कॉटन पर जीरो इंपोर्ट ड्यूटी किए जाने से परेशान किसानों के सामने एक और चुनौती आ खड़ी हुई है. असामान्य बारिश, जलभराव और कीट-रोगों के हमले से कॉटन की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ा है. ऐसे हालात में किसानों को आशंका है कि उनकी फसल भारतीय कपास निगम (CCI) की ओर से तय किए गए फेयर एवरेज क्वालिटी (FAQ) मानकों पर खरी नहीं उतर पाएगी. ऐसे में उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी मिलना कठिन हो जाएगा. इस संबंध में साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (SABC) ने केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरीराज सिंह को पत्र लिखा है.
इस पत्र में FAQ मानकों में तत्काल ढील देने की अपील की गई है ताकि किसानों को नुकसान न हो. संस्था ने कृषि मंत्रालय और संबंधित विभागों के समक्ष भी किसानों की यह समस्या उठाई है.
चिट्ठी में कहा गया है कि इस सीजन की असामान्य परिस्थितियों को देखते हुए किसानों की फसल एमएसपी पर तभी खरीदी जा सकेगी जब गुणवत्ता के नियमों में व्यावहारिक बदलाव किए जाएं.
क्या किसानों को नहीं मिलेगी MSP?
भारतीय कपास निगम किसानों से एमएसपी पर कॉटन खरीदने का काम करती है. लेकिन इसके लिए गुणवत्ता की एक शर्त तय है. गुणवत्ता की उपज न होने पर एमएसपी नहीं मिलता है. ऐसे में इस बार अगर गुणवत्ता मानकों में संशोधन नहीं किया गया तो कॉटन की सरकारी खरीद खतरे में पड़ सकती है. सेंटर की तरफ से कहा गया है कि छोटे और सीमांत किसान अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर होंगे. सेंटर की मानें तो इस बार खरीफ की बुवाई के दौरान उत्तर भारत, खासकर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान और दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में लगातार और असामान्य बारिश हुई. कई जगहों पर लंबे समय तक जलभराव बना रहा जिससे कपास की फसल कमजोर पड़ गई.
कॉटन क्वालिटी पर क्या है असर?
बॉल रॉट, रूट रॉट और पिंक बॉलवर्म जैसे कीट और रोगों ने उत्पादन और गुणवत्ता पर अतिरिक्त चोट की. वैज्ञानिकों का कहना है कि नमी की अधिकता के कारण कपास की माइक्रोनेयर वैल्यू और रेशे की मजबूती प्रभावित हुई है, वहीं रंग और ग्रेड पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है. ऐसे में किसानों की फसल एफएक्यू स्टैंडर्ड के अनुसार नहीं रह गई है और ऐसे में उन्हें एमएसपी से वंचित होने का खतरा है.
बता दें कि सरकार ने जुलाई 2025 में कपास के एमएपी का ऐलान किया था. मध्यम रेशा कपास का समर्थन मूल्य 7,710 रुपये प्रति क्विंटल और लंबे रेशा कपास का 8,110 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया. लेकिन MSP का फायदा किसानों को तभी मिलेगा जब उनकी उपज एफएक्यू मानकों को पूरा करेगी. इसमें नमी, रेशा लंबाई, मजबूती, माइक्रोनेयर वैल्यू और बाकी क्वालिटी स्टैंडर्ड शामिल हैं. समस्या यह है कि असामान्य मौसम और कीट प्रकोप के चलते अधिकांश कपास इन मानकों को पूरा नहीं कर पा रही है.
किसानों पर आ जाएगा बड़ा संकट
एसएबीसी के फाउंडर डायरेक्टर डॉ. भागीरथ चौधरी ने 'किसान तक' से खास बातचीत में कहा कि हालात पहले से ही किसानों के लिए कठिन बने हुए हैं. उस पर से कच्चे कपास पर इंपोर्ट ड्यूटी जीरो करने के फैसले ने स्थिति और बिगाड़ दी है. अब अंतरराष्ट्रीय कपास भारतीय बाजार में सस्ते दामों पर उपलब्ध है, जिससे घरेलू किसानों को औने-पौने दामों पर फसल बेचने की नौबत आ जाएगी. उन्होंने कहा कि अगर सीसीआई ने एफएक्यू स्टैंडर्ड में तुरंत लचीलापन नहीं दिया तो छोटे और सीमांत किसान ग्लोबली कॉम्पटीशन में टिक नहीं पाएंगे. उनकी इनकम और जीवनस्तर पर गहरा संकट खड़ा हो जाएगा.
आयातित कपास से बढ़ीं चुनौतियां
इसी तरह, भारत सरकार के पूर्व कृषि आयुक्त और एसएबीसी के चेयरमैन डॉ. सीडी मायी ने भी आगाह किया कि जलवायु परिवर्तन के कारण कपास उत्पादन में कीट और रोग की स्थिति लगातार बदल रही है. बॉल रॉट और पिंक बॉलवर्म जैसे रोग न सिर्फ उत्पादन को प्रभावित कर रहे हैं बल्कि कपास के रेशे और बीज की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर डाल रहे हैं. मायी ने कहा है कि ऐसे हालात में अनाधिकृत एचटीबीटी कपास के हाइब्रिड बीजों का तेजी से प्रसार हो रहा है. वहीं आयातित कपास के सामने भारत में उत्पादित कपास टिक नहीं पा रहा है और इस वजह से किसान कपास की खेती से पीछे हट रहे हैं. इसका सीधा असर यह है कि कपास के उत्पादन में पिछड़ रहा है. इन चुनौतियों से निपटने के लिए नीती निर्माताओं तुरंत कदम उठाए की जरूरत है.
SABC की ओर से दिए गए सुझाव
कपास की MSP पर खरीदी, भले ही गुणवत्ता में गिरावट हो.
नमी की सीमा 8 फीसदी से बढ़ाकर 15 फीसदी की जाए.
रंग और संदूषण आधारित ग्रेडिंग में ढील दी जाए.
फाइबर स्ट्रेंथ, माइक्रोनेयर वैल्यू और बीज गुणवत्ता में व्यावहारिक छूट मिले.
किसानों को अपनी पूरी उपज CCI को बेचने की अनुमति दी जाए, मात्रा पर कोई रोक न हो.
मंत्रालय से CCI की अपील
डॉ. मायी और डॉ. भागीरथ चौधरी ने कहा कि वर्तमान खरीफ सीजन की प्रतिकूल परिस्थितियों में एफएक्यू स्टैंडर्ड छूट देना समय की मांग है. यह फैसला छोटे और सीमांत कपास किसानों की आजीविका सुरक्षित करने और उनकी उपज को एमएसपी पर सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा. इसलिए एसबीबीसी ने वस्त्र मंत्रालय एवं कृषि मंत्रालय से अपील की कि किसानों के हित में सीसीआई को तुरंत जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए जाएं.
ओम प्रकाश