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इधर अमेरिका से डील और उधर पुतिन का स्वागत...पुतिन के भारत दौरे पर अमेरिकी मीडिया में मची खलबली

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आज भारत पहुंच रहे हैं. इस दौरान भारत और रूस के बीच कई अहम समझौतों पर बातचीत हो सकती है. पुतिन की इस यात्रा को लेकर अमेरिकी मीडिया में खूब चर्चा है. वहां के बड़े-बड़े अखबारों ने इस यात्रा पर अपनी राय रखी है.

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SCO बैठक के दौरान PM मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग, बाएं ट्रंप (Photo: AT)
SCO बैठक के दौरान PM मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग, बाएं ट्रंप (Photo: AT)

भारत और रूस के संबंध दशकों पुराने हैं और ये समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 से 5 दिसंबर के दो दिवसीय दौरे पर भारत आ रहे हैं जिसकी चर्चा दुनिया भर में हो रही है. हालांकि, पुतिन के भारत दौरे को लेकर सबसे ज्यादा बहस अमेरिका मीडिया में चल रही है. वहां के बड़े-बड़े अखबार सीएनएन से लेकर वॉशिंगटन पोस्ट ने भी भारत, रूस और अमेरिका के हालिया घटनाक्रमों पर लंबे-चौड़े लेख लिखे हैं. 

पुतिन की विजिट पर अमेरिकी मीडिया की नजर

अमेरिकी वेबसाइट 'CNN' ने अपनी रिपोर्ट में लिखा जब गुरुवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का प्लेन नई दिल्ली में उतरेगा तो उनका स्वागत बड़े समारोह के साथ किया जाएगा. हालांकि उनके होस्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के साथ भी मजबूत रणनीतिक रिश्ते बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं. 
 
'CNN' ने आगे लिखा, यह भारत का डिप्लोमैटिक स्प्लिट स्क्रीन है. एक तरफ एडवांस्ड रूसी फाइटर जेट्स खरीदने का प्लान, सस्ता तेल और कोल्ड वॉर में बनी पक्की दोस्ती. दूसरी तरफ टेक्नोलॉजी, ट्रेड और इन्वेस्टमेंट पर अमेरिकी सहयोग और यह उम्मीद कि प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप अपने सख्त टैरिफ हटा देंगे. 

अमेरिका और रूस दोनों को थामने की कोशिश में भारत: 'CNN' 

'CNN' लिखता है कि पुतिन का यह दौरा, जो यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से उनका पहला भारत दौरा है, वो मोदी के लिए तनाव भरे समय में हो रहा है. 

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सीएनएन ने लिखा, "भारत अमेरिका के साथ एक बहुत जरूरी ट्रेड डील पर बातचीत कर रहा है क्योंकि उस पर 50% टैरिफ लगाया गया था जिसमें से आधा टैरिफ नई दिल्ली के लगातार डिस्काउंट पर रूसी तेल खरीदने की सीधी सजा थी. फिर भी पुतिन के दौरे के एजेंडे में मॉस्को के साथ और डिफेंस डील शामिल हैं. इनमें हथियारों की खरीद है जिन्हें भारत पाकिस्तान और चीन से खुद को बचाने के लिए जरूरी मानता है."

"भारत को साबित करना होगा कि उसके लिए मुश्किल पड़ोसियों के बीच काम करना कैसा होगा. रूस चीन का करीबी पार्टनर भी है जबकि चीन पाकिस्तान के लिए हथियारों का एक बड़ा सोर्स है.

अशोका यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशंस के विजिटिंग प्रोफेसर कांति बाजपेयी ने कहा कि पुतिन के लिए रेड कार्पेट बिछाकर भारत पश्चिम और चीन दोनों को यह इशारा दे रहा है कि उसके पास ऑप्शन हैं.

उन्होंने कहा, 'यह इस बात का संकेत है कि भारत रूस के साथ रहने को तैयार है भले ही मॉस्को की दुनिया भर में बुराई हो रही हो.

तेल और हथियारों के अलावा यह डिप्लोमैटिक हेजिंग (राजनयिक शक्ति प्रदर्शन) है जो बीजिंग और वॉशिंगटन को दिखाता है कि दिल्ली के पास तीसरा ऑप्शन भी है और इससे उसे मोलभाव करने की थोड़ी और गुंजाइश मिलती है."

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'समय की कसौटी पर खरी उतरी दोस्ती'
'CNN' ने लिखा कि भारत के रूस के साथ करीबी रिश्ते कोल्ड वॉर के दौरान बने थे. जब नया आजाद देश भारत ऑफिशियली नॉन-अलाइंड था लेकिन एक नए देश के तौर पर अपना रास्ता बनाते हुए उसे सोवियत इंडस्ट्रियल और इकोनॉमिक मदद भी मिली थी. 

लेकिन भारत का मॉस्को की तरफ झुकाव 1970 के दशक में सामने आया जिसकी वजह भारत के कट्टर दुश्मन पाकिस्तान को वॉशिंगटन का बढ़ता मिलिट्री और फाइनेंशियल सपोर्ट था. रूस ने भारत को हथियार देना शुरू कर दिया और मॉस्को एक भरोसेमंद काउंटरवेट बन गया. इस रोल को उसने तब से अहमियत दी है.

हालांकि पिछले चार सालों में भारत की रूसी हथियारों की खरीद में कमी आई है, फिर भी स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के मुताबिक, मॉस्को उसका टॉप मिलिट्री सप्लायर बना हुआ है. SIPRI एक थिंक टैंक है जो दुनिया भर में हथियारों की बिक्री पर नजर रखता है.

'रूस से सस्ता तेल खरीदने की मिली सजा' 

'CNN' लिखता है कि जब 2022 में यूक्रेन पर हमले को लेकर पश्चिमी देशों के बैन की वजह से रूसी तेल की कीमत बहुत कम हो गई तो भारत ने इस मौके का फायदा उठाया. अपनी तेजी से बढ़ती इकॉनमी को बढ़ावा देने और 1.4 अरब से ज्यादा की आबादी को सपोर्ट करने के लिए भारत ने रूसी क्रूड ऑयल की अपनी खरीद में काफी बढ़ोतरी की और रूसी तेल के टॉप खरीदारों में से एक बन गया. 

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पश्चिमी देशों की आलोचना के जवाब में भारत ने लगातार यह कहा कि उसकी पहली जिम्मेदारी अपने लोगों और इकॉनमी के प्रति है.

अमेरिकी वेबसाइट ने लिखा, लेकिन अगस्त में ट्रंप का सब्र जवाब दे गया और उन्होंने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया. यह वॉशिंगटन के साथ उसके ट्रेड डेफिसिट यानी व्यापार घाटा और रूसी तेल खरीदने की सजा थी.

'CNN' के अनुसार, फिर अक्टूबर में ट्रंप ने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों पर US सैंक्शन का ऐलान किया जिससे भारत में कंपनियों के ऑफिस में तुरंत हलचल मच गई. ट्रेड और रिफाइनिंग सोर्स ने रॉयटर्स को बताया कि भारत का दिसंबर में रूसी तेल इंपोर्ट तीन साल में सबसे कम होने वाला है. 

'CNN' ने आगे लिखा है, भारत पर अमेरिका की तरफ से आर्थिक दबाव न सिर्फ रिश्तों में तनाव ला रहा है बल्कि भारत की चीन के साथ रिश्तों में आई तल्खी भी कम हो रही है. ट्रंप के इंडिया टैरिफ लागू होने के कुछ दिनों बाद मोदी सात साल में पहली बार चीन गए. उन्होंने एक समिट में हिस्सा लिया जिसे चीनी लीडर शी जिनपिंग ने होस्ट किया था. इस समिट से बीजिंग को एक ऐसे ग्लोबल लीडर के तौर पर दिखाना था जो वेस्टर्न इंस्टीट्यूशन्स को टक्कर दे सके.

जब एक ही गाड़ी में सवार हुए मोदी और पुतिन

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उसी समिट में मोदी और पुतिन की भी मुलाकात हुई थी. कैमरों के सामने मुस्कुराते हुए दोनों ने एक-दूसरे से गर्मजोशी से हाथ मिलाया और फिर लोगों की नजरों से दूर होकर एक घंटे तक प्राइवेट बातचीत के लिए रूसी प्रेसिडेंशियल कार लिमोजीन में चले गए.

ट्रंप के पहले प्रशासन और जो बाइडेन के प्रशासन दोनों ने ही भारत को चीन के मुकाबले एक जरूरी ताकत के तौर पर देखा और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर व जॉइंट मिलिट्री ड्रिल के जरिए नई दिल्ली के साथ स्ट्रेटेजिक रिश्तों को बढ़ाया. 

'CNN' ने लिखा, मोदी के ट्रंप के साथ भी अच्छे संबंध थे. भारतीय नेता ने अपने पहले कार्यकाल में अमेरिकी राष्ट्रपति की मेजबानी की और ट्रंप ने ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम किया था.

भारत और अमेरिका ने हाल ही में एक नए 10-साल के फ्रेमवर्क पर सहमति जताई है जिसका मकसद इंडस्ट्रियल सहयोग, टेक्नोलॉजी और इंटेलिजेंस शेयरिंग को गहरा करना है और नई दिल्ली अभी भी वॉशिंगटन के साथ एक ट्रेड डील की रूपरेखा पर बातचीत कर रही है. पिछले हफ्ते एक इवेंट में कॉमर्स सेक्रेटरी राजेश अग्रवाल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह डील इस साल के आखिर तक फाइनल हो जाएगी. 

हालांकि, भारत के नजरिए से ऐसे कदम उसके दूसरे पार्टनर्स से अलग होने का संकेत नहीं देते हैं. थिंक टैंक ORF के उन्नीकृष्णन कहते हैं. अमेरिका के साथ एक बड़ी ट्रेड डील करने और रूस के साथ वर्किंग रिलेशनशिप रखने में कोई विरोधाभास नहीं है और नई दिल्ली अभी भी वॉशिंगटन के साथ एक ट्रेड डील की रूपरेखा पर बातचीत कर रही है. एनालिस्ट का कहना है कि रूस के अंदर बनी समझ से यह भरोसा और मजबूत हुआ है.

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बाजपेयी ने कहा, नई दिल्ली और मॉस्को के बीच करीबी रिश्ते हैं. पुतिन जानते हैं कि मोदी पर वहां काफी दबाव है. उन्हें अपने घरेलू समर्थकों को जवाब देना है और वो दोहरी मुश्किल में हैं.

सीएनएन ने इस बारे में कहा कि फिर भी यह नाजुक बैलेंस वॉशिंगटन की नजर में रहेगा. खासकर पुतिन के नई दिल्ली दौरे के दौरान बड़े डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट्स पर बात होने की वजह से.

उन्नीकृष्णन कहते हैं, 'भारत को इस मामले में सावधान रहना होगा, खासकर इसलिए क्योंकि अभी तक दोनों देशों के बीच ट्रेड डील नहीं हुई है. इसलिए वो आज के मुश्किल दौर में और कोई परेशानी नहीं पैदा करना चाहेंगे.'

भारत पर बढ़ रहा है दबाव, 'फॉरेन पॉलिसी' ने लिखा

अमेरिकी मैगजीन 'फॉरेन पॉलिसी' ने भी इस मुद्दे पर एक लंबा लेख लिखा और रूस-भारत के रिश्तों पर अमेरिकी नजरिया भी बयां किया.

'फॉरेन पॉलिसी' लिखता है, गुरुवार और शुक्रवार को होने वाले दौरे के दौरान पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच कई मुद्दों पर संभावित डील पर चर्चा होने की उम्मीद है जिसमें एनर्जी, एविएशन, जरूरी मिनरल्स, डिफेंस के क्षेत्र शामिल होंगे. 

'फॉरेन पॉलिसी' आगे लिखता है, 'ये लोग गले मिलेंगे, खुशी-खुशी बातें होंगी और सहयोग के नए वादे होंगे और ऐसा होना भी चाहिए. जब ​​भारत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों का गुस्सा झेल रहा है, पाकिस्तान के साथ दशकों में अपने सबसे बुरे झगड़े से जूझ रहा है और बड़ी क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना कर रहा है तो जाहिर है कि उसे अपने करीबी रूसी दोस्त की इतनी जरूरत पहले कभी नहीं पड़ी होगी.' 

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भारत के लिए मुश्किल डगर?

फिर भी पुतिन का दौरा भारत-रूस के रिश्तों के लिए कुछ मुश्किल समय पर हो रहा है.  पार्टनरशिप अभी भी अच्छी है लेकिन यह थोड़ी नाजुक हो गई है. यूक्रेन में रूस के युद्ध ने भारत को मुश्किल में डाल दिया है. चीन के साथ रूस के बढ़ते रिश्तों से लेकर रूस के साथ कम बिजनेस करने के लिए भारत पर बढ़ते पश्चिमी दबाव तक, बदलती परिस्थितियों का असर दिखने लगा है. हाल के हफ्तों में भारत ने अमेरिका से तेल इंपोर्ट बढ़ा दिया है और ब्रिटेन के साथ एक नई गैस डील की है. 

भारत की सबसे ताकतवर कंपनियों में से एक रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 20 नवंबर को रूसी एनर्जी की बड़ी कंपनी रोसनेफ्ट से तेल इंपोर्ट करना बंद कर दिया. यह दो बड़े रूसी तेल एक्सपोर्टर्स पर अमेरिकी बैन लागू होने से एक दिन पहले की बात है. तब से भारत का रूसी तेल इंपोर्ट लगभग एक-तिहाई कम हो गया है. इन सबसे भारत-रूस एनर्जी कोऑपरेशन को खतरा है जो दोनों देशों की पार्टनरशिप का एक अहम हिस्सा है. 

इस हफ्ते पुतिन के दौरे का एक और अजीब बैकग्राउंड है. अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं जिसका एक बड़ा कारण रूस से तेल इंपोर्ट करने की वजह से नई दिल्ली पर लगाया गया एक्स्ट्रा 25 परसेंट टैरिफ है. 

भारत एक उलझन का सामना कर रहा है. इसके तहत वो मॉस्को या वॉशिंगटन में से किसी एक के साथ रिश्ते मजबूत करने के लिए कदम उठाता है तो वो दूसरे के साथ रिश्ते खराब करने का जोखिम उठाता है. अगर भारत पाकिस्तान से हालिया संघर्ष को देखते हुए रूस के साथ हथियारों की डील करता है तो अमेरिका नाराज होगा और अगर भारत अमेरिका से ऊर्जा आयात बढ़ाता है तो रूस को भी ये बात अच्छी नहीं लगेगी.

अमेरिका का भारत पर रूसी तेल से दूर रहने का दबाव
अमेरिका ने भारत पर डिस्काउंट वाले रूसी तेल की खरीद रोकने का दबाव डाला है और नई दिल्ली पर मॉस्को की जंग की कोशिशों को फंड करने में मदद करने का आरोप लगाया है. अगस्त में ट्रंप ने इस मुद्दे पर दबाव बढ़ाने के लिए भारतीय इंपोर्ट पर 50% टैरिफ भी लगाया था.

भारत ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि वह इंटरनेशनल बैन का पालन करता है और अपने देश के हित और एनर्जी सिक्योरिटी को भी प्राथमिकता देता है. लेकिन रूसी तेल की बड़ी कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर नए अमेरिकी बैन के बाद उसकी स्थिति और मुश्किल हो सकती है. भारतीय अधिकारियों ने कहा कि देश बैन किए गए प्रोड्यूसर से तेल खरीदने से बचेगा जबकि उन कंपनियों के साथ ऑप्शन खुले रखेगा जो इन बैन के दायरे में नहीं हैं.

पुतिन के दौरे का फोकस आर्थिक सहयोग 
अमेरिका के दूसरे बड़े अखबार 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इस समिट की तैयारी में शामिल भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, भारत और रूस अपने आपसी रिश्तों को मजबूत करने पर ध्यान देंगे और उम्मीद है कि वो आर्थिक सहयोग, व्यापार में आसानी, समुद्री क्षेत्र, हेल्थकेयर और मीडिया एक्सचेंज पर केंद्रित डॉक्यूमेंट्स का एक पैकेज देंगे. उन्होंने नाम न बताने की शर्त पर यह बात कही क्योंकि डिटेल्स पब्लिक नहीं हैं.

भारत रूस को फार्मास्यूटिकल्स, खेती और टेक्सटाइल का एक्सपोर्ट बढ़ाने का इच्छुक है और नॉन-टैरिफ रुकावटों को हटाने की मांग कर रहा है. नई दिल्ली मॉस्को से फर्टिलाइजर्स की लंबे समय तक सप्लाई भी चाहता है.

एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र जहां दोनों देश एक समझौते को अंतिम रूप देने के लिए काम कर रहे हैं, वह भारतीय कुशल कामगारों का रूस में सुरक्षित और रेगुलेटेड माइग्रेशन है.

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