बिहार विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. 30 सितंबर को अंतिम वोटर लिस्ट का प्रकाशन होना है और माना जा रहा है कि अक्टूबर के पहले हफ्ते में चुनाव कार्यक्रम का ऐलान हो सकता है. चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से पहले सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन, दोनों ही प्रमुख गठबंधन एक्टिव मोड में नजर आ रहे हैं.
यात्राओं और रैलियों की पॉलिटिक्स के बीच दोनों ही गठबंधनों में सीट शेयरिंग पर भी माथापच्ची जारी है. 2025 के चुनाव से पहले तेजस्वी यादव और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की कोशिश महागठबंधन का कुनबा बढ़ाने की भी है. बिहार का पिछला चुनाव एनडीए के पांच बनाम महागठबंधन के पांच था.
एनडीए में पार्टियों की संख्या इस बार भी पांच ही है- भारतीय जनता पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (लोकतांत्रिक) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा. लेकिन महागठबंधन का संख्याबल अब तक आठ पहुंच चुका है. महागठबंधन में पहले से ही आरजेडी और कांग्रेस के साथ तीन लेफ्ट पार्टियां- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) थीं.
मुकेश सहनी की अगुवाई वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और पशुपति पारस की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) के आने से महागठबंधन का संख्याबल आठ पहुंच चुका है. आईपी गुप्ता की अगुवाई वाली इंडियन इंकलाब पार्टी (आईआईपी) के भी महागठबंधन में शामिल होने की चर्चा तेज हो गई है.
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आईपी गुप्ता अपनी पार्टी बनाने से पहले कांग्रेस में ही थे. कहा जा रहा है कि आईआईपी के महागठबंधन में शामिल होने को लेकर बातचीत अंतिम दौर में है. अगर महागठबंधन में आईआईपी की एंट्री होती है, तो विपक्षी गठबंधन का कुनबा नौ दलो का हो जाएगा. एनडीए के पंजे पर महागठबंधन के नहले के पीछे क्या रणनीति है? इसकी बात करने से पहले लालू यादव की सक्रियता को लेकर चर्चा भी जरूरी है.
चुनावी मौसम में लालू यादव भी हुए एक्टिव
दरअसल, बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव के समय लालू यादव जेल में थे और आरजेडी की अगुवाई वाले गठबंधन के चुनाव अभियान की बागडोर तेजस्वी यादव ने संभाली. तेजस्वी की अगुवाई में महागठबंधन को 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा की 110 सीटों पर जीत मिली थी. महागठबंधन तब सरकार बनाने के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से 12 सीट पीछे रह गया था, लेकिन दोनों गठबंधनों के बीच वोटों का अंतर 11 हजार 500 के करीब ही रहा था.
इस बार चुनावी मौसम में लालू भी एक्टिव मोड में नजर आ रहे हैं लालू यादव आरजेडी के पुराने नेताओं के सुख-दुख में शामिल होने वैनिटी वैन से ही पहुंचने लगे हैं. पूर्व विधायक अरुण यादव के पिता की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने आरा जाने के बाद वह पूर्व विधायक यमुना यादव के निधन पर शोक जताने मोतिहारी भी पहुंचे.
पिछले कुछ वर्षों में, खासकर तेजस्वी यादव के अग्रिम मोर्चे से अगुवाई की जिम्मेदारी संभालने के बाद लालू यादव इतने सक्रिय नहीं दिखे हैं. वह सोशल मीडिया पर भी नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
महागठबंधन के 'कुनबा विस्तार' के पीछे क्या?
पहले से महागठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग का कोई ठोस फॉर्मूला अभी निकला नहीं, और तेजस्वी यादव कुनबा बढ़ाते ही जा रहे हैं. कुनबा विस्तार के पीछे तेजस्वी प्लान क्या है? इसे समझने के लिए 2020 के चुनाव नतीजों की बात जरूरी है. 2020 के बिहार चुनाव में बछवारा सीट पर महागठबंधन की ओर से भाकपा उम्मीदवार को महज 0.3% (484) वोट के अंतर से शिकस्त मिली थी.
इसके अलावा, आरा-अमनौर और अलीनगर समेत करीब आधा दर्जन सीटें ऐसी थीं, जहां महागठबंधन की हार का अंतर एक से 2.5% के बीच रहा था. बाबूबरही सीट से जेडीयू की जीत का अंतर 6.2 फीसदी रहा था. आरजेडी इस बार क्लोज कॉन्टेस्ट वाली सीटों के नतीजों का ध्यान रखकर ही छोटे-छोटे वोटर ब्लॉक्स को टार्गेट कर चल रही है.
वीआईपी के साथ ही जेएमएम को महागठबंधन में लाने के पीछे भी यही रणनीति है. जेएमएम के जरिये 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति, तो मुकेश सहनी के जरिये 2.61 फीसदी सहनी समेत निषाद जाति की कुल 9.65 फीसदी आबादी को साधने पर महागठबंधन की नजर है. पशुपति पारस को महागठबंधन में लेने के पीछे भी तेजस्वी यादव की रणनीति वोट बेस बढ़ाने की ही है.
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पान समाज की आबादी भी करीब 1.7% है और यही वजह है कि महागठबंधन की नजर उन पर भी है. एक तरफ तेजस्वी यादव जहां यूपी से बिहार तक बीजेपी के आजमाए छोटे-छोटे वोट ब्लॉक्स वाले फॉर्मूले पर चल महागठबंधन का वोटबैंक बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
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वहीं, कोर वोटर्स को आरजेडी और उसकी अगुवाई वाले गठबंधन के पक्ष में एकजुट रखने की जिम्मेदारी लालू यादव ने संभाल रखी है. यही वजह है कि लालू यादव सोशल मीडिया के जरिये सीएम नीतीश कुमार और पीएम मोदी पर हमलावर हैं ही, पुराने नेताओं के दुख में शामिल होने भी पहुंच रहे हैं.
बिकेश तिवारी