भारत और चीन के बीच हुए हालिया समझौते से नेपाल में कूटनीतिक हलचल मच गई है. भारत के जिस भूभाग पर नेपाल अपना होने का दावा करता है, उस भूभाग को लेकर भारत और चीन ने समझौता कर लिया है. यानी कि चीन ने मान लिया है कि वह भूभाग भारत का ही है. नेपाल को बहुत उम्मीद थी कि भारत के भूभाग पर उसके दावे को चीन का समर्थन मिलेगा. वहीं भारत ने नेपाल के इस दावे को एक बार फिर खारिज कर दिया है.
मंगलवार को भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच हुए समझौते में रहे 9वें बिंदु के समझौते से नेपाल की सरकार नाराज हो गई है और वह दोनों देशों को इसका विरोध करते हुए डिप्लोमेटिक नोट तक भेजने की तैयारी कर रहा है. इस समझौते के 9वें बिंदु में भारत और चीन के बीच व्यापारिक दृष्टि से जिस लिपुलेक पास का जिक्र किया गया, नेपाल की नाराजगी और परेशानी उसी को लेकर है.
दरअसल, नेपाल भारत के लिपुलेक और लिंपियाधुरा पर अपना दावा करता रहा है. 2021 में तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार ने भारत के लिपुलेक और लिंपियाधुरा पर अपना दावा करते हुए नक्शा जारी कर दिया था. इतना ही नहीं, उस समय ओली सरकार ने संसद में इस नक्शे को सरकारी प्रयोजन में लाने के लिए संविधान संशोधन तक किया था. इस बात को लेकर दोनों देशों के बीच कई महीनों तक कूटनीतिक विवाद चलता रहा.
नेपाल की ओली सरकार को यह उम्मीद थी कि भारत के जिस भूभाग पर वह अपना दावा कर रहा है, उस मुद्दे पर कम से कम चीन का समर्थन मिल सकता है. लेकिन चीन ने भारत के साथ हाल ही में जो समझौता किया है, उसमें लिपुलेक को व्यापारिक मार्ग के रूप में प्रयोग करने को लेकर दोनों देशों में सहमति बन गई है.
भारत का कड़ा जवाब: दावे निराधार
नेपाल की टिप्पणी पर भारत ने सख्त प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा कि हमने नेपाल के विदेश मंत्रालय की उन टिप्पणियों को देखा है जो भारत-चीन के बीच लिपुलेक पास के जरिए सीमा पार व्यापार बहाल करने पर की गई हैं. हमारी स्थिति इस विषय पर हमेशा से स्पष्ट रही है. भारत-चीन के बीच लिपुलेक पास से सीमा व्यापार 1954 से चल रहा है और यह दशकों तक जारी रहा. कोविड और अन्य कारणों से यह बाधित हुआ था, जिसे अब फिर से शुरू करने पर सहमति बनी है.
उन्होंने आगे कहा कि जहां तक क्षेत्रीय दावों की बात है, वे न तो न्यायोचित हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित. किसी भी तरह का कृत्रिम और एकतरफा दावे का विस्तार अस्वीकार्य है. भारत नेपाल के साथ लंबित सीमा मुद्दों पर आपसी बातचीत और कूटनीति के ज़रिए रचनात्मक संवाद के लिए हमेशा तैयार है.