जब भी हम कोई गलत काम करते हैं और कोई टोक दे तो तुरंत उसे सही साबित करने के लिए दलीलें पेश की जाने लगती हैं. हम सही-गलत का फर्क करना बंद कर देते हैं. लेकिन यह कितना नुकसानदायक है जानिए संजय सिन्हा की कहानी में.