अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद से ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सीमा विवाद बढ़ गया है. दोनों देशों में जारी सीमा संघर्ष के बीच अफगानिस्तान में पाकिस्तान के विशेष राजदूत आसिफ दुर्रानी ने कहा है कि अफगानिस्तान से जारी सीमा विवाद से उसको भारत के साथ युद्ध लड़ने से भी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है.
बुधवार को इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटजिक स्टडीज इस्लामाबाद (आईएसएसआई) और जर्मन फ्रेडरिक एबर्ट स्टिफ्टंग (एफईएस) द्वारा आयोजित एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए दुर्रानी ने कहा कि अफगानिस्तान से विवाद के कारण पाकिस्तान को भारत के साथ हुए तीन युद्धों की तुलना में ज्यादा का नुकसान हुआ है. चाहे बात जान-माल की क्षति की जाए या वित्तीय नुकसान की.
उन्होंने आगे कहा कि पिछले दो दशकों के दौरान आतंकवाद के कारण 80 हजार से अधिक पाकिस्तानी मारे गए हैं और अभी भी यह गिनती जारी है. अफगानिस्तान से नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) के सैनिकों के वापस चले जाने के बाद यह उम्मीद थी कि अफगानिस्तान में स्थिरता आएगी जिससे पूरे क्षेत्र में शांति बहाल होगी. लेकिन यह कुछ दिनों के लिए ही संभव हो सका.
टीटीपी अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करता हैः दुर्रानी
दुर्रानी ने आगे कहा कि पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) समूह के हमलों में 65 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वहीं, आत्मघाती हमलों में 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
अफगानिस्तान पर निशाना साधते हुए दुर्रानी ने आगे कहा कि आतंकवादी संगठन टीटीपी पाकिस्तान पर हमला करने के लिए अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करता है जो पाकिस्तान के लिए गंभीर चिंता का विषय है. इसमें चिंताजनक पहलू यह भी है कि इन हमलों में अफगानिस्तान के नागरिकों की भी भागीदारी होती है.
अफगानिस्तान के आंतरिक घटनाक्रम का असर पाकिस्तान पर भीः दुर्रानी
अफगानिस्तान के आंतरिक घटनाक्रम के कारण पाकिस्तान को हुए नुकसान पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि 1979 में जब तत्कालीन सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में अपनी सेना भेजने का फैसला किया तो इससे पाकिस्तान को भूराजनीतिक रूप से नुकसान उठाना पड़ा. 9/11 हमले के बाद की वैश्विक व्यवस्था ने भी पाकिस्तान पर नकारात्मक प्रभाव डाला है.
दरअसल, 1979 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में अपनी सेना भेजने का फैसला किया था. अफगानिस्तान में सेना भेजने का मकसद सैय्यद नजीबुल्लाह के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार को मुजाहिदीनों के खिलाफ लड़ने में मदद पहुंचाना था. सेना भेजने के कुछ ही दिन बाद सोवियत आर्मी ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था.
वहीं, 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड टॉवर पर हुए आतंकी हमले को 09/11 हमले के नाम से जाना जाता है. इस आतंकवादी हमले को दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी हमला माना जाता है. इस हमले में आतंकवादियों ने दो अमेरिकी यात्री विमानों को न्यूयॉर्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड टावर की इमारतों में घुसा दिया था. इस हादसे में हजारों लोगों की जान चली गई थी.
दुर्रानी ने आगे कहा कि इस घटनाक्रम के कारण पाकिस्तान को गैर-नाटो सहयोगी देश के रूप में नामित किया गया. पाकिस्तान के लिए ट्रैवल एडवाइजरी लागू होने का भी प्रतिकूल असर पड़ा. पाकिस्तान के साथ व्यापार करना महंगा हो गया. साथ ही बीमा लागत भी बढ़ गई, जिससे पाकिस्तान का निर्यात ठप हो गया.