40 सीट, 6 दावेदार... नीतीश के पालाबदल से बिहार में एकदम बदल गया लोकसभा चुनाव का गणित!

नीतीश कुमार के इंडिया ब्लॉक छोड़ एनडीए में जाने के बाद बिहार की 40 लोकसभा सीटों का गणित एकदम से बदल गया है. एनडीए के खाते में अब सूबे की 40 में से 39 सीटें आ तो गई हैं लेकिन सीट शेयरिंग के मोर्चे पर भी माथापच्ची बढ़ गई है.

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नीतीश कुमार, जेपी नड्डा, चिराग पासवान (फोटोः पीटीआई) नीतीश कुमार, जेपी नड्डा, चिराग पासवान (फोटोः पीटीआई)

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 30 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:58 PM IST

बिहार में नीतीश कुमार फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में लौट आए हैं. नीतीश ने कहा है कि जहां से गए थे, वहीं लौट आए हैं. अब इधर-उधर जाने का सवाल ही नहीं है. नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी से सत्ता की तस्वीर बदल गई है तो साथ ही बदल गया है गठबंधन का गणित और वोटों का समीकरण भी. बदल गया है सूबे की 40 लोकसभा सीटों का गणित भी. नीतीश के साथ आने से सीट शेयरिंग के मोर्चे पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की टेंशन भी बढ़ गई है.

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कैसे बदल गया लोकसभा सीटों का गणित

कुछ ही महीने में लोकसभा चुनाव होने हैं लेकिन इससे पहले ही नीतीश के पाला बदलने से बिहार की लोकसभा सीटों का गणित पूरी तरह से बदल गया है. चंद रोज पहले तक एनडीए की 23 सीटों के मुकाबले विपक्षी इंडिया 17 सीटों के साथ करीब-करीब बराबरी वाली स्थिति में था. लेकिन नीतीश के एनडीए में जाने के बाद यह गणित बदल गया है.

नीतीश कुमार के आने से बदल गया है सीटों का समीकरण

नंबर गेम में एनडीए एक झटके में 39 लोकसभा सीटों पर पहुंच गया है. वहीं, इंडिया गठबंधन 17 से गिरकर महज एक सीट पर आ गया है. इंडिया ब्लॉक के पास बिहार में जो एकमात्र सीट बची है, वह किशनगंज है जहां से 2019 में कांग्रेस के उम्मीदवार को जीत मिली थी. 2019 चुनाव में लालू यादव की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का खाता तक नहीं खुल सका था.

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नीतीश के आने से फ्रंटफुट पर एनडीए

नीतीश के पाला बदलने के बाद एनडीए फ्रंटफुट पर आ गया है. ऐसा कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार को साथ लाने से एनडीए को लोकसभा चुनाव से पहले मोरल अपरहैंड मिल गया है. दरअसल, जेडीयू का अपना एक बेस वोट बैंक है. पेशे से इंजीनियर रहे नीतीश कुमार ने बिहार की सियासत में सोशल इंजीनियरिंग का ऐसा ताना-बाना बुना है, जिससे भले ही वो अकेले जीतने की स्थिति में रहें या ना रहें, जिसके साथ चले जाएं उसकी जीत करीब-करीब सुनिश्चित हो जाती है.

बिहार में बढ़ी एनडीए की ताकत (फोटोः पीटीआई)

नीतीश का लव-कुश समीकरण के साथ ही महादलित और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के वोटर्स पर भी मजबूत प्रभाव है. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. खराब से खराब स्थिति में भी जेडीयू को 16 फीसदी के करीब वोट मिलते रहे हैं. यह वोट अकेले चुनाव जीतने के लिहाज से भले ही बहुत कम लग रहा हो लेकिन यह जब किसी दूसरी पार्टी के वोट के साथ यह वोट जुड़ता है तो जीत की संभावनाएं मजबूत जरूर हो जाती हैं.

किस तरह घटी चिराग-पारस-कुशवाहा की बार्गेनिंग पावर

बिहार में गठबंधनों का गणित बदलने से एनडीए के 2019 चुनाव वाला प्रदर्शन 2024 में दोहराने की संभावनाओं को जहां मजबूत माना जा रहा है, वहीं अधिक सीट की आस लगाए इस गठबंधन के कई घटक दलों की उम्मीदों को झटका भी लगा है. नीतीश की एनडीए में वापसी के बाद चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास (एलजेपीआर), पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलजेडी) की बार्गेनिंग पावर भी कम हो गई है.

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जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, पशुपति पारस, चिराग पासवान (फाइल फोटो)

लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों धड़े दलित वोट करीब पांच फीसदी दलित वोट पर दावा करते हैं तो वहीं उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का दावा करीब चार फीसदी कोईरी वोट पर है. चार पार्टियों के सहारे बीजेपी की नजर करीब 23 फीसदी वोट पर थी लेकिन अब नीतीश कुमार के भी साथ आ जाने से तस्वीर बदल गई है. नीतीश की पार्टी को तब भी 16 फीसदी वोट मिले थे जब वह 2014 के चुनाव में अकेले लड़ी और दो सीटें जीती थी.

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एनडीए के लिए सीट शेयरिंग बड़ी चुनौती

एनडीए के लिए अब सीट शेयरिंग के मोर्चे पर चुनौती बढ़ गई है. दरअसल, पिछले दो लोकसभा चुनावों की चर्चा करें तो एनडीए में एकबार नीतीश की पार्टी नहीं थी तो दूसरी बार उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी. इस बार जब ये सभी दल साथ हैं तो सीट शेयरिंग कैसे होगा, क्या फॉर्मूला होगा? नीतीश के एनडीए में आने से पहले तक यह कहा जा रहा था कि सीट शेयरिंग 2014 के फॉर्मूले पर हो सकती है. हालांकि, इसमें भी चुनौती यह थी कि एलजेपी तब एकजुट थी और अब इसके दो धड़े हैं. दोनों ही धड़े 7-7 सीट की डिमांड कर रहे थे.

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साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में से 30 सीटों पर बीजेपी ने उम्मीदवार उतारे थे. एलजेपी ने सात, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. बीजेपी को 30 में से 22 सीटों पर जीत मिली थी और सहयोगी दल 10 में से आठ सीटों पर विजयी रहे थे. 2019 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी एनडीए में नहीं थी और जेडीयू आ चुकी थी. तब बीजेपी और जेडीयू ने 17-17, एलजेपी ने छह सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. बीजेपी और एलजेपी अपने-अपने कोटे की सभी सीटें जीत ली थीं जबकि कांग्रेस ने जिस एकमात्र सीट पर जीत हासिल की थी, वहां जेडीयू के उम्मीदवार को शिकस्त मिली थी. 

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40 सीट, 6 दावेदार... कैसे बंटेंगी सीटें

बिहार में लोकसभा की 40 सीटों के लिए एनडीए में छह दावेदार हैं. बीजेपी और जेडीयू दो बड़ी पार्टियों के साथ ही एलजेपी के दो धड़े, मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को एडजस्ट कर पाना एनडीए के लिए आसान नहीं होगा. बिहार विधानसभा के ताजा नंबर गेम से मांझी की अहमियत बढ़ गई है और उनकी पार्टी भी कम से कम दो सीटें चाहती है. एलजेपी के दोनों धड़े सात-सात सीटों की डिमांड कर रहे हैं तो वहीं उपेंद्र कुशवाहा भी 2014 की तर्ज पर तीन सीटों की दावेदारी कर रहे हैं. ऐसे में सीट शेयरिंग पर एनडीए में कैसे सहमति बनती है, यह देखने वाली बात होगी.

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