बाइक पर बदमाश, फायरिंग और पैर में गोली... हैरान कर देगी यूपी पुलिस के इस नकली एनकाउंटर की असली कहानी

अफसोस की बात ये है कि अपने शानदार प्रदर्शन के बावजूद यूपी पुलिस के एक भी जवान या अफसर को ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए पेरिस जाने का मौका नहीं मिला. यकीन मानिए भारतीय ओलंपिक संघ यूपी पुलिस के कुछ निशानेबाज़ों को अपने दल में शामिल कर लेता, तो पक्का कुछ और मेडल तो तय ही थे. कोई हैरत नहीं होती अगर गोल्ड ही झोली में आ गिरता.

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अमरोहा की एक अदालत ने पुलिस की पोल खोलकर रख दी अमरोहा की एक अदालत ने पुलिस की पोल खोलकर रख दी

बी एस आर्य

  • अमरोहा,
  • 24 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 8:23 AM IST

26 जुलाई से पेरिस में ओलंपिक शुरू होने जा रहा है. इस बार भारतीय खिलाड़ियों से कहीं ज्यादा पदक जीतने की उम्मीद है. खास तौर पर अपने शूटरों से. भारतीय शूटिंग टीम में इस बार कुल 21 निशानेबाज़ हैं. लेकिन अफसोस की बात ये है कि अपने शानदार प्रदर्शन के बावजूद यूपी पुलिस के एक भी जवान या अफसर को ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए पेरिस जाने का मौका नहीं मिला. यकीन मानिए भारतीय ओलंपिक संघ यूपी पुलिस के कुछ निशानेबाज़ों को अपने दल में शामिल कर लेता, तो पक्का कुछ और मेडल तो तय ही थे. कोई हैरत नहीं होती अगर गोल्ड ही झोली में आ गिरता.

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मज़ाक से भी इसे मज़ाक में मत लीजिएगा. जो कह रहे हैं, बिल्कुल सच कह रहे हैं. रात का घुप्प अंधेरा हो, या कोई आड़े-तिरछे दौड़ता हुआ भाग रहा हो, कोई मोटरसाइकिल पर हो, या गाड़ी में, कोई खड़ा हो, बैठा हो, लेटा हो, जिस हाल में हो और कितनी ही दूरी पर या नज़दीक हो, मजाल क्या कि जो निशाना चूक जाए? गोली पैर पर ही लगेगी. और वो भी पैर के एक खास हिस्से पर. आपको सच ना लग रहा हो, इसीलिए इस घटना को जान लेते हैं.

थानेदार ने सुनाई एनकाउंटर की कहानी
चलिए बात करते हैं अमरोहा की. अमरोहा के हसनपुर थाने एक इंस्पेक्टर साहब तैनात हैं. नाम दीप कुमार पंत है. ये अभी-अभी ताजा-ताजा हुए एक एनकाउंटर की कहानी सुना रहे हैं. दावा है एक सांस में इतनी सच्ची कहानी शायद ही किसी और पुलिस वाले ने सुनाई हो. क्या मजाल जो इंस्पेक्टर साहब बीच में कहीं कॉमा या फुलस्टॉप लगा देते. पूरे एक मिनट नौ सेकंड तक एक ही सांस में सबकुछ बयान कर दिया.

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पुलिस की कहानी में 3 किरदार
इनकी कहानी में तीन किरदार थे. मोटरसाइकिल पर बैठे वही तीन लड़के. तीन संदिग्ध लड़के. जिन्होंने पुलिस के रोकने पर पुलिस पर गोली चला दी और फिर जवाबी फायरिंग में तीन में से एक अपने पैर पर गोली खा बैठा. पैर में गोली खाने वाला ये वही मनोज सैनी है. जबकि उसके पीछे मोटरसाइकिल पर जो दो और संदिग्ध लड़के बैठे थे, ये वही दोनों हैं. जिनमें से एक का नाम रोहित है और दूसरे का अमित. 

घायल बदमाश के भाई ने बताया सच
अब इंस्पेक्टर साहब के एनकाउंटर की कहानी को आगे बढ़ायें, उससे पहले ये जरूरी होगा कि रोहित और अमित भी अपनी कहानी सुना दें. साथ ही जिस मनोज को गोली लगी है, उसके भाई ने भी उसकी तरफ से उसकी कहानी बयां की. जल्दी-जल्दी उस भाई की बात सुन लें, जिसके पैर में गोली लगी है. उसने बताया- रात को सो रहा था, पुलिस ले गई. रात को सो रहा था, पुलिस बाग में ले गई फोटो खिंचवाया, ले आई. कहानी बस यही है. 

अदालत पहुंचा मामला
अब कहानी यूं आगे बढ़ती है कि इंस्पेक्टर साहब मुठभेड़ के बाद तीनों को अदालत में पेश करते हैं. चूंकि उनकी कहानी के मुताबिक तीनों ने पुलिस पर गोली चलाई थी, लिहाज़ा बाकी मामलों के साथ-साथ इन तीनों पर हत्या की कोशिश की धारा भी लगा दी जाती है. अब जैसे ही ये मामला अदालत में शुरू होता है, जज साहब को भी ओलंपिक की शूटिंग याद आ जाती है. रात के घुप्प अंधेरे में पुलिस वालों का ये निशाना देख जज साहब दंग रह जाते हैं. 

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जज साहब की हैरानी
भला अंधेरे में इतना सटीक निशाना कैसे? वो भी पैर पर. और उस पर भी कमाल ये कि सामने से भी गोली चल रही है. यानी संदिग्ध लड़कों की तरफ से. वो भी अंधेरे में गोली चला रहे हैं. और उनका निशाना इतना घटिया कि क्या मजाल गोली किसी पुलिस वाले को छू कर भी निकल जाए. जज साहब की हैरानी तो अभी शुरू ही हुई थी कि मुकदमे का मेडल जीतने के जोश में पुलिस वाले ये तक बोल गए कि जनाब गोली मारने के बाद हमने अंधेरे में ही मौके का मुआयना भी किया था. बदमाश लड़कों ने पुलिस टीम पर जो गोलियां चलाई थी, उसके तीन खोखे भी मौके से ढूंढ लिए.

जज के सवालों को जवाब नहीं दे पाई पुलिस
जज साहब बहुत खुश हुए. खुशी खुशी पूछा, ये तो ठीक है पर जो पुलिस ने गोली चलाई थी, उसके खोखे कहां हैं? जज साहब ने सवालिया अंदाज में पूछा कि आप लोगों ने अपनी रक्षा में दो राउंड गोली चलाई थी. एक पैर में लगी. एक निशाना चूक गया. पर उन दोनों गोलियों के खोखे किधर गए? अब अमरोहा पुलिस उदास हो गई. बोली जनाब, अंधेरे की वजह से हमारे अपने खोखे नहीं मिले. जज साहब हैरान थे कि लड़कों के चलाए बंदूक की गोली के खोखे तो अंधेरे में मिल गए, पर सरकारी 9 एमएम पिस्टल से चली गोली के दोनों खोखे पुलिस वालों की पैनी नजर से बच कैसे गए?

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पूरी कहानी समझ चुके थे जज साहब
खैर जज साहब आगे बढ़े. पूछा, अंधेरे में एनकाउंटर चल रहा था. दोनों तरफ से गोलियां चल रही थीं. आपका निशाना तो गजब था. पैर में गोली मारी. पर उधर से भी गोलियां चल रही थी. रात का अंधेरा भी था. तो क्या कोई पुलिस वाला भी घायल हुआ? कुछ खरोंचे आईं? पुलिस वाले फिर उदास. कहा, नहीं जनाब. शायद जज साहब अब तक सबकुछ समझ चुके थे. इसके बाद उन्हें गुस्सा आ गया और फिर उन्होंने अपना फैसला सुनाया. 

जज साहब ने चौंकाया
एक ऐसा फैसला जो हाल के वक़्त में शायद ही देश की किसी अदालत के किसी जज ने सुनाया हो. एनकाउंटर के बाद गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर-अंदर जज साहब ने रोहित और अनिल को बाइज्जत बरी करने का हुकुम सुना दिया. कमाल देखिए पुलिस तीनों लड़कों का पुलिस रिमांड लेने के लिए अदालत गई थी और जज साहब उन्हें सीधे रिहा करने का हुक्म सुना रहे थे. इतना ही नहीं उन्होंने अपने ऐतिहासिक फैसले में जो कहा, उसकी बस चंद लाइनें आप भी जान लीजिए.

विचित्र, आश्चर्यजनक और अस्वाभाविक
अमरोहा जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ओमपाल सिंह ने अपने फैसले में कहा- ये विचित्र, आश्चर्यजनक और अस्वाभाविक है कि किसी पुलिस कर्मचारी को कोई चोट नहीं लगी. ये भी संदिग्ध और अविश्वसनीय है कि कथित घटनास्थल पर पुलिस द्वारा चलाए गए 9 एमएम के दो खोखे काफी तलाश करने पर नहीं मिले. घायल मनोज कुमार के बांये पैर में पुलिस की एक गोली लगी है. ये गंभीर जांच का विषय है कि दूसरी गोली कहां गई? और दोनों गोलियों के खोखे कहां गए? अभियुक्त के खोखे और कारतूस तो बरामद हुए लेकिन पुलिस अपने खोखे बरामद नहीं कर सके. जिससे घटना की प्रमाणिकता संदिग्ध होती है. मौके से केवल अभियुक्त मनोज कुमार को पकड़ा गया और बाकी दोनों अभियुक्त को 16 जुलाई को गजरौला तिराहा हसनपुर से गिरफ्तार किया गया. जिनसे कोई बरामदगी नहीं है. पुलिस टीम में केवल चार लोग थे. जबकि अभियुक्तों की संख्या तीन उल्लेखित की गई है. और किसी भी पुलिसकर्मी को घटना में खरोंच तक नहीं आई. ऐसी स्थिति में प्रथम सूचना रिपोर्ट और केस डायरी में उल्लेखित तथ्य प्रथम दृष्टया काल्पनिक और अविश्वसनीय है. उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तीनों अभियुक्तगन के खिलाफ धारा 109 बीएनएस का अपराध बनना स्पष्ट नहीं होता है. अतः तीनों अभियुक्तगन की धारा 109 बीएनएस में रिमांड प्रार्थना निरस्त की जाती है. 

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पुलिस की कहानी
तो पूरी कहानी तो आपने जान ली. अब आइए आपको आगे की कहानी भी समझा देते हैं. दरअसल, अमरोहा की हसनपुर पुलिस ने ये दावा किया था 15 जुलाई की रात तीन संदिग्ध लड़के मोटरसाइकिल पर जा रहे थे. पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो वो भागने लगे. फिर पुलिस पर गोली चला दी. अपनी रक्षा में पुलिस ने भी गोली चलाई. जिनमें से एक के पैर में गोली लगी और फिर तीनों को गिरफ्तार कर लिया. ये पुलिस की कहानी थी. 

घटना की असल कहानी
अब असली कहानी ये थी कि पुलिस ने तीनों ही लड़कों को घटना वाली रात उनके घर से उठाया था और फिर उनकी गिरफ्तारी, एनकाउंटर और बरामदगी की पूरी कहानी गढ़ डाली. पर कहानी इतनी कमजोर थी कि जज साहब को यकीन ही नहीं हुआ. इसीलिए उन्होंने उन्हें रिहा कर दिया. पर सवाल ये है कि यूपी में इस एक फैसले को छोड़ दें तो ऐसे फर्जी एनकाउंटर को लेकर ऐसे कितने फैसले आए हैं? और उससे भी बड़ा सवाल ये कि ऐसे फर्जी एनकाउंटर में शामिल कितने पुलिस वालों को सज़ा मिली है? बाकी छोड़िए क्या इसी एक मामले में फर्जी मुठभेड़ में शामिल अमरोहा पुलिस को कोई सज़ा मिलेगी? 

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(दिल्ली से मनीषा झा के साथ आजतक ब्यूरो)

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