भारत के पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर ने पिछले साल जुलाई महीने में कहा था कि अगर पाकिस्तान ठीक बर्ताव करता है तो भारत भी दोस्ती का हाथ आगे बढ़ा देगा. अब एस. जयशंकर भारत के विदेश मंत्री हैं और उनकी कही बात मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी पूरी तरह से लागू है. न तो पाकिस्तान सही रास्ते पर आया और न ही भारत ने दोस्ती के लिए हाथ आगे किए. पाकिस्तान के मामले में मोदी सरकार के रवैये को देश की जनता का समर्थन भी हासिल है. आजतक-कार्वी इनसाइट्स के एक सर्वे 'देश का मिजाज' में ज्यादातर लोग मोदी सरकार की विदेश नीति से संतुष्ट नजर आए.
आतंकवाद खत्म किए बगैर पाकिस्तान से वार्ता नहीं करने की सरकार की नीति का सर्वे में शामिल 63 फीसदी लोगों ने समर्थन किया. जनवरी 2016 में पठानकोट आतंकी हमले के बाद से ही भारत ने पाकिस्तान को लेकर अपनी नीति साफ कर दी थी कि आतंक और वार्ता अब एक साथ नहीं चलेंगे. 14 फरवरी को हुए पुलवामा आतंकी हमले के बाद मोदी सरकार अपने इस रुख पर और अडिग हो गई.
आजतक और कार्वी इनसाइट्स ने इस सर्वे के लिए 12,126 लोगों का साक्षात्कार किया, जिसमें 67 फीसदी ग्रामीण और 33 फीसदी शहरी लोग शामिल थे. इस सर्वे में देश के 19 राज्यों के 97 संसदीय क्षेत्रों और 194 विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया. यह सर्वे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने से पहले कराया गया था.
63 फीसदी लोग पाकिस्तान पर मोदी की नीति के साथ
आजतक-कार्वी इनसाइट्स के सर्वे 'देश का मिजाज' में ज्यादातर लोग मोदी सरकार की विदेश नीति से संतुष्ट नजर आए. आतंकवाद खत्म किए बगैर पाकिस्तान से वार्ता नहीं करने की सरकार की नीति का भी 63 फीसदी लोगों ने समर्थन किया. सर्वे में लोगों से पूछा गया कि भारत को पाकिस्तान से किस तरह से निपटना चाहिए? 63 फीसदी लोगों ने कहा कि सीमा पार आतंकवाद के पूरी तरह से खात्मे के बिना दोनों देशों के बीच कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं होनी चाहिए. वहीं, 27 फीसदी लोगों ने कहा कि पाकिस्तान के साथ बातचीत के जरिए ही आतंकवाद की समस्या का अंत हो सकता है. 10 फीसदी लोग ऐसे थे जिनकी इस मुद्दे पर कोई राय नहीं थी.
जनवरी 2019 के सर्वे की तुलना में पाकिस्तान मुद्दे पर इस बार 7 फीसदी ज्यादा लोगों ने मोदी सरकार की नीति का समर्थन किया है. इस बार के सर्वे में पाकिस्तान के साथ रिश्ते कायम करने के मोदी सरकार के तरीके से 75 फीसदी लोग संतुष्ट नजर आए. 75 फीसदी में 42 फीसदी पाकिस्तान पर मोदी सरकार की विदेश नीति से बेहद खुश हैं. हालांकि 15 फीसदी ने कहा कि मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ रिश्तों को खराब तरीके से संभाला. वहीं, 10 फीसदी लोगों की इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट राय नहीं थी.
मोदी सरकार में कितने मजबूत हुए भारत-चीन के रिश्ते?
परमाणुशक्ति संपन्न पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान हमेशा से ही भारत की बाहरी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहे हैं. डोकलाम में 72 दिनों तक चले भारत-चीन के टकराव के बावजूद मोदी सरकार चीन के साथ अपने रिश्ते बेहतर करने में कामयाब रही. मोदी सरकार की कूटनीतिक कोशिशों का ही नतीजा रहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर चीन ने आखिरकार अपना वीटो हटा लिया.
आजतक-कार्वी इनसाइट्स ने अगस्त 2019 के 'मूड ऑफ द नेशन' सर्वे के जरिए लोगों की भारत-चीन के रिश्ते पर भी राय जानी. सर्वे में 41 फीसदी लोगों ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में चीन के साथ भारत के रिश्ते मजबूत हुए हैं. यह प्रतिशत पिछले सर्वे के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा है.
ट्रंप के नेतृत्व में यूएस के साथ रिश्ते
पाकिस्तान और चीन के अलावा, डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में यूएस भारत की विदेश नीति के लिए तीसरी बड़ी चुनौती बन गया है. ट्रंप के अप्रत्याशित रवैये की वजह से भारत अपनी विदेश नीति में संतुलन साधने के लिए मजबूर हुआ है और अपने पुराने दोस्त रूस की तरफ फिर से झुक रहा है. मोदी के कार्यकाल में भारत के सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ता देश के तौर पर रूस की स्थिति को और मजबूत किया जा रहा है.
भारत-अमेरिका के भारी व्यापारिक असंतुलन को लेकर ट्रंप की चिंता और चेतावनी के बावजूद, दोनों देशों के रिश्ते मजबूत हो रहे हैं. सर्वे में शामिल आधे से ज्यादा लोगों का मानना है कि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते सुधरे हैं. यह प्रतिशत पिछले सर्वे के मुकाबले 13 फीसदी ज्यादा है. सर्वे से यही निष्कर्ष निकलता है कि विदेश नीति के मोर्चे पर देश की ज्यादातर जनता सरकार के कामकाज से खुश है.