बिहार के सियासी 'चौधरियों' के पीछे क्यों पड़े हैं प्रशांत किशोर? क्या है रणनीति

बिहार की सियासत में किस्मत आजमाने उतरे प्रशांत किशोर विपक्ष के कई दिग्गज नेताओं की किस्मत बिगाड़ते नजर आ रहे हैं. पीके ने निशाने पर उन नेताओं को ले रखा है, जिनके चेहरे के इर्द-गिर्द विपक्ष चुनावी बिसात बिछा रहा था. पीके ने हर रोज एक नया आरोप लगाकर सियासी माहौल गर्मा दिया है.

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प्रशांत किशोर के निशाने पर एनडीए के 'चौधरी' (Photo-ITG) प्रशांत किशोर के निशाने पर एनडीए के 'चौधरी' (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 01 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 2:11 PM IST

बिहार की सियासत में किंगमेकर नहीं बल्कि किंग बनने का ख़्वाब लेकर उतरे जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर अपने फुल फ़ॉर्म में हैं. पीके ने सियासी पिच पर क़दम रखा तो सबसे पहले बिहार के सियासी मिजाज को समझने के लिए दो साल तक गाँव-गाँव ख़ाक छानी. सियासी माहौल बनाने के बाद अब पीके चुनावी तपिश के बीच आक्रामक मोड में बिहार के सियासी 'चौधरियों' को अपने निशाने पर ले रखा है.

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प्रशांत किशोर ने पहले आरजेडी के चेहरा माने जाने वाले तेजस्वी यादव को निशाने पर लिया, लेकिन चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ अब उन्होंने अपनी स्टीयरिंग एनडीए के दिग्गज नेताओं की तरफ़ मोड़ दी है. पीके के निशाने पर जेडीयू के नेता अशोक चौधरी हैं, जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के क़रीबी माने जाते हैं.

पीके ने भाजपा के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और मंत्री मंगल पांडेय को लेकर मोर्चा खोल रखा है. ऐसे में सवाल उठता है कि पीके क्यों बिहार के सियासी 'चौधरियों' के पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं.

पीके की केजरीवाल मॉडल पॉलिटिक्स

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प्रशांत किशोर पूरी तरह केजरीवाल मॉडल पर राजनीति करते नज़र आ रहे हैं. अरविंद केजरीवाल ने सियासी पिच पर उतरने से पहले विपक्ष के नेताओं को भ्रष्टाचार के कटघरे में खड़े कर अपनी छवि एक ईमानदार नेता और पार्टी की बनाई थी, इसका सियासी लाभ भी उन्हें मिला. अब उसी तर्ज़ पर पीके भी बिहार के उन नेताओं को अपने टारगेट पर ले रखा है, जो अपनी-अपनी पार्टियों के 'चौधरी' यानी मुखिया या फिर चेहरा हैं. इन्हीं नेताओं के इर्द-गिर्द चुनावी ताना-बाना बुना जा रहा है.

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पीके हर रोज़ सिर्फ़ एक नया आरोप ही नहीं लगा रहे हैं, बल्कि सबूत के तौर पर दस्तावेज़ दिखाकर सियासी माहौल में बने हुए हैं, जिसके चलते भाजपा और जेडीयू दोनों ही पार्टियां बैकफ़ुट पर खड़ी नज़र आ रही हैं. इसके चलते जेडीयू और भाजपा के अंदर से भी अपने नेताओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठने लगी है. बिहार चुनाव के सियासी माहौल के केंद्र में पीके बने हुए हैं.

पीके के निशाने पर कितने 'चौधरी'?

प्रशांत किशोर ने अपने निशाने पर नीतीश कुमार के क़रीबी मंत्री और जेडीयू नेता अशोक चौधरी, भाजपा नेता व उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और मंत्री मंगल पांडेय को ले रखा है. इसके अलावा, भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल उनके निशाने पर हैं. इन नेताओं को टारगेट पर लेना पीके की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, क्योंकि पार्टी अपने इन्हीं नेताओं को आगे करके बिहार की चुनावी जंग जीतने की कवायद में है. ऐसे में पीके ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनकी छवि को धूमिल करने का काम किया है.

नीतीश के राइट हैंड अशोक चौधरी

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के क़रीबी नेताओं में अशोक चौधरी का नाम आता है. नीतीश सरकार में अशोक चौधरी ग्रामीण कार्य मंत्री हैं, जेडीयू के दलित चेहरा माने जाते हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में फ़्रंटफ़ुट पर उतरकर अशोक चौधरी जेडीयू के लिए बैटिंग कर रहे थे. प्रशांत किशोर ने इस बार चुनाव की तपिश बढ़ने के साथ अशोक चौधरी को निशाने पर ले लिया, जिसे लेकर जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि अशोक चौधरी को पूरी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि पहली बार जेडीयू अग्निपरीक्षा से गुज़र रहा है, पहली बार हमारी पार्टी पर ऐसे गंभीर आरोप लगे हैं. हमारे नेता नीतीश कुमार की भ्रष्टाचार के मामले में ज़ीरो टॉलरेंस की नीति है.

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पीके ने आरोप लगाया कि अशोक चौधरी और उनके परिवार ने पिछले दो साल में क़रीब 200 करोड़ रुपये की ज़मीन ख़रीदी है. इसको लेकर प्रशांत किशोर ने 4 ज़मीन के सौदे की लिस्ट जारी की है. इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि अशोक चौधरी के ख़िलाफ़ उनके पास और भी सबूत हैं. जब अशोक चौधरी ने 100 करोड़ का मानहानि का नोटिस भेजा तो पीके और भी आक्रामक तेवर अपना लिया. इसके चलते अशोक चौधरी पर भले ही जेडीयू ने कोई एक्शन न लिया हो, लेकिन नीतीश कुमार ने उनसे पूरी तरह दूरी बनाए रखी है. इस तरह फ़्रंटफ़ुट पर रहने वाले अशोक चौधरी अब बैकफ़ुट पर खड़े नज़र आ रहे हैं.

बीजेपी के 'चौधरी' कटघरे में खड़े

बिहार में भाजपा ने उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल को आगे करके चुनावी जंग जीतने की योजना बना रखी थी ताकि ओबीसी वोटों को साधा जा सके. ऐसे में दोनों ही नेता फ़्रंटफ़ुट पर उतरकर सियासी बैटिंग कर रहे थे, लेकिन प्रशांत किशोर ने अब उन्हें अपने निशाने पर ले रखा है. पीके सम्राट चौधरी पर नाम बदलने, हत्या करने और सातवीं फेल होने के आरोप लगा रहे हैं. इतना ही नहीं, उन्हें छह महीने जेल में भी रहने की बात कर रहे हैं. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर पीके ने किशनगंज में मेडिकल कॉलेज पर क़ब्ज़ा करने के आरोप लगाए हैं.

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प्रशांत किशोर ने भाजपा के आक्रामक नेता मंगल पांडेय को निशाने पर ले रखा है. मंगल पांडेय बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं. पीके ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. कोविड महामारी के दौरान मंगल पांडेय ने दिल्ली में 86 लाख रुपये में फ़्लैट ख़रीदा, जिसमें उनकी मदद दिलीप जायसवाल ने की. इसके साथ ही कहा कि पैसा लेते ही मंगल पांडेय ने दिलीप जायसवाल के कॉलेज को डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्ज़ा दे दिया. पीके ने भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और सांसद संजय जायसवाल को तेल चोर बता रहे हैं. संजय जायसवाल भाजपा के दिग्गज नेता माने जाते हैं. इस तरह पीके ने उन्हें भी सियासी कटघरे में खड़ा कर बैकफ़ुट पर ढकेल दिया है.

भाजपा के जिन नेताओं पर पीके ने आरोप लगाए हैं, उनके ख़िलाफ़ पार्टी से ही आवाज़ उठने लगी है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता आरके सिंह ने कहा था कि दिलीप जायसवाल और सम्राट चौधरी को आरोपों का जवाब देना चाहिए. इससे सरकार और पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है. इस तरह साफ़ है कि भाजपा कशमकश में फँस गई है.

बीजेपी के सियासी हथियार पर पीके का वार

बिहार में लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाले के आरोपों ने उनकी 'सोशल जस्टिस' की राजनीति को काफ़ी नुक़सान पहुँचाया, तब ही नीतीश कुमार को उभरने का मौक़ा मिला था. उसी तरह, अगर नीतीश की 'ईमानदार नेता' वाली छवि ख़राब होगी तो नुक़सान की संभावना ज़्यादा रहेगी. पीके लगातार नीतीश की उसी छवि को चोट पहुंचाने में जुटे हैं. नीतीश कुमार की पूरी राजनीति ईमानदारी पर टिकी है, लेकिन उस पर सवाल खड़े होने लगे हैं.

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भाजपा बिहार में अभी तक लालू यादव के परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर सियासी नैरेटिव सेट करती रही है, लेकिन पीके के आरोपों के बाद भाजपा कशमकश में फँस गई है. अशोक चौधरी जहाँ नीतीश कुमार के बेहद क़रीब हैं तो सम्राट चौधरी और दिलीप जायसवाल भाजपा नेतृत्व के क़रीबी माने जाते हैं. ऐसे में भाजपा चुनाव में कैसे लालू परिवार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मुद्दे को धार दे पाएगी जब उसके नेता ख़ुद सियासी कटघरे में खड़े हैं.

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