Crime Katha of Bihar: बिहार में अपराध का इतिहास 1947 से ही हिंसक रहा है, लेकिन 1990 से 2005 के बीच का वक्त सबसे भयावह साबित हुआ. उस वक्त सूबे में अपहरण एक संगठित उद्योग बन गया था. डॉक्टर, इंजीनियर, व्यवसायी और प्रतिष्ठित लोग बदमाशों के निशाने पर थे. अकेले साल 2004 में ही फिरौती के लिए 411 अपहरण के मामले दर्ज हुए थे, जबकि उसी दौर में कुल 32085 ऐसी घटनाएं अंजाम दी गई थीं. यह दौर बिहार की कानून-व्यवस्था पर एक दाग की तरह था. अपहरणकर्ता लैंड माफिया, राजनेता और अपराधी गिरोहों से जुड़े होते थे. फिरौती की रकम करोड़ों में होती थी. असफलता पर हत्या आम बात थी. 'बिहार की क्राइम कथा' में पेश है बिहार के सबसे चर्चित अपहरण कांड की पूरी कहानी.
कौन थी नवरुणा चक्रवर्ती?
महज 12 साल की मासूम नवरुणा चक्रवर्ती मुजफ्फरपुर के एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार से ताल्लुक रखती थी. वह सेंट जेवियर्स स्कूल में सातवीं कक्षा की छात्रा थी. वो पढ़ाई में तेज थी और खेलकूद में आगे. उसके पिता अतुल्य चक्रवर्ती फार्मास्यूटिकल व्यवसायी थे, जबकि मां मैत्री गृहिणी थी. परिवार का पैतृक घर 1876 में बनाया गया दो मंजिला भवन था, जो जॉन्फर लाल रोड पर चक्रवर्ती लेन में स्थित था. यह इलाका शहर का पुराना हिस्सा था, जहां संकरी गलियां और पुरानी इमारतें आम बात थीं. नवरुणा का बचपन किताबों, दोस्तों और पारिवारिक लाड़ प्यार से भरा था.
17-18 सितंबर 2012, मध्यरात्रि
उस रात मुजफ्फरपुर के चक्रवर्ती निवास में सन्नाटा पसरा था. नवरुणा अपनी कमरे में सो रही थी. तभी अज्ञात अपहरणकर्ताओं ने खिड़की की जाली को तोड़ दिया और कमरे में दाखिल हो गए. वे सोती हुई नवरुणा को अगवा कर साथ ले गए. घरवालों को भनक तक नहीं लगी. सुबह जब परिवार जागा तो बेटी गायब थी. उसका कमरा अस्त-व्यस्त था. अतुल्य चक्रवर्ती ने तुरंत मुजफ्फरपुर थाने में शिकायत दी. एफआईआर दर्ज कराई. उन्होंने इसके पीछे लैंड माफिया पर शक जताया. लेकिन शुरुआत में कोई सुराग नहीं मिला. अपहरणकर्ताओं ने कोई फिरौती नहीं मांगी. इसी वजह से मामला और भी रहस्यमयी हो गया. पूरा शहर सदमे में था.
ये भी पढ़ें- सूरजभान, राजन तिवारी, सोनू-मोनू और टाल का गुट... लंबी है अनंत सिंह के जानी दुश्मनों की लिस्ट
पुलिस जांच और परिवार का दर्द
अपहरण का मामला दर्ज करने के बाद फौरन मुजफ्फरपुर पुलिस हरकत में आ गई. जगह जगह छापेमारी शुरू हो चुकी थी. लेकिन कोई सुराग न मिला. परिवार ने सोशल मीडिया पर 'सेव नवरुणा' कैंपेन चलाया, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए. अतुल्य और मैत्री ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को पत्र लिखे. पुलिस ने कई संदिग्धों को हिरासत में लिया, लेकिन वो सब बरी हो गए. इसके बाद एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया, पर सबूतों के अभाव में वो भी रिहा हो गए. परिवार का दर्द बढ़ता जा रहा था. वे रात-दिन बेटी की तस्वीरें देखते और रोते रहते. बिहार की 'सुशासन' सरकार पर सवाल उठने लगे थे. जांच की धीमी गति ने परिवार को हताश कर दिया था. फिरौती न मांगना मामले को हत्या की ओर ले जा रहा था.
26 नवंबर 2012
चक्रवर्ती निवास के पास ही एक नाली थी. उसी नाली से एक स्केलेटन बरामद हुआ, जिसे पुलिस ने नवरुणा का बताया. कपड़े और अंडरगारमेंट्स भी मिले, लेकिन परिवार ने इंकार कर दिया. अतुल्य ने आरोप लगाया कि पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की. डीएनए टेस्ट के लिए परिवार ने खून के सैंपल देने से इनकार कर दिया, क्योंकि हड्डियां नवरुणा की नहीं लग रही थीं. इस ड्रामे ने जांच को और जटिल बना दिया था. पुलिस ने 32 सबूतों का फोरेंसिक टेस्ट कराया, लेकिन रिपोर्ट में विसंगतियां थीं. लैंड माफिया पर शक गहरा गया, क्योंकि परिवार की जमीन बेचने की डील चल रही थी.
लैंड माफिया पर शक
नवरुणा के अपहरण का मुख्य कारण परिवार की छह कठा जमीन थी, जिसकी कीमत चार करोड़ रुपये बताई गई. अतुल्य ने उसे बेचने की डील फाइनल की थी, रजिस्ट्री 10 दिसंबर 2012 को होनी थी. स्थानीय लैंड माफिया और राजनेताओं ने उस जमीन को हड़पने की कोशिश की थी, लेकिन इनकार पर हत्या की साजिश रची गई. वार्ड पार्षद राकेश कुमार सिन्हा पप्पू जैसे लोग इसमें शामिल बताए गए. बिहार का अपहरण उद्योग इसी तरह जमीनी विवादों से जुड़ा था. परिवार को धमकियां मिलने लगीं थीं. अतुल्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लैंड माफिया की भूमिका ने इस मामले को राजनीतिक रंग दे दिया था. यह कांड 1990-2005 के अपहरण उद्योग की याद दिला रहा था.
ज़रूर पढ़ें- भागलपुर से जहानाबाद तक... सूबे में ऐसा है जेल ब्रेक का इतिहास, बड़ी घटनाओं से कई बार दहला बिहार
प्रधानमंत्री कार्यालय का हस्तक्षेप
अपहरण के बाद पीड़ित परिवार ने पीएमओ को पत्र लिखे. जिसके जवाब में 7 और 26 नवंबर 2012 तथा 3 और 8 जनवरी 2013 को बिहार के मुख्य सचिव को पत्र भेजे गए. पीएमओ ने मामले की गहन जांच के लिए आदेशित किया. नवंबर 2012 में भाई नवजित चक्रवर्ती ने फिर पीएम को पत्र लिखा. इस हस्तक्षेप ने राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने सितंबर 2013 में सीबीआई जांच की सिफारिश की, लेकिन एजेंसी ने जांच से इनकार कर दिया. परिवार की बहन नवरूपा ने दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किए. पीएमओ की पहल ने आशा जगाई. लेकिन स्थानीय पुलिस की नाकामी ने देरी बढ़ा दी. यह कदम बिहार के अपराध इतिहास में दुर्लभ था.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर CBI की एंट्री
25 नवंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को इस मामले की जांच सौंपी, इसके बाद फरवरी 2014 में एजेंसी ने काम शुरू किया. सीबीआई टीम ने घर का निरीक्षण किया, स्केच बनाए और माता-पिता से 100 से ज्यादा सवाल पूछे. अतुल्य ने सभी जानकारी दी. सीबीआई ने नाली का दौरा किया जहां 'स्केलेटन ड्रामा' हुआ था. जांच में लैंड माफिया पर फोकस रहा. सुप्रीम कोर्ट ने समय-सीमा तय की, लेकिन सीबीआई को कई विस्तार मिले. परिवार ने भरोसा जताया. यह कदम बिहार पुलिस की विफलता को उजागर करता था. सीबीआई की एंट्री ने उम्मीदें बढ़ाईं थीं. लेकिन वास्तविकता अलग थी.
सीबीआई जांच और गिरफ्तारियां
5 सितंबर 2017 को सीबीआई ने पहली गिरफ्तारी की. मुजफ्फरपुर नगर निगम पार्षद राकेश कुमार सिन्हा पप्पू को गिरफ्तार किया गया. पूछताछ में लैंड डील का खुलासा हुआ. अप्रैल 2018 में होटल मालिक और दो प्रॉपर्टी डीलर समेत छह और गिरफ्तारियां हुईं. सभी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया. सीबीआई ने दावा किया कि हत्या जमीनी विवाद के कारण हुई थी. लेकिन सबूत कमजोर साबित हुए. परिवार ने राहत महसूस की. सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर 2017 तक जांच पूरी करने का आदेश दिया. गिरफ्तारियों ने मीडिया में सुर्खियां बटोरीं. लेकिन यह कहानी का अंत नहीं था.
Must Read- 1947 से 2025 तक... वो खलनायक, जिनसे कांपता-घबराता रहा बिहार
जांच में बाधाएं और देरी
सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट से कई विस्तार मिले, लेकिन चार्जशीट दाखिल न हो सकी. सबूतों की कमी और गवाहों का डर प्रमुख बाधा बन गए. अतुल्य ने 2014 में पुलिस पर सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप लगाया. साल 2019 में सीबीआई ने 10 लाख रुपये का इनाम घोषित किया. डीएनए रिपोर्ट ने पुष्टि की कि स्केलेटन नवरुणा का था, लेकिन हत्या का मकसद स्पष्ट न हुआ. एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने जांच को भटकाने की कोशिश की. परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल कीं. देरी ने इंसाफ की उम्मीद कमजोर की.
क्लोजर रिपोर्ट - अधूरा इंसाफ
24 नवंबर 2020 को सीबीआई ने मुजफ्फरपुर कोर्ट में इस मामले की क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, क्योंकि छह साल की जांच में अपराध साबित न हो सका. अतुल्य ने इसे अपेक्षित बताया और सुप्रीम कोर्ट में अपील की. रिपोर्ट में लैंड माफिया का जिक्र था, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं. आरोपी बरी हो गए थे. असल में यह कांड सीबीआई की असफलता का प्रतीक बन गया था. बिहार सरकार पर लापरवाही के आरोप लगे. क्लोजर ने पूरे राज्य को झकझोर दिया. नवरुणा की तस्वीर आज भी घर की दीवार पर लगी है. परिवार को इंसाफ का इंतजार है.
दर्द अभी बाकी है..
आज साल 2025 में भी नवरुणा कांड अनसुलझा है, जो बिहार के अपहरण उद्योग की याद दिलाता है. इसी तरह से सुशील कुमार (2004), आकाश पांडेय (2008), खुशी कुमारी (2021) जैसे अन्य अपहरण कांडों से तुलना में यह सबसे चर्चित मामला है. जिसने कानून-व्यवस्था, पुलिस की क्षमता और सुशासन पर सवाल खड़े किए. वो पीड़ित परिवार आज भी इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा. अतुल्य कहते हैं, 'एक दिन इंसाफ मिलेगा.' नवरुणा की यादें न्याय की लड़ाई जारी रखने को प्रेरित करती है.
परवेज़ सागर