यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने सोमवार को फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक ऐतिहासिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत यूक्रेन को 100 राफेल लड़ाकू विमान मिलेंगे. रूस के बढ़ते ड्रोन और मिसाइल हमलों के बीच यह सौदा यूक्रेन की लंबी अवधि की सैन्य क्षमता को मजबूत करने के प्रयासों का हिस्सा है.
जेलेंस्की फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ वार्ता के लिए पेरिस पहुंचे, जहां दोनों नेताओं ने फ्रांस के विलाकुब्ले सैन्य एयरबेस पर इस समझौते को औपचारिक रूप से मंजूरी दी.
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जेलेंस्की ने फ्रांस की मीडिया से बातचीत में पुष्टि की कि उन्होंने 100 राफेल विमान ऑर्डर किए हैं. एलिसे पैलेस ने भी इस संख्या की पुष्टि की, हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि ये विमान फ्रांस के मौजूदा स्टॉक्स से आएंगे या यूक्रेन द्वारा नए ऑर्डर के रूप में खरीदे जाएंगे. टीवी फुटेज में दोनों नेताओं को राफेल जेट के सामने दस्तावेजों पर साइन करते हुए देखा गया.
जेलेंस्की ने रविवार को एक्स पर कहा था कि फ्रांस के साथ "ऐतिहासिक समझौता" तैयार है, जो यूक्रेन की कॉम्बैट एविएशन और एयर डिफेंस क्षमताओं को मजबूत करेगा. उन्होंने कहा कि यह सौदा रूस के आक्रामक हमलों का मुकाबला करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.
राफेल जेट से यूक्रेन का एयर डिफेंस मजबूत होगा
पिछले कुछ हफ्तों से फ्रांस और यूक्रेन के बीच बातचीत चल रही थी कि कैसे फ्रांस यूक्रेन की एयर डिफेंस को और मजबूत कर सकता है. हालांकि मैक्रों की सरकार आंतरिक राजनीतिक और बजटीय चुनौतियों से जूझ रही है, फिर भी फ्रांस ने यूक्रेन को नई सैन्य सहायता देने का वादा किया है. फ्रांस पहले ही मिराज लड़ाकू विमान और Aster-30 मिसाइलें देने की घोषणा कर चुका है.
राफेल सौदा एक 10 साल की रणनीतिक एविएशन पार्टनरशिप का हिस्सा माना जा रहा है. सूत्रों के अनुसार, कुछ विमान फ्रांस के मौजूदा बेड़े से दिए जा सकते हैं, जबकि बाकी लंबी अवधि में निर्मित होंगे. यूक्रेन का लक्ष्य अपनी कुल वायुसेना को 250 फाइटर जेट्स तक बढ़ाना है, जिनमें अमेरिकी F-16 और स्वीडन के ग्रिपेन शामिल हैं.
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भविष्य की लड़ाई के लिए राफेल खरीद रहा यूक्रेन
हालांकि राफेल जैसे एडवांस्ड जेट उड़ाने के लिए लंबे और सख्त ट्रेनिंग प्रोग्राम की जरूरत होगी, लेकिन यूक्रेन मानता है कि ये विमान भविष्य की लड़ाई में निर्णायक भूमिका निभाएंगे.
जेलेंस्की की इस यात्रा में और भी रक्षा समझौते हो सकते हैं, जिनमें SAMP/T एयर डिफेंस सिस्टम, नई पीढ़ी की मिसाइलें और एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी शामिल हो सकती हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने बड़े सौदे की फंडिंग कैसे होगी, जो युद्ध में अब तक अमेरिका पर निर्भर रहा है.
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