Driverless Tractor: न हाड़तोड़ मेहनत... न ही थकान! बिना ड्राइवर के खेत की जुताई करेगा ट्रैक्टर, किसानों के लिए वरदान है ये तकनीकी

Driverless Tractor Tech BY PAU: लुधियाना स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) ने हाल ही में एक खास तरह के ड्राइवर-असिस्टेड ट्रैक्टर तकनीक को दुनिया के सामने पेश किया है. जो किसी ड्राइवरलेस ट्रैक्टर की तरह काम करता है.

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ये ट्रैक्टर पहले से ही फीड किए गए डाटा के अनुसार खेतों में काम करता है. Photo: ITG ये ट्रैक्टर पहले से ही फीड किए गए डाटा के अनुसार खेतों में काम करता है. Photo: ITG

अश्विन सत्यदेव

  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 8:38 AM IST

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और तकनीकी के इस बदलते दौर ने खेती-किसानी को भी काफी हद तक बदला है. अब फसलों की जुताई-बुआई और कटाई तक मशीनों का इस्तेमाल देखा जा रहा है. इसी पारंपरिक खेती को बदलने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने डिजिटल एग्रीकल्चर की ओर एक और कदम बढ़ाया है. इस यूनिवर्सिटी ने एक ऐसे तकनीक को विकसित किया है जो न केवल किसानों को हाड़-तोड़ मेहनत करने से बचाएगा बल्कि खेती को किफायती भी बनाएगा. तो आइये जानें क्या है ये टेक्नोलॉजी- 

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दरअसल, लुधियाना स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) ने हाल ही में एक खास तरह के ड्राइवर-असिस्टेड ट्रैक्टर (Driver Assisted Tractor) तकनीक को दुनिया के सामने पेश किया है. जो किसी ड्राइवरलेस ट्रैक्टर की तरह काम करता है. एक बार डाटा फीड करने के बाद इसे चलाने के लिए किसी ड्राइवर या चालक की जरूरत नहीं होगी, बल्कि ये ट्रैक्टर पहले से ही फीड किए गए डाटा के अनुसार खेतों में खुद ही जुताई करता रहेगा. जिससे न केवल खेती आसान होगी बल्कि इससे पैसों की बचत के साथ-साथ्ज्ञ पर्यावरण में होने वाले कार्बन उत्सर्जन को भी कम किया जा सकेगा.

पंजाब कृषि विश्वविधालय के वाइस चांसलर डॉ. सतबीर सिंह गोसल. Photo: ITG

क्या है ये तकनीकी?

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने आजतक से ख़ास बातचीत में इस तकनीक के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि, "ये एक तरह का ग्लोबल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (GNSS)- बेस्ड ऑटो-स्टीयरिंग सिस्टम है. जो आने वाले समय में पारंपरिक खेती के तौर-तरीकों को बदल कर रख देगा. इस सिस्टम में कुल तीन कंपोनेंट शामिल हैं, जो मिलकर काम करते हैं."

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इस सिस्टम के मुख्य 3 कंपोनेंट्स और उनके काम

1. जीपीएस 
2. आईपैड या टैबलेट
3. सेंसर्स

कंपोनेंट्स में एक्यूरेट पोजिशनिंग के लिए एक GNSS रिसीवर, स्टीयरिंग की स्पीड को ट्रैक करने के लिए एक व्हील एंगल सेंसर और एक मोटराइज्ड स्टीयरिंग यूनिट शामिल हैं. इसमें ISOBUS-कम्पलायंट कंसोल दिया गया है जो ऑटो हेडलैंड टर्न, स्किप-रो फंक्शनैलिटी और कस्टम टर्न पैटर्न जैसी एडवांस सुविधाएँ प्रदान करता है. ऑपरेटर एक ही बटन से मैन्युअल और ऑटोमैटिक मोड के बीच स्विच भी कर सकता है. यानी किसान चाहे तो इस सिस्टम को ऑटोमेटिकली इस्तेमाल करे या फिर इसे मैनुअल ऑपरेट करने के लिए बस एक बटन दाबाना होगा.

किसानों को पहले इस सिस्टम में खेत का डाटा फीड करना होगा. Photo: ITG

कैसे काम करती है ये तकनीक?

ये ऑटो-स्टीयरिंग सिस्टम एक सेटेलाइट-गाइडेड, कंप्यूटर-असिस्टेड ऑटोमेटेड टूल है, जिसे ट्रैक्टर को चलाने के दौरान स्टीयरिंग व्हील को ऑटोनॉमस (खुद चलने के लिए) मोड में काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. कई उपग्रहों से प्राप्त संकेतों को सेंसर और एक टचस्क्रीन कंट्रोल कंसोल के साथ जोड़कर, यह सिस्टम ट्रैक्टरों को सटीक और पहले से ही तय किए गए रास्ते पर चलने के लिए निर्देशित करता है. ख़ास बात ये है कि, यह कम रोशनी में भी एकसमान स्टीयरिंग ऑपरेशन को सुनिश्चित करता है.

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आसान शब्दों में समझें तो इस सिस्टम को ट्रैक्टर में इंस्टॉल करने के बाद आपको आईपैड की मदद से इसमें अपने खेत (जिसमें ट्रैक्टर को चलाना है) की मैपिंग करनी होगी. यानी इसमें आपको खेत के लंबाई-चौड़ाई और लोकेशन इत्यादि सहित तमाम जानकारियां फीड करनी होंगी. जिसके बाद इस ट्रैक्टर को आप खेत में उतार सकते हैं. काम शुरू करने के पहले एक बार चालक को स्टीयरिंग व्हील संभालना होगा, उसके बाद ट्रैक्टर खुद ही पूरे खेत की जुताई कर सकता है. 

यदि किसान एक से ज्यादा खेतों में इस तकनीक से लैस ट्रैक्टर का इस्तेमाल करना चाहता है तो उसे हर खेत के लिए अलग-अलग मैपिंग करनी होगी. विभिन्न खेतों को वो सिस्टम में अलग-अलग नाम जैसे फील्ड-1 या फील्ड-2 के हिसाब सेव कर सकता है. एक बार मैपिंग डाटा फीड करने के बाद बार-बार इस प्रक्रिया को दोहराने की जरूरत नहीं होगी. 

किस तरह के ट्रैक्टर में लगेगी ये तकनीक?

डॉ. सतबीर बताते हैं कि, "इस सिस्टम को किसी भी तरह ट्रैक्टर में आसानी से इंस्टॉल किया जा सकता है. इसके लिए ऐसी कोई लिमिट नहीं है कि, ये किसी ख़ास इंजन क्षमता वाले ट्रैक्टर में ही लगे. चाहे छोटा ट्रैक्टर हो या फिर बड़ा, इस सिस्टम का इस्तेमाल सभी में किया जा सकता है. इस सिस्टम का परीक्षण हर तरह के ट्रैक्टरों के साथ किया गया है, जिसमें इसने बेहतर प्रदर्शन किया है."

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रिसर्च डिपार्टमेंट ने इस डिवाइस का परीक्षण कई अलग-अलग उपकरणों के साथ किया है. Photo ITG

जहां तक ट्रैक्टर के साथ जोड़े जाने वाले कृषि उपकरणों की बात है तो डॉ. सतबीर का कहना है कि, "यह सिस्टम हर तरह के उपकरणों से लैस ट्रैक्टर को आसानी से चला सकता है. फिलहाल रिसर्च डिपार्टमेंट ने इसे रोटावेटर, हल, हैरो और कल्टीवेटर के साथ ऑपरेट कर परीक्षण किया है. कुछ अन्य उपकरण जैसे सीड ड्रिल, बेलर, स्प्रेयर, डिस्क हैरो, पोस्ट होल डिगर, और रोटरी कटर इत्यादि के साथ भी ये सिस्टम बेहतर ढंग से काम करेगा. इस तकनीक के इस्तेमाल के बाद ट्रैक्टर की परफॉर्मेंस किसी तरह से प्रभावित नहीं होती है. बल्कि ये किसानों के लिए फायदेमंद ही साबित होगी." 

कितना आएगा खर्च

डॉ. सतबीर बताते हैं कि, अभी हम इस सिस्टम में इस्तेमाल किए जाने वाले कंपोनेंट्स को बाहर से इंपोर्ट कर रहे हैं. जिसके चलते इसकी लागत ज्यादा है. किसी भी ट्रैक्टर में इस सिस्टम को इंस्टॉल करवाने के लिए इसका खर्च तकरीबन 3 से 4 लाख रुपये के आसपास होगा. लेकिन आने वाले समय में जब ये कंपोनेंट्स हमें लोकल लेवल पर मिलने लगेंगे तो इसकी कीमत कम हो जाएगी.

क्या होगा फायदा?

इस तकनीक से होने वाले फायदे के बारे में डॉ. सतबीर का कहना है कि, जहां आम ट्रैक्टरों द्वारा खेतों की जुताई करने में किसान तकरीबन 7-8 घंटे तक काम करता है. इस सिस्टम की मदद से किसानों को भीषण गर्मी में इतनी ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं होगी. इसके अलावा बार-बार ब्रेक और क्लच अप्लाई करने पर पारंपरिक ट्रैक्टरों में डीजल की खपत भी ज्यादा होती है. लेकिन इस सिस्टम को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि, ये एक फिक्स स्पीड पर ट्रैक्टर को चलाने में मदद करता है और सेंसर की मदद से खेत में आने वाले कॉर्नर्स (मोड़ों) का पहले ही अंदाजा लगा लेता है और स्पीड कम करते हुए ब्रेक अप्लाई करता है. जिससे ईंधन की खपत भी कम होती है. 

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इस तकनीक को सितंबर में होने वाले किसान मेला में शोकेस किया जाएगा. Photo: ITG

खेत के कोने-कोने में होगा काम

आमतौर पर जहां मैनुअली ऑपरेटेड ट्रैक्टर्स द्वारा जब खेत में किसी तरह का काम लिया जाता है तो खेत के कुछ हिस्से (ख़ासतौर पर कॉर्नर्स या कोनों पर) छूट जाते हैं. ये हाल ही में किए पंजाब कृषि विश्वविधालय द्वारा किए गए डिमांस्ट्रेशन में इस सिस्टम ने शानदार प्रदर्शन किया है. जहां मैन्युअल स्टीयरिंग के साथ, डिस्क हैरो, कल्टीवेटर, रोटावेटर और पीएयू-स्मार्ट सीडर जैसे फ़ील्ड उपकरणों ने 3 से 12 प्रतिशत के बीच ओवरलैप दिखाया. वहीं ऑटो-स्टीयरिंग सिस्टम के साथ, ये ओवरलैप लगभग 1 प्रतिशत तक कम हो गए. छूटे हुए क्षेत्र 2 से 7 प्रतिशत से घटकर 1 प्रतिशत से भी कम हो गए. यानी ये साफ है कि, ये सिस्टम खेत के हर कोने में बड़ी ही सटिकता से काम करेगा.

डॉ. सतबीर बताते हैं कि, "अभी हम टेस्टिंग कर रहे हैं, आने वाले सितंबर में इस तकनीक को फॉर्मर फेयर में किसानों के सामने शोकेस किया जाएगा. दो दिन तक चलने वाले इस फॉर्मर फेयर में तकरीबन 1.5 से 2 लाख किसान आते हैं, जिनके सामने इस तकनीकी का प्रदर्शित किया जाएगा. यदि किसानों को यह तकनीकी पसंद आती है तो इस पर और भी आगे काम किया जाएगा."  

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आखिर में डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने कहा कि, यह सिस्टम कृषि क्षेत्र में डिजिटल परिवर्तन की दिशा में PAU के निर्णायक प्रयास को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय केवल इनोवेशन के लिए ही तकनीक को नहीं अपना रहा है, बल्कि खेती को लाभदायक, कुशल और टिकाऊ बनाए रखने के लिए इसे एक आवश्यक बदलाव के रूप में अपना रहा है. उन्होंने बताया कि ऑटो-स्टीयरिंग जैसे डिजिटल उपकरण न केवल उत्पादकता बढ़ाने में मदद करेंगे हैं, बल्कि यह किसानों पर पड़ने वाले शारीरिक बोझ को भी कम करने में मदद करेंगे. 

 

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