ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में भारत 2-0 से पिछड़ चुका है. यहां से सीरीज में वापसी भी टीम इंडिया के लिए अब बहुत मुश्किल दिखाई पड़ती है. हालांकि इस दौरे में भारतीय टीम ने पिछले ऑस्ट्रेलिया दौरे की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है. लेकिन सच्चाई यह भी है कि भारत इस सीरीज में जहां 2-0 से पीछे है वहीं कम से कम 1-0 से आगे भी हो सकता था. एडिलेड टेस्ट के अंतिम दिन आखरी सत्र में 8 विकेट ताश की पत्तियों की तरह न बिखरे होते, तो मैच का परिणाम भारत के पक्ष में हो सकता था. ब्रिसबेन में भी भारत ने दूसरी पारी में अच्छी बैटिंग की होती तो मैच ड्रॉ हो सकता था. ऑस्ट्रेलिया ने दूसरी पारी में जिस तरह बैटिंग की उसे देखकर तो कई बार यह लगता रहा कि काश भारत ने कुछ और रन बनाए होते तो यहां भी मैच भारत के पक्ष में मुड़ सकता था.
एडिलेड में विराट कोहली ने दिल तो जीता लेकिन मैच न जीत पाए
एडिलेड टेस्ट कई मायनों में यादगार रहा. कोहली ने बतौर टेस्ट कप्तान डेब्यू किया. दोनों पारियों में शतक जड़ा, और कप्तान के रूप में अपने पहले मैच में सर्वाधिक रन बनाने का विश्व रिकॉर्ड भी बना डाला. जब टीम इंडिया को जबरदस्त स्पिन लेती पिच पर 364 रनों का लक्ष्य मिला तो किसी ने नहीं सोचा होगा कि भारत जीत के इतने करीब चला जाएगा. बेशक मैच भारत हार गया लेकिन कोहली ने सबका दिल जीता. हालांकि यह पहला मौका नहीं था जब टीम इंडिया जीत के करीब आकर मैच हार गई हो.
2013 में जोहानिसबर्ग टेस्ट में टीम इंडिया जीता हुआ मैच हारते-हारते बची
सचिन, द्रविड़ और लक्ष्मण के बिना पहली बार भारतीय टीम ने 2013-2014 में दक्षिण अफ्रीका का दौरा किया. पहला टेस्ट जोहानिसबर्ग में था. टॉस जीतकर बल्लेबाजी करते हुए भारत ने पहली पारी में 280 रन बनाए. दक्षिण अफ्रीका की टीम पहली पारी में 244 रन पर ढेर हो गई और भारत को 36 रनों की मामूली बढ़त हासिल हुई. टीम इंडिया ने अपनी दूसरी पारी में और मजबूती के साथ बल्लेबाजी करते हुए 421 रन ठोक डाले और मेजबान टीम को 458 रनों का भारी-भरकम लक्ष्य दिया. भारत ने एक समय मात्र 197 पर ग्रीम स्मिथ, अल्वीरो पीटरसन, हाशिम अमला और कैलिस का विकेट भी झटक लिया.
इसके बाद ऐसा लगने लगा था कि भारत यह मैच जीत जाएगा, लेकिन फाफ डू प्लेसिस और एबी डिविलियर्स ने शतक ठोंककर टीम इंडिया को बैकफुट पर धकेल दिया. आखिर में स्थिति ये हो गई थी कि लगने लगा कि टीम इंडिया हार जाएगी. लेकिन पांचवे दिन खेल समाप्ति से ठीक 3.1 ओवर पहले 442 रन के स्कोर पर जैसे ही डू प्लेसिस का विकेट गिरा, मानो मेजबान टीम ने जीत का इरादा ही छोड़ दिया. आखरी 19 गेंद में दक्षिण अफ्रीका को 16 रन चाहिए थे और उनके पास 3 विकेट भी शेष थे, लेकिन इसके बावजूद भी मेजबान टीम ने मैच को ड्रॉ कराना बेहतर समझा. हालांकि मेजबान टीम की यह रणनीति किसी को समझ नहीं आई.
फरवरी 2014 में न्यूजीलैंड के खिलाफ दूसरा टेस्ट हाथ से फिसल गया
न्यूजीलैंड के खिलाफ पहला टेस्ट गंवाने के बाद दूसरे टेस्ट में भारत ने जोरदार वापसी की. मेजबान टीम को पहली पारी में मात्र 192 रन पर समेटने के बाद भारत ने अपनी पहली पारी में 438 रनों का शानदार स्कोर खड़ा किया. दूसरे ही दिन न्यूजीलैंड की दूसरी पारी भी शुरू हो गई और खेल खत्म होने तक न्यूजीलैंड ने 24 रन पर एक विकेट भी गंवा दिया. तीसरे दिन भारतीय गेंदबाजों ने कीवियों पर जबरदस्त हमले किए और 94 रन तक पहुंचते पहुंचते उनके 5 विकेट गिरा दिए. उस समय लगने लगा था कि भारत शायद बहुत बड़ी जीत दर्ज करेगा. लेकिन इसके बाद भारतीय गेंदबाजों का वो रूप दिखा जो किसी को यकीन नहीं हुआ. कीवी कप्तान ब्रेंडन मैक्कुलम, विकेटकीपर बीजे वाटलिंग और ऑल राउंडर जिमी निशम ने भारतीय गेंदबाजों की बखिया उधेड़ कर रख दी. मैक्कुलम ने ऐतिहासिक पारी खेलते हुए 302 रन बनाए, वाटलिंग ने 124 और निशम ने 137 रनों की पारी खेलकर न्यूजीलैंड के स्कोर 94 पर 5 से 680 तक पहुंचा दिया. अंतिम दिन भारत को 435 रनों का लक्ष्य मिला और भारत ने खेल समाप्ति तक 3 विकेट पर 166 रन बनाकर मैच ड्रॉ कराया.
सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण के संन्यास के बाद टीम इंडिया ने भारत में तो अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन विदेशों में निराश किया है. हालांकि ऐसा नहीं है कि विदेशों में भारत मुकाबला ही नहीं कर सका. भारत ने कड़ी टक्कर दी, लेकिन आखरी समय पर मैच पर पकड़ ढीली करने का भारत को खामियाजा भुगतना पड़ा और भारत ने जीत के कई सुनहरे मौके गंवा दिए. बकौल धोनी धीरे-धीरे भारतीय युवा खिलाड़ी अनुभव हासिल कर रहे हैं और हम जीत के करीब आ रहे हैं. बहरहाल, धोनी की इस सकरात्मक सोच के बाद भी न जाने यह टीम इंडिया जीतना कब सीखेगी.