भारतीय सेना का दक्षिणी कमांड त्रिशूल अभ्यास के तहत कई त्रि-सेवा युद्धाभ्यास कर रहा है. यह अभ्यास जमीन, समुद्र और हवा के पूर्ण एकीकरण को साबित करता है. 'जय' का मंत्र – संयुक्तता (जॉइंटनेस), आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भरता) और इनोवेशन पर यहां काम कर रहा है. यह अभ्यास सशस्त्र बलों की बहु-क्षेत्रीय क्षमताओं को मजबूत कर रहा है. इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, साइबर, ड्रोन और एयर डिफेंस जैसे क्षेत्रों में एकीकरण पर फोकस है.
त्रिशूल अभ्यास भारतीय सशस्त्र बलों की बहु-क्षेत्रीय क्षमताओं को दिखाता है. यह रक्षा में आत्मनिर्भरता पर जोर देता है. इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, साइबर ऑपरेशन, ड्रोन और काउंटर-ड्रोन, खुफिया, निगरानी, टोह और एयर डिफेंस कंट्रोल जैसे क्षेत्र कवर होते हैं. त्रि-सेवा की तैयारी आभासी और भौतिक दोनों क्षेत्रों में प्रभुत्व के लिए जमीन, समुद्र और हवा के एकीकरण पर आधारित है. संयुक्त आग (जॉइंट फायर्स) के लिए समन्वय पर ध्यान है.
यह भी पढ़ें: ईरान के पास 10000 किलोमीटर रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल, अमेरिका तक पहुंच... अब क्या करेंगे ट्रंप?
थार रेगिस्तान में दक्षिणी कमांड की टुकड़ियां मरुज्वाला और अखंड प्रहार अभ्यास कर रही हैं. ये अभ्यास संयुक्त हथियार संचालन, गतिशीलता और ज्वाइंट फायर इंटीग्रेशन को दिखाते हैं. वास्तविक स्थितियों में युद्धाभ्यास हो रहा है. अंत में एक बड़ा युद्ध अभ्यास होगा, जो सटीक निशाना लगाने और बहु-क्षेत्रीय समन्वय को जांचेगा.
कच्छ क्षेत्र में सेना, नौसेना, वायुसेना, तटरक्षक और बीएसएफ का संयुक्त अभ्यास हो रहा है. सिविल प्रशासन के साथ निकट समन्वय का रिहर्सल चल रहा है. यह सैन्य-सिविल फ्यूजन दृष्टिकोण दिखाता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के एकीकरण को मजबूत करता है. सभी सेवाओं का सहयोग राष्ट्रीय सुरक्षा की एकजुट ताकत का प्रतीक है.
यह भी पढ़ें: फिशन बम, थर्मोन्यूक्लियर बम, न्यूट्रॉन और डर्टी बम... कितने तरह के परमाणु बम होते हैं?
त्रिशूल अभ्यास का अंतिम चरण सौराष्ट्र तट पर संयुक्त एम्फीबियन अभ्यास से होगा. दक्षिणी कमांड की एम्फीबियन फोर्सेस बीच लैंडिंग संचालन करेंगी. यह पूर्ण-स्पेक्ट्रम जमीन-समुद्र-हवा एकीकरण को दिखाएगा. भारतीय सशस्त्र बलों की शक्ति प्रक्षेपण और बहु-क्षेत्रीय सहक्रिया की क्षमता दिखेगी.
शिवानी शर्मा