि पार्टी और सरकार के कामकाज के लिए अलग-अलग चेहरों को आगे किया जाए. ये कुछ-कुछ एक व्यक्ति-एक पद जैसी ही मांग है लेकिन इसके निशाने पर केजरीवाल हैं. बताया जाता है कि पार्टी के कई नेता चाहते हैं कि केजरीवाल दिल्ली की सरकार चलाएं जबकि पार्टी चलाने का जिम्मा किसी दूसरे नेता को दिया जाए. दूसरे नेता के रोल के लिए सबसे आगे कुमार विश्वास का नाम चल रहा है.

कपिल मिश्रा ने किया बड़े बदलाव का दावा
दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री कपिल मिश्रा ने आजतक से खास बातचीत में कहा कि जो बार-बार हार के लिए ज़िम्मेदार रहे हैं उन्हें घर में बैठना चाहिए. कपिल ने कुमार विश्वास के वीडियो का समर्थन करते हुए कहा कि कुमार ने कार्यकर्ताओं की आवाज को मंच दिया है. उन्होंने आम आदमी पार्टी में बड़े बदलाव का इशारा करते हुए साफ कहा कि हिमालय से गंगा निकलने वाली है, आम आदमी पार्टी में बड़ा बदलाव, बड़ा परिवर्तन होने वाला है ये सुनिश्चत है. कपिल ने ये भी कहा कि जिनके चलते हार हुई है उन्हें अब आराम करना चाहिए. सभी विधायकों की यही मांग है. कपिल ने बदलाव को तो सुनिश्चित बताया लेकिन ये नहीं बताया कि बदलाव किस तरह का होगा. हालांकि उनके बयानों में इतना तो साफ हो ही गया कि वो कुमार विश्वास की पार्टी में अहम भूमिका और 'वर्तमान' लीडरशिप को घर बैठाने के पक्षधर हैं.

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कपिल के जवाब में अमानतुल्ला का वार
कपिल मिश्रा ने जहां खुलकर कुमार विश्वास का पक्ष लिया तो विरोधी खेमे की ओर से आप के एक और विधायक अमानतुल्ला सामने आए. उन्होंने तो कुमार विश्वास को बीजेपी का एजेंट तक करार दिया और कहा कि वो पार्टी में केजरीवाल को हटाकर खुद संयोजक बनना चाहते हैं. हालांकि अमानतुल्ला का बयान सामने आते ही केजरीवाल ने कुमार विश्वास को छोटा भाई बताने वाला ट्वीट किया लेकिन पार्टी अब जिस मोड़ पर पहुंच गई है उससे उसका पीछे लौटना आसान नहीं लगता.

केजरीवाल बनाम कुमारः आप हो गई है दो फाड़
आज स्थिति ये है कि आम आदमी पार्टी के तमाम नेता केजरीवाल और कुमार विश्वास के पक्ष में लमबंद होते जा रहे हैं. दिल्ली की विधायक अलका लांबा ने कुमार विश्वास के खिलाफ बयान देने के लिए अमानतुल्ला पर कार्रवाई की मांग कर दी है. वहीं पंजाब के भी सभी आप विधायक कुमार विश्वास के समर्थन में आ गए हैं और उन्होंने केजरीवाल को चिट्ठी लिखकर अमानतुल्ला के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. केजरीवाल भले ही कुमार विश्वास को अपना छोटा भाई बता रहे हों लेकिन ये भी सच है कि पार्टी में केजरीवाल के बाद सबसे लोकप्रिय और भीड़ जुटाऊ नेता होने के बावजूद कुमार विश्वास को वो अहमियत नहीं मिली जिसके वो हकदार थे.

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अमेठी में भी अकेले पड़ गए थे कुमार विश्वास
लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी में कुमार विश्वास तो वाराणसी में अरविंद केजरीवाल मैदान में थे. आप के तमाम छोटे बड़े नेता केजरीवाल का प्रचार करने वाराणसी तो पहुंचे लेकिन अमेठी से सबने दूरी बनाए रखी और कुमार विश्वास को अकेले छोड़ दिया. हालत ये हो गई कि कुमार विश्वास को खुलकर इसके प्रति नाराजगी जतानी पड़ी तब केजरीवाल अमेठी प्रचार करने पहुंचे. खुद विश्वास ने चुनाव के बाद एक इंटरव्यू में तंज कसा था कि अमेठी में बनारस की तरह घाट और घूमने के लिए होटल नहीं थे शायद इसीलिए कोई नेता वहीं नहीं पहुंचा.

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