अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बड़ा दावा किया. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, रूस, चीन और उत्तर कोरिया गुप्त रूप से परमाणु परीक्षण कर रहे हैं. ट्रंप ने इसे आधार बनाकर अमेरिका को 33 साल बाद परमाणु परीक्षण फिर शुरू करने का आदेश दिया. उन्होंने पाकिस्तान पर सीधा इशारा करते हुए कहा कि पाकिस्तान दुनिया से छिपाकर परमाणु हथियारों का परीक्षण कर रहा है. ये बातें हथियारों की होड़ को फिर तेज करने का संकेत दे रही हैं. लेकिन सवाल ये है – परमाणु परीक्षण के लिए कितनी तैयारी लगती है?
परमाणु परीक्षण का मतलब है एक परमाणु बम को विस्फोट करके उसकी ताकत, डिजाइन और असर को जांचना. ये परीक्षण ज्यादातर जमीन के नीचे (अंडरग्राउंड) होते हैं, ताकि धमाका छिपा रहे और पर्यावरण को कम नुकसान हो. पाकिस्तान ने आखिरी बार 1998 में चगई पहाड़ियों में 6 परमाणु परीक्षण किए थे. तब से वो गुप्त परीक्षणों के शक में रहा है. ट्रंप का इशारा उसी की ओर है – क्या पाकिस्तान फिर से ऐसा कुछ कर रहा है?
यह भी पढ़ें: भारत के खिलाफ टू-फ्रंट वॉर की साजिशें बेअसर, अब खुद PAK को सता रहा 3-फ्रंट वॉर का डर
परमाणु परीक्षण कोई आसान काम नहीं. ये वैज्ञानिक, तकनीकी, लॉजिस्टिकल और राजनीतिक तैयारी का मिश्रण है. एक छोटे देश के लिए भी इसमें महीनों से सालों लग सकते हैं.
डिजाइन बनाना: वैज्ञानिकों को बम का नया मॉडल डिजाइन करना पड़ता है. इसमें कंप्यूटर सिमुलेशन से विस्फोट की गति, ऊर्जा और रेडियोएक्टिविटी चेक की जाती है. पाकिस्तान के पास खान रिसर्च लैबोरेट्रीज (KRL) और नेशनल डिफेंस कॉम्प्लेक्स (NDC) जैसी जगहें हैं, जहां 500-1,000 वैज्ञानिक काम करते हैं.
सामग्री जुटाना: यूरेनियम या प्लूटोनियम को एनरिच करना. पाकिस्तान के पास कहोटा में यूरेनियम एनरिचमेंट प्लांट है, लेकिन ये गोपनीय है. ट्रंप का दावा है कि पाकिस्तान गुप्त रूप से ये कर रहा है.
टेस्ट डिवाइस बनाना: बम को छोटा और सुरक्षित बनाना. इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, ट्रिगर सिस्टम और फ्यूज फिट करने पड़ते हैं.
यह भी पढ़ें: 1971 के बाद पाकिस्तान का सबसे बुरा साल... अक्तूबर तक 1100 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी मारे गए
टेस्ट साइट चुनना: पाकिस्तान में चगई या किरठार पहाड़ियां इस्तेमाल होती हैं. वहां गहरा गड्ढा (500-1,000 मीटर) खोदना पड़ता है. ये काम मशीनों से होता है, लेकिन गुप्त रखना मुश्किल.
उपकरण लगाना: सिस्मोग्राफ (भूकंप मापने वाले), रेडिएशन डिटेक्टर और कैमरे लगाने पड़ते हैं. ये डेटा इकट्ठा करने के लिए जरूरी हैं. अमेरिका या इजरायल जैसे देश सैटेलाइट से निगरानी करते हैं, इसलिए छिपाना चुनौती है.
सुरक्षा और निकासी: इलाके को साफ करना, सैनिक तैनात करना. विस्फोट से रेडिएशन फैल सकता है, इसलिए मास्क और सूट चाहिए.
गोपनीयता बनाए रखना: परीक्षण छिपाने के लिए झूठे भूकंपीय डेटा फैलाना या साइट को छिपाना. लेकिन CTBT (कॉम्प्रिहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी) के तहत दुनिया नजर रखती है. पाकिस्तान ने CTBT पर हस्ताक्षर नहीं किया, लेकिन परीक्षण से प्रतिबंध लग सकते हैं.
सहयोग जुटाना: चीन या उत्तर कोरिया से तकनीक लेना. पाकिस्तान को चीन की मदद मिलती रही है.
ट्रंप ने कहा कि पाकिस्तान छिपाकर टेस्ट कर रहा, ताकि अमेरिका भी टेस्ट शुरू करे. ये हथियारों की दौड़ तेज करने का बहाना लगता है. लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं, अगर पाकिस्तान टेस्ट करे तो ये 1998 जैसा होगा – लेकिन अब सैटेलाइट टेक्नोलॉजी से छिपाना कठिन.
पाकिस्तान के पास पहले से 170 परमाणु हथियार हैं (स्टॉकपाइल). अगर नया डिजाइन टेस्ट करना हो, तो 6-18 महीने लग सकते हैं. लेकिन रखरखाव के लिए छोटे टेस्ट (सब-क्रिटिकल) तो हफ्तों में हो जाते हैं. ट्रंप का दावा 2025 का है, शायद बलूचिस्तान या खैबर में गतिविधियों पर आधारित. लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं – ये राजनीतिक बयानबाजी हो सकती है.
यह भी पढ़ें: पहले फाइटर जेट और डिफेंस सिस्टम... अब PAK को सबमरीन दे रहा चीन, आखिर चाहता क्या है ड्रैगन
परमाणु परीक्षण के लिए वैज्ञानिक तैयारी से लेकर गोपनीयता तक सब कुछ चाहिए. पाकिस्तान के पास क्षमता है, लेकिन ट्रंप का इशारा शायद दबाव बनाने का तरीका है. अगर पाकिस्तान सच में टेस्ट करे, तो ये उसके लिए भी घातक साबित हो सकता है.
ऋचीक मिश्रा