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5000 साल पहले महिला को इस वक्त आया था साबुन बनाने का आइडिया, फिर ऐसे बना दिया!

साबुन का इस्तेमाल हर एक घर में होता है. शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इसके इस्तेमाल से अछूता रहा होगा. हर घर में आसानी से उपलब्ध साबुन के बारे में शायद की किसी को मालूम हो कि यह गीजा के पिरामिड के बनने से पहले से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. जानते हैं आज इसी साबुन की कहानी.

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सुमेरियन सभ्यता में आज से 5000 साल पहले पहली बार साबुन बनाने का प्रमाण मिलता है (Photo - Pexels)
सुमेरियन सभ्यता में आज से 5000 साल पहले पहली बार साबुन बनाने का प्रमाण मिलता है (Photo - Pexels)

साबुन एक ऐसी चीज है, जो हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है. फिर भी इसे कमतर आंका जाता है. हर दिन साबुन का इस्तेमाल करने के बावजूद शायद ही इसे व्यापक लाभ और जीवनरक्षक गुणों की ओर लोगों का ध्यान जाता होगा. ऐसे में जानते हैं रोज इस्तेमाल होने वाला साबुन कितना पुराना है और इसे किसने बनाया?

डच ग्लासमेकर एंटोनी फिलिप्स वान लीउवेनहॉक ने 1668 में अपने माइक्रोस्कोप से पहली बार उन छोटे जीवों का अस्तित्व देखा था, जो हर जगह मौजूद होते हैं. चाहे वो हमारे हाथ हों या चेहरा. सिर्फ माइक्रोस्कोप से ही देखे जा सकने वाले ये जीव बैक्टिरिया होते हैं. ऐसे में जब हम अपने हाथ या शरीर पर साबुन मलते हैं तो ये उनमें से कई जानलेवा बैक्टिरिया को खत्म कर देते हैं.

मानव इतिहास की सबसे बड़ी चिकित्सा खोज
ऐसे में साबुन को मानव इतिहास की सबसे बड़ी चिकित्सा खोज कहा जा सकता है. क्योंकि यह ऐसी चीजों को साफ कर देता है जिसे आप देख नहीं सकते. साबुन एक स्वस्थ व्यक्ति की जान भी बचाता है, जो इस बात से अनजान होता है. अब सवाल ये उठता है कि साबुन का निर्माण हुआ कैसे और किसे इस महत्वपूर्ण चीज को बनाने का श्रेय जाता है.

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5000 साल पहले खोजी गई साबुन बनाने की विधि
टाइम की रिपोर्ट के अनुसार, साबुन बनाने की शुरुआती विधि का जिक्र सुमेरियन सभ्यता के अभिलेखों में मिला है. सुमेरियन सभ्यता में निनी नाम की एक महिला का जिक्र है, जिसने शुरुआती साबुन का फॉर्मूला तैयार किया था.

कपड़ा मिल में हुआ साबुन का जन्म
वह महिला सुमेरिया के फलते-फूलते कपड़ा उद्योग में काम करती थी. मानव विज्ञानी जॉय मैककॉरिस्टन ने बताते हैं कि सुमेरिया सभ्यता में यह उद्योग महिलाओं के प्रभुत्व वाला था. निनी का जन्म 4,500 साल पहले, आज के दक्षिणी इराक में, संभवतः प्राचीन सुमेरियन शहर गिरसू में हुआ था.

वहां साबुन निर्माण का विवरण देने वाली सबसे पुराना लिखित अभिलेख मिला है. इसके अनुसार निनी का जन्म गीजा के महान पिरामिड के निर्माण के समय के आसपास हुआ था और आज के औसत व्यक्ति से थोड़ी छोटी होने के अलावा, वह दिखने में पूरी तरह से आधुनिक थीं.

एक महिला ने बनाया था सबसे पहला साबुन
" वीमेन इन एनसिएंट मेसोपोटामिया " की लेखिका करेन नेमेट-नेजात के अनुसार, निनी एक पितृसत्तात्मक समाज में पली-बढ़ीं. उनके पिता उनके घर के मुखिया थे. उनकी किशोरावस्था में ही शादी हो गई थी. निनी संभवतः निम्न वर्ग में पली-बढ़ी थीं क्योंकि गृहिणी होने के अलावा, उनकी भूमिका कहीं अधिक थी.

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मेसोपोटामियावासियों ने मानवता को अपने अनेक उपहार दिए हैं. इसी में एक कपड़ा मिल थे और इसी कारखाने में कड़ी मेहनत ने एक आविष्कार को जन्म दिया, जिसका नाम साबुन है. निनी की नियुक्ति के समय तक, गिरसू के कपड़ा कारखाने बड़े पैमाने पर एक उत्पादन केंद्र बन चुके थे.

कपड़ा मिल में काम करती थी निनी
पुरातत्वविद् डैनियल पॉट्स का अनुमान है कि तीन महीने की अवधि में, अकेले गिरसू में 2,03,310 भेड़ों की ऊन काटे जाते थें. यह संख्या और भी प्रभावशाली हो जाती है, क्योंकि यह भेड़ों की कतरनी के आविष्कार से पहले की थी. असीरियोलॉजिस्ट बेंजामिन स्टुडेवेंट-हिकमैन के अनुसार, एक कपड़ा कारखाने में दस हजार से ज्यादा मजदूरों की बदौलत एक साल में चार सौ टन से ज़्यादा ऊन का उत्पादन होता था.

ऐसा लगता है कि निनी भी इन्हीं मजदूरों में से एक थीं. साबुन के पहले लिखित उपयोग का वर्णन गिरसू के ऐसे ही कपड़ा मिल में हुआ. इसका उल्लेख वहां मिले अभिलेखों में मिलता है. रासायनिक पुरातत्वविद् मार्टिन लेवी के अनुसार, यह अभिलेख 4,500 साल पहले लिखी गई थी और ऊन की धुलाई और रंगाई से संबंधित है.

कपड़ों से वसा हटाने की जरूरत ने साबुन को जन्म दिया
ऊन को सही ढंग से रंगने के लिए, बुनकर को कपड़ों से लैनोलिन वसा को हटाना पड़ता है, जो साबुन से कहीं अधिक आसानी से किया जा सकता है. आज भी, बुनकर ताजा कटे हुए ऊन को साबुन के पानी में धोकर लैनोलिन हटाते हैं. निनी इसी क्षार और वसा के बीच रासायनिक अभिक्रिया का लाभ उठाने वाले पहली शख्स बनीं.

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प्रोफेसर सेठ रासमुसेन के अनुसार, क्षार जली हुई लकड़ी की राख में पाए जाते हैं और कई विद्वानों का मानना ​​है कि आदि मानव गीली राख का इस्तेमाल औजारों की चिकनाहट को साफ करने के लिए करते थे. फिर भी सफाईकर्मी को पता नहीं था कि राख जानवरों की चर्बी के साथ मिलकर एक साधारण और अपरिष्कृत साबुन बना देती है.

सबसे पहले निनी को आया राख से साबुन बनाने का आइडिया
रासमुसेन के अनुसार, फिर भी 5,000 साल पहले किसी ने यह नहीं खोजा था कि इस तरह से साबुन बनाया जा सकता है और इसका इस्तेमाल हाथ धोने और कपड़े को साफ करने में किया जा सकता. अधिकांश विद्वानों का मानना ​​है कि साबुन की खोज 4,500 साल पहले निनी ने कपड़ा कारखाने में ऊनों को साफ करने के लिए किया था. उसने राख में जानवरों की चर्बी मिलाकर कपड़ा और शरीर साफ करने के लिए एक मिश्रण तैयार किया था. इसे ही शुरुआती पहला साबुन माना जाता है.

संयोग से निनी ने बनाया तरल साबुन
निनी की प्रतिभा शायद उस क्षण सामने आई जब उसने पाया कि वसायुक्त लैनोलिन या जानवरों की चर्बी ही वह कारण है जिसकी वजह से राख एक सफाई एजेंट के रूप में इतनी कारगर होती है. वसा को राख वाले पानी में मिलाकर एक बाल्टी तरल साबुन बनाया जा सकता है. यह एक छोटा सा कदम लग सकता है, लेकिन इसका मतलब था कि निनी को पता चल गया था कि अब किसी भी चीज को धोने के लिए राख और चर्बी के मिश्रण का इस्तेमाल किया जा सकता है.

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कई प्रयासों के बाद बना था निनी का साबुन
निनी ने बाद में चर्बी और राख के मिश्रण का इस्तेमाल हाथ साफ करने में किया. अब वह वसा और क्षार का आदर्श मिश्रण बनाकर किसी भी चीज़ को धो सकती थी. निनी का पहला साबुन शायद बस राख जैसे चिकने पानी से भरी एक बाल्टी रही होगी. बाद में, निनी को यह एहसास हुआ कि वे राख और वसा के कणों को छानकर अलग कर सकती हैं. फिर इस मिश्रण का इस्तेमाल हाथ धोने और कपड़े की चिकनाई को हटाने में किया जा सकता है.

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इस तरह साबुन अस्तित्व में आया
चूंकि राख वाले पानी से नहाना बहुत कम लोगों को पसंद आता. इसलिए पानी से राख और वसा को छानकर निकाला गया और फिर इस मिश्रण का अलग से हाथ धोने और कपड़ा साफ करने में इस्तेमाल किया गया. इस तरह आज से 5 हजार साल पहले एक महिला ने साबुन जैसे उपयोगी और महत्वपूर्ण चीज को अस्तित्व में लेकर आई.

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