जिस जवान की लाश तक नहीं ले रहा था PAK, भारतीय ब्रिगेडियर ने पहचानी उसकी बहादुरी... दिया सर्वोच्च सैन्य सम्मान

करगिल युद्ध में पाकिस्तान ने कैप्टन करनाल शेर खान की लाश लेने से मना कर दिया था. भारतीय ब्रिगेडियर ने जब उस जवान की बहादुरी की चर्चा दुनिया में की, तब पाकिस्तान ने अपना सर्वोच्च सम्मान दिया. हाल ही में जनरल असीम मुनीर उनकी शहादत का सम्मान किया.

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ब्रिगेडियर बाजवा की चिट्ठी ने दिलाई पाकिस्तान के हीरो की बहादुरी को पहचान. ब्रिगेडियर बाजवा की चिट्ठी ने दिलाई पाकिस्तान के हीरो की बहादुरी को पहचान.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 8:38 PM IST

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने करगिल युद्ध के हीरो कैप्टन करनाल शेर खान को उनकी 26वीं शहादत की सालगिरह पर श्रद्धांजलि दी. लेकिन यह बात कम लोग जानते हैं कि उनकी बहादुरी को सबसे पहले भारत के ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा ने पहचाना.

पाकिस्तान ने शुरू में करनाल शेर खान को नकार दिया था. उनकी लाश लेने से इनकार कर दिया था. ब्रिगेडियर बाजवा की एक चिट्ठी ने उनकी वीरता को दुनिया के सामने लाया, जिसके बाद उन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य सम्मान निशान-ए-हैदर मिला.

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करगिल युद्ध में करनाल शेर खान की वीरता

1999 के करगिल युद्ध में कैप्टन करनाल शेर खान पाकिस्तान की 12वीं नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री के कप्तान थे. वे गुलटेरी में 17000 फीट की ऊंचाई पर अपनी यूनिट का नेतृत्व कर रहे थे. भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए भारी हमला किया, जो युद्ध का एक महत्वपूर्ण और खूनी मोर्चा था.

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भारतीय सेना की दो बटालियनों ने मशीनगनों और तोपों के साथ हमला किया. कैप्टन शेर खान की यूनिट संख्या में बहुत कम थी. फिर भी, उन्होंने डटकर मुकाबला किया. 5 जुलाई 1999 को नजदीकी युद्ध में मशीनगन की गोलियों से घायल होकर वे शहीद हो गए. 

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पाकिस्तान ने ठुकराई थी लाश

करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने शुरू में अपनी सेना की भागीदारी से इनकार किया. दावा किया कि लड़ाई में शामिल लोग मुजाहिदीन थे. जब भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर कब्जा किया, तो कैप्टन शेर खान की लाश मिली, जिसकी पहचान उनके पास मौजूद दस्तावेजों से हुई. लेकिन पाकिस्तान ने उनकी लाश लेने से इनकार कर दिया.

भारत ने 12 जुलाई 1999 को पाकिस्तान को सूचित किया कि वह कैप्टन शेर खान और कैप्टन इम्तियाज मलिक की लाशें सौंपना चाहता है. लेकिन पाकिस्तान ने कोई जवाब नहीं दिया. 15 जुलाई 1999 को भारत सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि दोनों सैनिकों की लाशें भारतीय सेना के पास हैं. उनकी पहचान दस्तावेजों से हुई है.

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भारतीय ब्रिगेडियर की चिट्ठी ने बनाया हीरो

भारतीय सेना के ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा, जो टाइगर हिल पर भारतीय बलों का नेतृत्व कर रहे थे. कैप्टन शेर खान की बहादुरी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने पाकिस्तान सरकार के नाम एक चिट्ठी लिखी. इस चिट्ठी में उन्होंने शेर खान की वीरता की प्रशंसा की और इसे उनकी जेब में रख दिया.

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लाश को वापस करने से पहले यह चिट्ठी उनके सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए थी. ब्रिगेडियर बाजवा ने 2019 में X पर लिखा कि हां, कैप्टन करनाल शेर खान ने मेरी यूनिट (8 सिख) के खिलाफ टाइगर हिल पर लड़ाई लड़ी. लेकिन पाकिस्तान ने उनकी लाश लेने से मना कर दिया. उनकी बहादुरी की प्रशंसा मैंने लिखी और कागज उनकी जेब में डाला. बाद में उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार मिला.

अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद माना पाकिस्तान

जब अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति (ICRC) ने 13 जुलाई 1999 को भारत से संपर्क किया. बताया कि पाकिस्तान ने दो सैनिकों की लाशों के बारे में बात करने को कहा, तब जाकर पाकिस्तान ने कैप्टन शेर खान की लाश स्वीकार की. इसके बाद 2000 में उन्हें मरणोपरांत निशान-ए-हैदर से सम्मानित किया गया.

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पाकिस्तान के राष्ट्रपति रफीक तरार कैप्टन करनाल शेर खान की पिता को निशान-ए-हैदर सम्मान देते हुए. (फाइल फोटोः AFP)

असीम मुनीर का श्रद्धांजलि समारोह

26 साल बाद, 5 जुलाई 2025 को पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने खैबर पख्तूनख्वा के स्वाबी में कैप्टन शेर खान की कब्र पर श्रद्धांजलि दी. उनके साथ वरिष्ठ सैन्य अधिकारी और शेर खान का परिवार भी था. पाकिस्तान के DG-ISPR ने X पर लिखा कि कैप्टन करनाल शेर खान ने 1999 के करगिल युद्ध में अदम्य साहस और देशभक्ति दिखाई. उनकी शहादत सशस्त्र बलों और राष्ट्र के लिए प्रेरणा है.

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