कट्टर विरोधी बने नीतीश के डिप्टी... सम्राट-विजय की ताजपोशी कर BJP ने क्या संदेश दिया है?

नई नीतीश सरकार में बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी और विपक्ष के नेता रहे विजय सिन्हा डिप्टी सीएम बने हैं. नीतीश की कट्टर विरोधी मानी जाने वाली सम्राट-विजय की ताजपोशी कर बीजेपी ने क्या संदेश दिया है?

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विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी (Photo: X/@BJP4Bihar) विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी (Photo: X/@BJP4Bihar)

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 29 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 7:45 PM IST

बिहार में नीतीशे सरकार है लेकिन गठबंधन सहयोगी बदल गए हैं. नीतीश कुमार सरकार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस और लेफ्ट की जगह अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम पार्टी) ने ले ली है. तेजस्वी यादव अब दो बार के पूर्व डिप्टी सीएम हो चुके हैं. बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी और बिहार विधानसभा के पूर्व स्पीकर विजय सिन्हा जो कल सुबह तक विधानसभा में विपक्ष के नेता थे, अब नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम हैं. ये दोनों ही नेता नीतीश कुमार के खिलाफ काफी मुखर रहे हैं और अब इन्हें नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम बनाया जाना चर्चा का विषय बन गया है. बीजेपी के इस कदम के मायने क्या हैं, नीतीश कुमार के लिए, बिहार की जनता के लिए क्या संदेश है? बात इसे लेकर भी हो रही है.

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सम्राट और विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाने के कदम को कोई ओबीसी और सामान्य वर्ग के वोटों के गणित से जोड़ रहा है तो कोई नीतीश-सम्राट की जोड़ी के जरिए लव-कुश समीकरण मजबूत करने की कवायद बता रहा है. नीतीश कुमार कुर्मी जाति से हैं और वहीं सम्राट कोईरी जाति से. दोनों ही जातियां पिछड़ा वर्ग में आती हैं और नीतीश की सियासत का आधार भी यही समीकरण रहा है. सम्राट को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था तब भी चर्चा यही थी कि बीजेपी ने नीतीश का लव-कुश समीकरण तोड़ने की कोशिश में सम्राट को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. अब जब सम्राट को डिप्टी सीएम बना दिया गया है तब फिर से लव-कुश समीकरण की चर्चा है लेकिन क्या बात बस इतनी सी ही है?

सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा, दोनों ही नेताओं की पहचान नीतीश के धुर विरोधी की रही है. सम्राट चौधरी तो अपने सिर पर बंधे रहने वाले मुरेठा (साफा) को लेकर यह तक कहते आ रहे थे कि यह तभी खुलेगा जब नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा लेंगे. विजय सिन्हा के स्पीकर रहते सदन के भीतर सीएम नीतीश कुमार के साथ तल्खी चर्चा में रही. तब नीतीश एनडीए सरकार की ही अगुवाई कर रहे थे. साल 2022 में नीतीश कुमार विधानसभा में स्पीकर विजय सिन्हा पर ही बरस पड़े थे और तेज आवाज में कहा था कि आप इस तरह से हाउस चलाएंगे? हम ऐसा नहीं चलने देंगे. आप गलत कर रहे हैं.

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विजय सिन्हा ने भी इसे विधायिका के अपमान से जोड़ दिया था और साफ कहा था कि हम ऐसा नहीं होने देंगे. स्पीकर और सीएम की तल्खी के बाद विधानसभा की कार्यवाही तीन दिन के लिए स्थगित करनी पड़ी थी. नीतीश के एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन में जाने के बाद बीजेपी ने विजय सिन्हा को विपक्ष के नेता का दायित्व दे दिया था. अब बीजेपी ने नीतीश के इर्द-गिर्द इन्हीं दोनों नेताओं को बैठा दिया है तो सवाल उठ रहे हैं कि इसके पीछे क्या रणनीति है? 

नीतीश सीएम, सुप्रीम नहीं

नई सरकार में सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाया जाना जेडीयू, नौकरशाही और बिहार की जनता, तीनों के लिए इस संदेश की तरह देखा जा रहा है कि नीतीश सीएम हैं लेकिन सुप्रीम नहीं हैं. बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने इसे लेकर कहा कि इन दोनों नेताओं को डिप्टी सीएम बनाया जाना इस बात का स्पष्ट इशारा है कि बीजेपी ने नीतीश कुमार को सीएम भले बना दिया हो, वह सुप्रीमेसी नहीं देने वाली. यह एक तरह से नीतीश की घेराबंदी है जिससे वह अपनी मनमानी नहीं कर सकेंगे.

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सरकार बीजेपी की शर्तों पर चलेगी

नीतीश की एनडीए में वापसी के बाद बिहार बीजेपी के बड़े से लेकर छोटे नेता तक, सभी यही संदेश देने की कोशिश करते नजर आए कि सरकार एनडीए की नीतियों पर चलेगी. वहीं, जेडीयू की ओर से यह संदेश दिया जाता रहा कि हम सात निश्चय के अपने कॉन्सेप्ट पर ही आगे बढ़ेंगे. गठबंधन के पहले ही दिन जब नई सरकार का शपथ ग्रहण भी नहीं हुआ था, तभी इस तरह का विरोधाभास खुलकर सामने आया. एनडीए के घटक लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान सात निश्चय के धुर विरोधी रहे हैं. सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाकर बीजेपी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि सरकार उसकी शर्तों पर चलेगी.

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नीतीश आए, हम नहीं गए

गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले एक समाचार पत्र को दिए इंटरव्यू में नीतीश की एनडीए में वापसी के सवाल पर कहा था कि अगर उनकी ओर से प्रस्ताव आता है तो विचार करेंगे. अब जेडीयू की एनडीए में वापसी हो चुकी है. नीतीश कुमार की ओर से इसे लेकर प्रस्ताव दिया गया या जेडीयू को बीजेपी ने अप्रोच किया, यह दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व जाने लेकिन बीजेपी की रणनीति यही संदेश देने की है कि वही आए हैं. हम नहीं गए. इसका बड़ा उदाहरण नीतीश के सीएम के इस्तीफे से लेकर बीजेपी के समर्थन पत्र सौंपने तक की प्रक्रिया में भी देखने को मिला.

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दरअसल, नीतीश कुमार चाहते थे कि बीजेपी अपने विधायकों का समर्थन पत्र दे दे और उसके बाद वह राज्यपाल को मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा सौंप दें. दूसरी तरफ, बीजेपी पहले इस्तीफा और फिर समर्थन की बात पर अड़ी हुई थी. अंत में नीतीश कुमार को बगैर समर्थन पत्र के ही राज्यपाल से मिलकर सीएम पोस्ट से इस्तीफा देना पड़ा. सीएम पोस्ट से नीतीश के इस्तीफे के बाद उनके करीबी संजय झा बीजेपी कार्यालय गए और समर्थन के लिए औपचारिक आग्रह किया. बीजेपी विधायक दल की बैठक हुई और इस बैठक में जेडीयू को समर्थन देने का औपचारिक फैसला हुआ, सम्राट चौधरी विधायक दल के नेता चुने गए, विजय सिन्हा को उपनेता चुना गया.

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यह तय था कि बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन होगा लेकिन फिर भी यह औपचारिकता निभाई गई. बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी से लेकर पार्टी के तमाम नेता भी यही संदेश देने की कोशिश करते नजर आए कि संजय झा समर्थन मांगने आए थे. उनके आग्रह पर बिहार के हित में जेडीयू को समर्थन देने का फैसला लिया गया.

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