यूरेनियम संवर्धन (Uranium Enrichment) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए यूरेनियम को परमाणु ऊर्जा या हथियार बनाने के लिए तैयार किया जाता है. कई देश, जैसे अर्जेंटीना, ब्राजील, जापान और नीदरलैंड, इस प्रक्रिया को शांतिपूर्ण उद्देश्यों, जैसे बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ईरान का यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम दुनियाभर में विवादों का केंद्र क्यों बना हुआ है, जबकि बाकी देशों के कार्यक्रमों पर इतना हंगामा नहीं होता?
यूरेनियम संवर्धन क्या है?
यूरेनियम संवर्धन वह प्रक्रिया है, जिसमें यूरेनियम-235 (U-235) की मात्रा को बढ़ाया जाता है. प्राकृतिक यूरेनियम में U-235 की मात्रा केवल 0.7% होती है, जिसे सेंट्रीफ्यूज मशीनों की मदद से बढ़ाया जाता है.
अर्जेंटीना, ब्राजील, जापान और नीदरलैंड जैसे देश अपने संवर्धन को शांतिपूर्ण उद्देश्यों तक सीमित रखते हैं. अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हैं. लेकिन ईरान का कार्यक्रम कई कारणों से विवादों में है.
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ईरान के यूरेनियम संवर्धन पर विवाद के कारण
1. उच्च स्तर का संवर्धन
ईरान ने हाल के वर्षों में यूरेनियम को 60% तक संवर्धित किया है, जो शांतिपूर्ण उपयोग के लिए जरूरी स्तर (3-5%) से बहुत ज्यादा है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के अनुसार, 60% संवर्धन केवल उन देशों में देखा जाता है जो परमाणु हथियार बनाने की क्षमता रखते हैं.
तुलना: अर्जेंटीना, ब्राजील, जापान और नीदरलैंड अपने यूरेनियम को 5% से कम स्तर पर संवर्धित करते हैं, जो परमाणु रिएक्टरों के लिए पर्याप्त है. इन देशों का संवर्धन केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होता है. IAEA की निगरानी में रहता है.
ईरान की स्थिति: 60% संवर्धन से ईरान कुछ ही हफ्तों में हथियार-ग्रेड यूरेनियम (90%) बना सकता है. IAEA का अनुमान है कि ईरान के पास 400 किलोग्राम से ज्यादा 60% संवर्धित यूरेनियम है, जो 10 परमाणु बम बनाने के लिए काफी है.
2. गुप्त गतिविधियां और NPT का उल्लंघन
ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को कई बार गुप्त रखा, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का भरोसा टूटा.
AMAD परियोजना: 2003 तक ईरान ने गुप्त रूप से AMAD परियोजना के तहत परमाणु हथियारों पर काम किया, जो गैर-कानूनी था.
अघोषित सुविधाएं: 2009 में ईरान ने फोर्डो (Fordow) संवर्धन सुविधा का खुलासा किया, लेकिन केवल तब जब पश्चिमी खुफिया एजेंसियों ने इसे उजागर किया. IAEA के अनुसार, ईरान को ऐसी सुविधाओं की घोषणा पहले करनी चाहिए थी.
IAEA के साथ असहयोग: ईरान ने IAEA के निरीक्षकों को कई बार अपने परमाणु ठिकानों तक पहुंच से रोका. 2025 में IAEA ने 20 साल में पहली बार ईरान को अपने परमाणु दायित्वों का पालन न करने का दोषी पाया.
तुलना: अर्जेंटीना, ब्राजील, जापान और नीदरलैंड पूरी तरह से IAEA की निगरानी में काम करते हैं. परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का पालन करते हैं. इन देशों ने कभी गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम नहीं चलाया.
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3. क्षेत्रीय और भू-राजनीतिक तनाव
ईरान का मध्य पूर्व में इजरायल, सऊदी अरब और अमेरिका के साथ तनावपूर्ण रिश्ता इसका परमाणु कार्यक्रम विवादास्पद बनाता है.
इजरायल के खिलाफ बयानबाजी: ईरान के कुछ नेता इजरायल को नष्ट करने की बात करते हैं, जिससे यह आशंका बढ़ती है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम सैन्य उद्देश्यों के लिए हो सकता है.
क्षेत्रीय खतरा: इजरायल, जो स्वयं परमाणु हथियारों वाला देश माना जाता है, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने लिए खतरा मानता है. 2025 में इजरायल और अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले किए, जिसमें नतांज (Natanz) और फोर्डो जैसे केंद्र क्षतिग्रस्त हुए.
आतंकवाद का समर्थन: पश्चिमी देशों का आरोप है कि ईरान हमास और हिजबुल्लाह जैसे समूहों को समर्थन देता है, जिससे उसके परमाणु कार्यक्रम पर और संदेह बढ़ता है.
तुलना: अर्जेंटीना, ब्राजील, जापान और नीदरलैंड का किसी देश के साथ ऐसा तनावपूर्ण रिश्ता नहीं है. ये देश क्षेत्रीय या वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा नहीं माने जाते.
4. गैर-कानूनी तकनीक हासिल करना
ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम के लिए तकनीक गैर-कानूनी तरीकों से हासिल की.
A.Q. खान नेटवर्क: ईरान ने पाकिस्तान के A.Q. खान नेटवर्क और जर्मन कंपनियों से गुप्त रूप से सेंट्रीफ्यूज तकनीक खरीदी, जो NPT का उल्लंघन था.
तुलना: जापान, नीदरलैंड और जर्मनी जैसे देश अपनी तकनीक को पारदर्शी और कानूनी तरीकों से विकसित करते हैं. अर्जेंटीना और ब्राजील ने भी अपनी तकनीक को अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत विकसित किया.
5. JCPOA और प्रतिबंधों का उल्लंघन
2015 में ईरान और विश्व शक्तियों (P5+1: अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन, जर्मनी) के बीच जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) समझौता हुआ, जिसमें ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और IAEA की निगरानी स्वीकार करने का वादा किया था. बदले में, उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हटाए गए.
अमेरिका का हटना: 2018 में अमेरिका ने JCPOA से हटकर ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगा दिए. इसके जवाब में ईरान ने 2019 से समझौते की शर्तों का उल्लंघन शुरू किया, जैसे यूरेनियम स्टॉकपाइल को 22 गुना बढ़ाना और 60% तक संवर्धन करना.
तुलना: अन्य देश, जैसे जापान और नीदरलैंड, NPT और IAEA के नियमों का पूरी तरह पालन करते हैं. किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन नहीं करते.
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6. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण
ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को राष्ट्रीय गौरव और स्वतंत्रता का प्रतीक मानता है. ईरानी नेताओं का कहना है कि यूरेनियम संवर्धन उनका हक है, क्योंकि औपनिवेशिक शक्तियों ने उन्हें दबाया था.
राष्ट्रीय पहचान: ईरान का मानना है कि परमाणु तकनीक उसे क्षेत्रीय शक्ति बनाएगी. यह दृष्टिकोण पश्चिमी देशों के साथ टकराव का कारण बनता है, जो इसे सैन्य महत्वाकांक्षा मानते हैं.
तुलना: जापान और नीदरलैंड जैसे देश अपने परमाणु कार्यक्रम को केवल ऊर्जा उत्पादन तक सीमित रखते हैं और इसे राष्ट्रीय गौरव से नहीं जोड़ते.
अन्य देशों के साथ तुलना
ईरान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव
प्रतिबंध: ईरान पर संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के कड़े आर्थिक प्रतिबंध हैं, जो उसकी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं. अन्य देशों पर ऐसे प्रतिबंध नहीं हैं.
सैन्य हमले: इजरायल और अमेरिका ने 2025 में ईरान के परमाणु ठिकानों (नतांज, फोर्डो, इस्फहान) पर हमले किए, क्योंकि वे इसे खतरा मानते हैं.
IAEA की सख्ती: IAEA ने ईरान को बार-बार चेतावनी दी है कि वह अपने परमाणु दायित्वों का पालन करे, लेकिन ईरान ने इसका विरोध किया.
ऋचीक मिश्रा