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Harsha Richhariya News: मॉडल से साध्वी बनीं हर्षा रिछारिया ने शुरू किया नया काम, बताई ये वजह

harsha richhariya: मॉडल से साध्वी बनीं हर्षा रिछारिया ने "सनातन युवा जोड़ो पदयात्रा" की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य युवाओं को सनातन धर्म और परिवार से जोड़ना है. यह यात्रा वृंदावन से शुरू होकर अलीगढ़ होते हुए संभल तक जाएगी.

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मॉडल से साध्वी बनीं हर्षा रिछारिया ने शुरू किया नया काम
मॉडल से साध्वी बनीं हर्षा रिछारिया ने शुरू किया नया काम

मॉडल से साध्वी बनीं हर्षा रिछारिया ने युवाओं को सनातन धर्म से जोड़ने के उद्देश्य से "सनातन युवा जोड़ो पदयात्रा" की शुरुआत की है. यह पदयात्रा सोमवार को वृंदावन के श्रीराम मंदिर से शुरू होकर अलीगढ़ होते हुए सात दिनों में संभल तक पहुंचेगी. पदयात्रा के क्रम में मंगलवार को हर्षा रिछारिया अलीगढ़ के इगलास कस्बे में पहुंचीं, जहां स्थानीय लोगों ने उनका स्वागत किया.

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साध्वी हर्षा ने कहा कि उनका उद्देश्य युवाओं को सनातन धर्म और अपने परिवार से जोड़ना है, क्योंकि सनातन दुनिया का सबसे उत्कृष्ट और वैज्ञानिक धर्म है उन्होंने बताया कि इस यात्रा को समाज के विभिन्न वर्गों से अच्छा सहयोग मिल रहा है और वे युवाओं में धार्मिक चेतना जगाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं.

सात दिवसीय इस पदयात्रा का उद्देश्य युवाओं को सनातन संस्कृति की गहराई, उसके मूल्यों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अवगत कराना है. ‘सर्वांगीण समृद्धि समाज उत्थान समिति’ के तत्वावधान में आयोजित इस यात्रा में सैकड़ों संतों और युवाओं की सक्रिय भागीदारी होगी. हर्षा रिछारिया ने बताया कि यह पदयात्रा वृंदावन से अलीगढ़ होते हुए लगभग 175 किलोमीटर की दूरी तय कर संभल तक पहुंचेगी. इस यात्रा के माध्यम से युवा श्रीकृष्ण के द्वापर युग से लेकर कलियुग में कल्कि अवतार तक की सनातन परंपरा को समझने में सक्षम बन सकेंगे.

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इस यात्रा की सफलता सुनिश्चित करने के लिए जनसंपर्क अभियान को और तेज कर दिया गया है. आयोजन समिति के सदस्य स्कूल-कॉलेज, धार्मिक संस्थानों और युवा संगठनों से संपर्क कर उन्हें पदयात्रा से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से भी व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा रहा है.

झांसी में हुआ जन्म
हर्षा का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी में हुआ, लेकिन बाद में उनका परिवार मध्य प्रदेश के भोपाल में बस गया, जहां उनके माता-पिता आज भी रहते हैं. हर्षा ने मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में एंकरिंग का काम किया, लेकिन समय के साथ उनका झुकाव अध्यात्म की ओर बढ़ता गया. इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड में रहकर लंबे समय तक साधना की और सनातन धर्म के प्रचार में जुट गईं.

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