'ऑपरेशन कहुटा' जिसपर दो वेब सीरीज धड़ाधड़ आ गई... आखिर क्या है PAK में जासूसी के सीक्रेट मिशन की असली कहानी?

ऑपरेशन कहुटा भारत के सबसे साहसी खुफिया मिशनों में से एक था, जिसने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को उजागर किया था. रॉ के जासूसों ने असंभव को संभव करने की कोशिश की, लेकिन एक राजनीतिक गलती ने इस मिशन को नाकाम कर दिया.

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पाकिस्तान अपने ज्यादातर परमाणु परीक्षण बलूचिस्तान में करता आया है. (File Photo: AFP) पाकिस्तान अपने ज्यादातर परमाणु परीक्षण बलूचिस्तान में करता आया है. (File Photo: AFP)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 6:40 PM IST

हाल ही में दो वेब सीरीज ने भारत में खूब सुर्खियां बटोरी हैं. दोनों ही सीरीज 1970 के दशक में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के एक गुप्त मिशन ‘ऑपरेशन कहुटा’ पर आधारित हैं. इस मिशन का मकसद था पाकिस्तान के गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम को उजागर करना. लेकिन क्या थी इस मिशन की असली कहानी? क्यों इसे इतना महत्वपूर्ण माना जाता है. इसमें क्या गलत हुआ? 

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ऑपरेशन कहुटा क्या था?

ऑपरेशन कहुटा भारत की खुफिया एजेंसी रॉ द्वारा 1977 में शुरू किया गया एक गुप्त मिशन था, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम की जानकारी हासिल करना और उसे रोकना था. पाकिस्तान का यह परमाणु कार्यक्रम कहुटा रिसर्च लैबोरेट्रीज (KRL) में चल रहा था, जो एक छोटे से शहर कहुटा में स्थित था. इस शहर को इतना गुप्त रखा गया था कि यह नक्शों पर भी आसानी से नहीं मिलता था.

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1974 में भारत ने पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण (ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा) किया था, जिसने पाकिस्तान को परमाणु हथियार बनाने के लिए प्रेरित किया. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा था कि हम परमाणु बम बनाएंगे, भले ही हमें घास खाना पड़े. इस दृढ़ संकल्प के साथ, डॉ. अब्दुल कादिर खान (पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक) ने कहुटा में गुप्त यूरेनियम यूरेनियम एनरिचमेंट गुप्त संयंत्र शुरू किया.

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भारत को यह जानकारी थी कि पाकिस्तान परमाणु हथियार बना रहा है, लेकिन पक्का सबूत नहीं था. रॉ का मिशन था इसकी पुष्टि करना और अगर संभव हो तो इसे रोकना. इस मिशन में इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने भी रॉ की मदद की, क्योंकि इजरायल को डर था कि पाकिस्तान का परमाणु बम, जिसे इस्लामिक बम कहा जा रहा था, मध्य पूर्व में उनके लिए खतरा बन सकता है.

कैसे चला ऑपरेशन कहुटा?

रॉ ने 1970 के दशक में पाकिस्तान में अपनी जासूसी का एक मजबूत नेटवर्क बना लिया था. इसके प्रमुख रमेश्वर नाथ काव (R.N. काव), जिन्हें ‘कावबॉय’ के नाम से जाना जाता था. रॉ के जासूसों ने कहुटा में परमाणु गतिविधियों की अफवाहें सुनीं, लेकिन पक्का सबूत जुटाना मुश्किल था. कहुटा संयंत्र में घुसपैठ करना लगभग असंभव था, क्योंकि इसे पाकिस्तानी सेना और ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) ने कड़े सुरक्षा घेरे में रखा था.

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रॉ ने एक अनोखा तरीका अपनाया. उन्होंने पता लगाया कि कहुटा के परमाणु वैज्ञानिक एक स्थानीय नाई की दुकान पर बाल कटवाने जाते हैं. रॉ के जासूसों ने इस नाई की दुकान से वैज्ञानिकों के कटे हुए बाल इकट्ठा किए. इन बालों को भारत लाकर प्रयोगशाला में जांचा गया. उनमें रेडिएशन के निशान मिले. यह पक्का सबूत था कि कहुटा में प्लूटोनियम या यूरेनियम का संवर्धन हो रहा है. पाकिस्तान परमाणु बम बना रहा है.

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इस जानकारी ने रॉ को यह पुष्टि करने में मदद की कि कहुटा में परमाणु संयंत्र है. इसके बाद रॉ ने इस जानकारी को इजरायल के साथ साझा किया, जो कहुटा पर हवाई हमला करने की योजना बना रहा था, जैसा कि उसने 1981 में इराक के ओसिराक परमाणु रिएक्टर पर किया था.

क्या थी योजना?

1981 में भारत और इजरायल ने मिलकर कहुटा संयंत्र पर हवाई हमले की योजना बनाई थी. इस योजना को ओसिराक कॉन्टिनजेंसी के नाम से जाना गया, क्योंकि यह इजरायल के इराक हमले से प्रेरित थी. योजना थी कि इजरायल के F-15 और F-16 फाइटर जेट अरब सागर के रास्ते भारत के जामनगर एयरबेस पर पहुंचेंगे.

वहां से वे उधमपुर में ईंधन भरेंगे और फिर कहुटा पर हमला करेंगे. भारत को केवल हवाई क्षेत्र और एयरबेस उपलब्ध कराने थे, जबकि हमला इजरायल के पायलट और हथियारों से होना था.

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हालांकि, इस योजना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. अमेरिका को इसकी भनक लग गई थी. उसने पाकिस्तान को चेतावनी दी. पाकिस्तान ने तुरंत कहुटा के आसपास अपनी हवाई सुरक्षा बढ़ा दी, जिससे हमले का आश्चर्य तत्व (सरप्राइज एलिमेंट) खत्म हो गया.

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कहां हुई चूक?

ऑपरेशन कहुटा की सबसे बड़ी चूक भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की वजह से हुई. 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद, मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. वे रॉ और खुफिया गतिविधियों के खिलाफ थे. उनका मानना था कि यह इंदिरा गांधी की नीतियों का हिस्सा था. उन्होंने रॉ का बजट 30% कम कर दिया. इसके संचालन को सीमित कर दिया.

सबसे बड़ा झटका तब लगा जब देसाई ने पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक के साथ एक टेलीफोन बातचीत में रॉ के नेटवर्क और कहुटा के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी लीक कर दी. उन्होंने जिया को बता दिया कि भारत को उनके गुप्त परमाणु कार्यक्रम की जानकारी है.

इस जानकारी के बाद पाकिस्तान ने तुरंत कार्रवाई की. ISI ने रॉ के जासूसों को ढूंढ निकाला. कई एजेंटों को बेरहमी से मार दिया गया. इससे रॉ का पाकिस्तान में जासूसी नेटवर्क पूरी तरह ध्वस्त हो गया. भारत की खुफिया जानकारी एक दशक पीछे चली गई.

इसके अलावा, देसाई ने इजरायल को कहुटा पर हमले के लिए भारत में ईंधन भरने की सुविधा देने से भी मना कर दिया. इससे हमले की योजना रद्द हो गई. बाद में, इंदिरा गांधी ने भी इस योजना को मंजूरी नहीं दी, क्योंकि वे एक पूर्ण युद्ध का जोखिम नहीं लेना चाहती थीं.

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इसके बाद क्या हुआ? 

पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम: ऑपरेशन कहुटा के विफल होने के बाद, पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को और तेज कर दिया. 1983 में कहुटा में पहला परमाणु डिवाइस का ठंडा परीक्षण (कोल्ड टेस्ट) सफल रहा. 1998 में पाकिस्तान ने छह परमाणु परीक्षण किए।

रॉ का नुकसान: रॉ के कई जासूसों की जान गई. भारत का खुफिया नेटवर्क कमजोर हो गया.

राजनीतिक विवाद: कांग्रेस ने हाल ही में दावा किया कि मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार ने इस मिशन को असफल कर पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बनने में मदद की.

पाकिस्तान का सम्मान: मोरारजी देसाई को पाकिस्तान ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा, जिसे कई लोग उनकी इस गलती से जोड़कर देखते हैं.

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