उत्तर प्रदेश की विधानसभा में आज विशेषाधिकार हनन के मामले में छह पुलिसकर्मी विधानसभा में पेश होंगे. मामला साल 2004 में प्रदर्शन कर रहे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर लाठी चार्ज का है जिसमें तत्कालीन विधायक सलिल बिश्नोई का पैर फ्रैक्चर हो गया था. विधानसभा के स्पीकर सतीश महाना ने सभी छह पुलिसकर्मियों को पेश करने के कहा है.
विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना के मामले में छह पुलिसकर्मी कठघरे में खड़े होंगे. यूपी विधानसभा में दोपहर 12.30 बजे से इस मामले में सुनवाई शुरू होगी. इसके लिए यूपी की विधानसभा में कठघरा भी लगा दिया गया है. यूपी विधानसभा के स्पीकर सतीश महाना ने पुलिस महानिदेशक को सभी छह पुलिसकर्मियों को विधानसभा में पेश करने के निर्देश दिए हैं.
गौरतलब है कि एक दिन पहले ही यूपी सरकार के संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने शून्य काल के दौरान 2004 में कानपुर की घटना को लेकर विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव रखा था. सुरेश खन्ना की ओर से पेश विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव विधानसभा ने पारित कर दिया. इस प्रस्ताव में साल 2004 की घटना का जिक्र करते हुए तत्कालीन विधायक सलिल बिश्नोई की शिकायत पर छह पुलिसकर्मियों को विशेषाधिकार समिति की ओर से दोषी करार दिए जाने का भी जिक्र था.
सुरेश खन्ना ने विशेषाधिकार हनन से संबंधित प्रस्ताव में कहा है कि यूपी विधानसभा के सदस्य रहे सलिल बिश्नोई ने तब कानपुर के बाबूपुरवा सीओ और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिकायत की थी. बाबूपुरवा सीओ और पांच अन्य पुलिसकर्मियों को विशेषाधिकार समिति ने विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का दोषी करार दिया था.
इन पुलिसकर्मियों को करार दिया गया था दोषी
विशेषाधिकार समिति ने 28 जुलाई 2005 को छह पुलिसकर्मियों को विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का दोषी करार दिया था और दंडित करने की संस्तुति की थी. विशेषाधिकार समिति ने बाबूपुरवा के तत्कालीन सीओ अब्दुल समद के साथ ही किदवई नगर के तत्कालीन थानाध्यक्ष ऋषिकांत शुक्ला, तत्कालीन उपनिरीक्षक कोतवाली त्रिलोकी सिंह के साथ ही किदवई नगर थाने में तैनात रहे सिपाही छोटेलाल यादव को भी दोषी करार दिया था.
विशेषाधिकार हनन समिति ने काकादेव थाने में तैनात रहे सिपाही विनोद मिश्र और मेहरबान सिंह को भी दोषी करार देते हुए दंडित किए जाने की सिफारिश की थी. सीओ अब्दुल समद को छोड़ दें तो सभी पुलिसकर्मी अभी सेवा में हैं. अब्दुल समद बाद में दूसरी सेवा में चले गए थे और आईएएस बनकर रिटायर भी हो चुके हैं.
क्या है मामला
मामला साल 2004 का है जब सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. तब बिजली कटौती को लेकर सतीश महाना (वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष) कानपुर में धरने पर बैठे थे. उस समय बीजेपी के तमाम विधायक, नेता उनके समर्थन में जा रहे थे तभी पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया था. पुलिस के लाठी चार्ज में उस समय विधानसभा सदस्य रहे सलिल बिश्नोई का पैर फ्रैक्चर हो गया था.
पैर फ्रैक्चर हो जाने की वजह से सलिल बिश्नोई को महीनों बेड पर रहना पड़ा था. सलिल बिश्नोई ने 25 अक्टूबर 2004 को विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना की सूचना दी थी. सदन में करीब डेढ़ साल सुनवाई हुई जिसके बाद विशेषाधिकार समिति ने इन पुलिसकर्मियों को सर्वसम्मति से दोषी करार दिया था. दोषी करार दिए जाने के इतने वर्षों बाद भी सजा नहीं हुई थी. अगर आज दोषई पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई जाती है तो इन्हें विधानसभा से ही जेल भेजा जा सकता है.