एंडगेम बॉम्बर... ट्रंप का गुप्त न्यूक्लियर हथियार आ गया सामने, रूस-चीन के लिए चेतावनी

ट्रंप का गुप्त न्यूक्लियर हथियार अब सामने आ गया है. कैलिफोर्निया में इसकी पहली झलक मिली. ये 2500 किमी रेंज वाली क्रूज मिसाइल B-52 और B-21 बॉम्बर से छोड़ी जाती है. 150 किलोटन यील्ड, GPS गाइडेंस और रडार-डॉजिंग डिजाइन है. रूस-चीन को चेतावनी के लिए बनाई गई है. 2030 तक पुरानी मिसाइलें बदलेंगी. ये मिसाइल तैनात की जाएगी.

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 ये है अमेरिका की नई AGM-181 LRSO मिसाइल, जो 2030 तक अमेरिका सेना में शामिल हो जाएगी. (Photo: X/@tabyadijital) ये है अमेरिका की नई AGM-181 LRSO मिसाइल, जो 2030 तक अमेरिका सेना में शामिल हो जाएगी. (Photo: X/@tabyadijital)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 09 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:20 PM IST

एक ऐसी मिसाइल जो दुश्मन की नजरों से बचकर चुपके से हमला कर दे. ये अमेरिका की नई AGM-181 LRSO मिसाइल है. इसे लॉन्ग रेंज स्टैंड-ऑफ भी कहते हैं. हाल ही में कैलिफोर्निया में एक प्लेनस्पॉटर ने इसे पहली बार पकड़ा. पेंटागन (अमेरिकी रक्षा विभाग) ने इसे गुप्त रखा था, लेकिन अब ये राज खुल गया.

LRSO क्या है? 

LRSO एक क्रूज मिसाइल है, जो हवा से छोड़ी जाती है. ये न्यूक्लियर हथियार ले जाती है. इसका मतलब? ये दूर से ही दुश्मन के इलाके में घुसकर धमाका कर सकती है, बिना किसी लड़ाकू विमान को खतरे में डाले. पुरानी AGM-86B मिसाइल को ये बदलने वाली है, जो 1982 से इस्तेमाल हो रही है.

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ट्रंप के समय (2017-2021) इसका विकास तेज हुआ. रेथियन कंपनी ने इसे बनाया. अभी ये टेस्टिंग में है. 2030 तक ये पूरी तरह तैयार हो जाएगी. पहली बार जून 2025 में इसका चित्र जारी हुआ. ये B-52 बॉम्बर के नीचे लटकी दिखी. जल्द ही ये B-21 रेडर (अमेरिका का नया स्टेल्थ बॉम्बर) पर भी तैनात होगी. 

संदेश साफ है: रूस और चीन को चेतावनी – कि अमेरिका की ताकत बढ़ गई.

LRSO के खास गुण: सरल स्पेसिफिकेशन

ये मिसाइल स्टेल्थ है, यानी अदृश्य. रडार इसे आसानी से नहीं पकड़ पाते. 

  • नामः AGM-181 LRSO (Long Range Stand-Off)
  • प्रकार: हवा से छोड़ी जाने वाली न्यूक्लियर क्रूज मिसाइल
  • लंबाई: 6.4 मीटर (21 फीट) – एक छोटी कार जितनी
  • चौड़ाई: 0.62 मीटर (24.5 इंच) – पतली और हल्की
  • रेंज: 2,500 किलोमीटर से ज्यादा – न्यूयॉर्क से लंदन तक!
  • गति: सबसोनिक (लगभग 850 किमी/घंटा) – चुपचाप उड़ती है
  • वॉरहेड: W80-4 न्यूक्लियर हेड, वेरिएबल यील्ड 5 से 150 किलोटन – हिरोशिमा बम से 10 गुना ताकतवर (150 किलोटन पर)
  • गाइडेंस सिस्टम: इनर्शियल, GPS और TERCOM – सटीक निशाना, रास्ता बदल सकती है
  • स्टेल्थ फीचर्स: कम रडार सिग्नल, फोल्डिंग विंग्स (उड़ान में फैलते पंख), नीचे की तरफ वर्टिकल टेल – दुश्मन की एयर डिफेंस से बच जाती है
  • वजन:  लगभग 1,360 किलोग्राम (पुरानी AGM-86 जैसा)
  • लॉन्च प्लेटफॉर्म: B-52H/J बॉम्बर और B-21 रेडर स्टेल्थ बॉम्बर
  • सेवा में कबः 2030 के आसपास – अभी टेस्ट फ्लाइट हो रही

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ये स्पेसिफिकेशन इसे पुरानी मिसाइलों से बेहतर बनाते हैं. ये दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम (IADS) को चकमा दे सकती है. मतलब, ये 500 मील ऊपर से चुपके से हमला करेगी. दुश्मन को पता भी नहीं चलेगा.

कैसे काम करती है LRSO?

कल्पना कीजिए: B-52 बॉम्बर दुश्मन के समंदर के किनारे पर उड़ता है. पायलट बटन दबाता है. मिसाइल छूटती है. ये कम ऊंचाई पर उड़ती है, रडार से बचते हुए. GPS और मैपिंग से सही रास्ता चुनती है. टारगेट पर पहुंचकर धमाका. यील्ड बदल सकते हैं – छोटा धमाका शहर को नुकसान पहुंचाए, बड़ा हुआ तो ज्यादा नुकसान. ये डिटरेंस के लिए है, यानी डराने के लिए. जंग न हो, इसलिए दुश्मन सोचेगा – हमला मत करो, जवाब भयानक होगा.

ट्रंप से लेकर आज तक

ट्रंप के पिछले राष्ट्रपति काल में इसे मंजूरी मिली. बजट गुप्त था. 2020 में पहला कॉन्ट्रैक्ट रेथियन को दिया गया. 2025 में पहली फ्लाइट टेस्ट. जून में पहला फोटो लीक. पेंटागन कहता है – ये पुरानी मिसाइलों को अपग्रेड करेगा. रूस के हाइपरसोनिक हथियारों और चीन की मिसाइलों का जवाब है ये. 

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