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अन्‍ना हजारे की मांगों पर संसद में 'महाबहस'

देश में लोकपाल मुद्दे पर बने संवेदनशील माहौल के बीच लोकसभा में शनिवार को सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस तथा मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने अन्ना हजारे की जन लोकपाल विधेयक की तीन प्रमुख मांगों पर अंतत: एक ही मंच पर आते हुए अपनी सहमति जाहिर कर दी. इससे अन्ना हजारे के अनशन की समाप्ति की उम्मीद बनी है.

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संसद भवन
संसद भवन

देश में लोकपाल मुद्दे पर बने संवेदनशील माहौल के बीच लोकसभा में शनिवार को सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस तथा मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने अन्ना हजारे की जन लोकपाल विधेयक की तीन प्रमुख मांगों पर अंतत: एक ही मंच पर आते हुए अपनी सहमति जाहिर कर दी. इससे अन्ना हजारे के अनशन की समाप्ति की उम्मीद बनी है.

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केन्द्र तथा राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त किए जाने, शिकायत निवारण प्रक्रिया को मजबूती प्रदान किए जाने तथा निचले स्तर की नौकरशाही को अधिक जवाबदेह बनाने की व्यवस्था किए जाने संबंधी अन्ना टीम की तीन प्रमुख मांगों पर न न केवल विपक्ष बल्कि कांग्रेस ने भी अपना पूर्ण समर्थन जताया.

विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने लोकपाल मुद्दे पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कहा कि लोकपाल के गठन के लिए इतिहास ने संसद को यह एक ऐतिहासिक मौका दिया है और इस अवसर से हमें चूकना नहीं चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर हम आज यह मौका चूके तो आने वाली पीढ़ियां भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो पाएंगी.

उन्होंने लोकपाल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किए जाने के लिए इसमें सरकारी पक्ष को कम महत्व दिए जाने तथा एक संतुलित रास्ता अपनाए जाने का सुझाव दिया. लेकिन साथ ही सरकारी कर्मचारियों द्वारा अपने दायित्व के निर्वहन में होने वाली देरी के हर मामले में भ्रष्टाचार देखे जाने की अन्ना टीम के लोकपाल के प्रावधान से असहमति जतायी.

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निचले स्तर की नौकरशाही को अधिक जवाबदेह बनाए जाने से भी उन्हें एकमत जाहिर करते हुए कहा कि छोटे स्तर के भ्रष्टाचार से जनता अधिक परेशान है और यही कारण है कि देशभर में जनता आंदोलित है.

कांग्रेस के संदीप दीक्षित ने सुषमा की इस बात को स्वीकार किया कि आज का दिन ऐतिहासिक है लेकिन उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक दिन पर हमें एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप से परहेज करना चाहिए क्योंकि अन्ना लोकपाल पर संसद की राय का इंतजार कर रहे हैं. वह राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप सुनने के लिए अनशन पर नहीं बैठे हैं. संदीप ने लोकपाल बिल में संशोधनों की संभावनाओं को रेखांकित करते हुए कहा कि अन्ना की टीम ने भी अपने बिल में दसइयों बार संशोधन किए हैं. इसलिए वह कोई अंतिम बिल नहीं है. इसलिए सरकार और विपक्ष की भी बात को सुना जाना चाहिए जिससे यह बिल और अधिक मजबूत हो सके.

सत्ताधारी पार्टी का पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी अन्ना के बिल के खिलाफ नहीं है और इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी निजी पक्ष के विधेयक पर 40 में से 36 मांगों को सरकार द्वारा मान लिया गया है. लेकिन उन्होंने भी सुषमा की इस बात से पुरजोर सहमति जतायी कि संसद के भीतर सांसदों के व्यवहार पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं लगाया जाना चाहिए अन्यथा वे प्रभावी तरीके से जनता की आवाज को प्रतिनिधित्व नहीं दे सकेंगे.

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उन्होंने तीनों महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सत्ता पक्ष की सहमति जाहिर करते हुए कहा कि सरकार पूरी तरह अन्ना के साथ है. न्यायपालिका के संबंध में उन्होंने कहा कि इसके लिए अलग से न्यायिक जवाबदेही विधेयक पहले से ही तैयार है और उसमें अन्ना के सुझाव शामिल किए जा सकते हैं. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका पर अंकुश नहीं लगाया जाना चाहिए.

संदीप दीक्षित ने लोकपाल के साथ ही कोरपोरेट जगत के भ्रष्टाचार और गैर सरकारी संगठनों पर भी अंकुश लगाए जाने की मांग की. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि ये विषय लोकपाल के दायरे में आते हैं या नहीं लेकिन इस दिशा में सोचना जरूरी है. उन्होंने कहा कि इन सभी को लोकपाल में शामिल करने से लोकपाल अव्यावहारिक हो जाएगा इसलिए इनके लिए अलग से कोई व्यवस्था करना बेहद जरूरी है.

सपा के रेवती रमण सिंह ने कहा कि आबादी के अनुपात के अनुसार लोकपाल में अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि न्यायापालिका के लिए अलग से आयोग बने जो न्यायाधीशों की नियुक्ति से लेकर न्यायपालिका के क्रियाकलापों पर निगाह रखे.

बसपा के दारा सिंह चौहान ने भी लोकपाल में अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ों और अकलियतों की हिस्सेदारी की मांग की और कहा कि लोकायुक्त बनाने के राज्यों के अधिकारक्षेत्र का अतिक्रमण नहीं किया जाए.

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जदयू के शरद यादव ने अन्ना पक्ष की तीनों बातों को लोकपाल विधेयक में शामिल किए जाने का समर्थन करते हुए अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यकों को प्रस्तावित संस्था में उचित स्थान देने की मांग दोहराई.

तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि सभी सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाने पर उनकी पार्टी को कोई आपत्ति नहीं है और वे राज्यों में लोकायुक्तों के पक्ष में भी हैं लेकिन उसके लिए उन्होंने राज्यों के विशेषाधिकार का जिक्र किया. बंदोपाध्याय ने कहा कि जनता की शिकायत के निवारण की प्रणाली को भी कुछ संशोधनों के बाद लाया जा सकता है.

द्रमुक के टीकेएस इलनगोवन ने कहा कि उनकी पार्टी राज्यों को स्वायत्तता के पक्ष में है इसलिए लोकायुक्तों के गठन का फैसला राज्यों पर छोड़ा जाए. निचले स्तर के अधिकारियों को भी लोकपाल के दायरे में लाने से लंबित मामलों का बोझ बढ़ेगा. हालांकि उन्होंने मांग की कि लोकपाल को उच्च अधिकारियों को अन्य कर्मचारियों पर कार्रवाई करने का निर्देश देने का अधिकार दिया जा सकता है.

बसपा के एस सी मिश्र ने लोकपाल बनाए जाने की मांग का समर्थन किया लेकिन कहा कि इसके लिए संविधान की मूल भावना को प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोकपाल के ढांचे में कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को कहां रखा जाएगा. इस वर्ग के लोगों की अनिवार्य रूप से नियुक्ति नहीं होने की स्थिति में उनके हित कैसे सुरक्षित होंगे.

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उन्होंने कहा कि वह भ्रष्टाचार को समाप्त करने की अन्ना हजारे की मुहिम का स्वागत करते हैं लेकिन लोकपाल विधेयक लाने के लिए जो तरीका अपनाया जा रहा है, उसे वह सही नहीं मानते. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की जवाबदेही होनी चाहिए लेकिन जन लोकपाल विधेयक में जिस तरह फैसले पर शिकायत करने की बात कही गई है उससे तो न्यायपालिका ठप हो जाएगी.

उन्होंने जन लोकपाल के दायरे में सभी सरकारी कर्मचारियों को लाए जाने की बात पर असहमति जताते हुए कहा कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को इसके दायरे में लाना व्यवहारिक नहीं होगा. मिश्र ने कहा कि कई राज्यों में लोकायुक्त है और ऐसा कानून बनाया जा सकता है कि सभी राज्यों में लोकायुक्त हो.

मार्क्‍सवादी सीताराम येचुरी ने लोकपाल की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि यह मुद्दा पिछले 40 साल से अधिक समय से लंबित है इसलिए यह कहना गलत होगा कि इसे जल्दबाजी में पारित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हर बार टलते टलते अब लोकपाल एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है और इसका समाधान किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि देश में जो कुछ हो रहा है वह घोटालों और भ्रष्टाचार के कारण बुरी तरह से परेशान हो चुके लोगों के गुस्से का नतीजा है.

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उन्होंने कहा कि लोकपाल के चयन का आधार व्यापक होना चाहिए और प्रधानमंत्री को इसके दायरे में लाया जाना चाहिए. साथ भ्रष्टाचार की परिभाषा भी विस्तृत की जानी चाहिए और एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का गठन किया जाना चाहिए.

येचुरी ने कहा कि सदन में सांसदों के आचरण पर चर्चा की जा सकती है क्योंकि वोट के लिए नोट मामले में संसद ने सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की थी. मार्क्‍सवादी नेता ने लोकायुक्त के मुद्दे पर कहा कि एक मॉडल विधेयक बना कर राज्यों के पास भेजा जाना चाहिए और राज्यों को उस पर विचार करना चाहिए.

सिटिजन चार्टर के मुद्दे पर येचुरी ने कहा कि ऐसी ही एक व्यवस्था सेवा का अधिकार कानून के तौर पर है लेकिन यह केवल पांच राज्यों में है और तीन ने इसके लिए प्रस्ताव रखा है.
हर स्तर पर नौकरशाही को लोकपाल के दायरे में लाए जाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि एक करोड़ 46 लाख की क्षमता वाली नौकरशाही को लोकपाल के दायरे में लाना कैसे संभव होगा. इसके लिए एक लोकपाल कानून पर्याप्त नहीं होगा.

जदयू के शिवानंद तिवारी ने कहा कि आजादी के बाद से ही यदि लोकपाल गठित कर दिया जाता तो भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत नहीं हो पातीं. राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव के चलते पिछले 40 साल में लोकपाल नहीं बन पाया और भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगों का आक्रोश फूटना जायज है. उन्होंने लोकपाल शीघ्र बनाए जाने की मांग करते हुए कहा ‘‘हम राजनीतिज्ञों को भी अपने अंदर झांक कर देखना होगा कि हमने किस तरह गरीबों का हक छीना और हममें कहां कमजोरी है. आज के हालात इसी का नतीजा हैं.’’

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द्रमुक के तिरुचि शिवा ने कहा कि भ्रष्टाचार से अति प्रभावित देशों में भारत का नाम आना चिंताजनक है और भ्रष्टाचार देश के विकास के लिए भी घातक है. उन्होंने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने, न्यायपालिका को और अधिक जवाबदेह बनाने तथा सिटिजन चार्टर बनाए जाने की मांग की लेकिन कहा कि इसके लिए पहले गहन विचारविमर्श करना होगा.

शिवा ने कहा कि सभी मंत्रालयों में जन शिकायत प्रकोष्ठ होना चाहिए. उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में लोकायुक्त पहले से है और इसके सकारात्मक परिणाम रहे हैं. बहरहाल, उन्होंने यह भी कहा कि संसद सर्वोच्च है और कानून बनाने का अधिकार भी उसी के पास है.

राकांपा के तारिक अनवर ने कहा कि लोकपाल के मुद्दे पर कोई भी व्यक्ति या पक्ष संसद की स्थायी समिति के समक्ष अपना मत रख सकता है लेकिन इस मामले में संसद की अनदेखी नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि जब पिछले 45 साल में यह कानून नहीं बन पाया तो इस बात पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए कि इसे नौ दिन में पारित कर दिया जाए. उन्होंने कहा कि ऐसे कानून के दूरगामी परिणाम होते हैं. लिहाजा जल्दबाजी नहीं दिखाई जानी चाहिए.

अनवर ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सभी राजनीतिक दलों की भावनाओं को व्यक्त करते हुए अन्ना हजारे से उनका अनशन समाप्त करने की अपील की थी. लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ.

जन शिकायत निवारण की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संसद की एक स्थायी समिति ने बहुत पहले ही इसके लिए एक प्रभावी तंत्र बनाने का सुझाव दिया था. उस सुझाव पर अगर अमल हो गया होता तो आज यह मुद्दा उठता ही नहीं. उन्होंने कहा कि अन्ना पक्ष को संसद में इतना वक्त देना चाहिए ताकि वह संविधान के प्रावधानों के अनुरूप एक प्रभावी लोकपाल कानून बना सके.

बीजद के वैष्णव परीदा ने लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को लाए जाने का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाने से कई व्यवहारिक समस्याएं आएंगी. उन्होंने कहा कि राज्यों में लोकायुक्त के लिए कानून बनाने का अधिकार संबद्ध प्रदेशों की सरकारों को ही मिलना चाहिए.

तृणमूल कांग्रेस के सुखदेव शेखर राय ने कहा कि लोकपाल को असंख्य अधिकार दिए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि लोकपाल तानाशाही करने लगेगा तो उस पर कौन लगाम लगाएगा. उन्होंने कहा कि लोकपाल को संविधान के दायरे में रखा जाना चाहिए. राय ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखे जाने का सुझाव देते हुए कहा कि राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त करने का अधिकार केंद्र के पास नहीं होना चाहिए.

सपा के प्रो रामगोपाल यादव ने कहा कि स्थानीय अधिकारियों को लोकायुक्त के दायरे में लाने का सुझाव व्यवहारिक नहीं है क्योंकि इससे अदालतों में मुकदमों का अंबार लग जाएगा. उन्होंने कहा कि सांसदों को लोकपाल के दायरे में नहीं लाया जाए क्योंकि उनके पास कार्यपालिका के कोई अधिकार नहीं हैं.

भाकपा के डी राजा ने कहा कि भ्रष्टाचार किसी एक व्यक्ति या पार्टी से जुड़ा मुद्दा नहीं है बल्कि पूरा देश इस समस्या से परेशान है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा लाया गया लोकपाल विधेयक बेहद कमजोर और अप्रभावी है. उन्होंने कहा कि सरकार को सभी पक्षों के महत्वपूर्ण सुझावों को लेकर एक नया कानून बनाना चाहिए.

राजा ने कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाए जाने के बजाय मजबूत राष्ट्रीय न्यायिक आयोग कानून बनाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आज न्यायिक जवाबदेही आवश्यक बन गई है.

अन्नाद्रमुक केपीएम पांडियन ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखे जाने की वकालत करते हुए कहा कि उन्हें भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत छूट नहीं मिलती. उन्होंने लोकायुक्त की नियुक्ति का मामला राज्यों पर छोड़ देने पर बल दिया. उन्होंने कहा कि मौजूदा जिन विधेयकों के बारे में बात हो रही है, उनमें कई कमियां हैं और उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए. उन्होंने कहा कि विधेयक तैयार करने में विभिन्न कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए.

मनोनीत शोभना भरतिया ने कहा कि प्रभावी लोकपाल की जरूरत है लेकिन इसमें सावधानी रखी जानी चाहिए कि इसका दुरुपयोग नहीं हो. उन्होंने मीडिया सहित विभिन्न क्षेत्रों से भ्रष्टाचार समाप्त करने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए, लेकिन यह रोजाना के कार्यों में नहीं होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को लोकपाल में नहीं रखा जाना चाहिए और इसके लिए न्यायिक जवाबदेही विधेयक लाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि रामलीला मैदान का दबाव विधेयक पर नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि कुछ और समय भले ही लग जाए लेकिन व्यापक विधेयक होना चाहिए.

अगप के वीरेंद्र प्रसाद वैश्य ने अन्ना हजारे के आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए. उन्होंने केंद्र में मजबूत लोकपाल और राज्यों में मजबूत लोकायुक्त की आवश्यकता जतायी.

भाजपा के शांता कुमार ने कहा कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा चरम पर है और पिछले कुछ वर्षों की घटनाओं से लोग उद्वेलित हैं. उन्होंने कहा कि राजनीतिक व्यवस्था पर विश्वास बहाल कराने का मौका मिला है और उसका उपयोग किया जाना चाहिए.

कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा कि संविधान के विरूद्ध जाने का अधिकार किसी भी नागरिक को नहीं दिया जा सकता. उन्होंने कहा कि अन्ना टीम को लचीला रुख अपनाना चाहिए ताकि देश विघटन की स्थिति की ओर नहीं जाये. उन्होंने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखे जाने की वकालत की. निर्दलीय मोहम्मद अदीब ने जहां कहा कि इस बात का पता लगाना चाहिए कि कही भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के पीछे कोई बड़ी साजिश तो नहीं है वहीं शिवसेना के भरत राउत ने कहा कि लोकपाल को हटाने के लिए महाभियोग जैसी कोई कार्रवाई निर्धारित की जानी चाहिए.

भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने का विरोध करने वालों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून सहित तमाम कानून होने के बावजूद क्या आज तक किसी मामले में प्रधानमंत्री को फंसाया गया है.

लोजपा के राम विलास पासवान ने कहा कि भ्रष्टाचार के विरोध के नाम पर संविधान को तोड़ने की साजिश चल रही है. उन्होंने कहा कि इस बात की भी आशंका है कि कहीं इसके पीछे अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के हितों को नुकसान पहुंचाने की तो साजिश नहीं की जा रही है. चर्चा में कांग्रेस के सैफुद्दीन सोज, प्रभा ठाकुर और जेसुदास सीलम, शिरोमणि अकाली दल के नरेश गुजराल, राजद के रामकृपाल यादव ने भी भाग लिया.

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