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सिर्फ हॉकी नहीं... ओडिशा का खेलों की 'महाशक्ति' बनने का बड़ा सपना

ओडिशा ने वर्ल्ड एथलेटिक्स कॉन्टिनेंटल टूर की सफल मेजबानी कर दिखा दिया है कि वह अब सिर्फ हॉकी का गढ़ नहीं, बल्कि बहु-खेल केंद्र बनने की राह पर है. 2017 एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप से शुरू हुई यह यात्रा अब राज्य की खेल संस्कृति और बुनियादी ढांचे को नया आयाम दे रही है.

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ओडिशा की बड़ी छलांग – खेल महाशक्ति बनने की ओर... (Photo- India Today)
ओडिशा की बड़ी छलांग – खेल महाशक्ति बनने की ओर... (Photo- India Today)

प्रतिष्ठित वर्ल्ड एथलेटिक्स कॉन्टिनेंटल टूर (World Athletics Continental Tour) की मेजबानी कर ओडिशा ने संकेत दिया है कि वह अब बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार है. भारतीय हॉकी के गढ़ के रूप में लंबे समय से मशहूर यह राज्य अब एथलेटिक्स की ओर रुख कर रहा है, और उसका साफ लक्ष्य है खुद को अगले बहु-खेल केंद्र (multi-sport hub) के रूप में स्थापित करना.

10 अगस्त को जब 17 देशों के खिलाड़ी भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में दौड़, कूद और थ्रो जैसे मुकाबलों में हिस्सा ले रहे थे, तब ओडिशा ने एक बार फिर साबित किया कि वह न केवल विश्वस्तरीय आयोजन कर सकता है, बल्कि उसे पेशेवर अंदाज और गर्व के साथ अंजाम भी दे सकता है.

भारत जब 2036 ओलंपिक की मेजबानी के सपने को संजो रहा है, तो बड़ा सवाल यही है कि इसका भार कौन उठाएगा? अहमदाबाद को भले ही प्रबल दावेदार माना जा रहा हो, लेकिन देश बहु-शहर मॉडल पर भी विचार कर सकता है. एक ऐसा विचार जिसे हाल ही में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने समर्थन दिया है. भारत को अभी एक समन्वित राष्ट्रीय प्रयास की आवश्यकता है और यहीं ओडिशा की भूमिका अहम हो जाती है.

लंबे समय से भारत सामूहिक प्रगति की इस प्राचीन अवधारणा पर खरा नहीं उतर पाया. राज्यों के बीच पानी, जंगल और संसाधनों को लेकर झगड़े होते रहे. लेकिन कभी देश के सबसे गरीब इलाकों में गिना जाने वाला ओडिशा अब नई राह गढ़ रहा है. हॉकी से लेकर एथलेटिक्स और अन्य खेलों तक... यह राज्य दिखा रहा है कि खेल में निवेश का मतलब सिर्फ ढांचा खड़ा करना नहीं, बल्कि संस्कृति का निर्माण करना भी है.

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खेल संस्कृति का उभार

इस क्रांति की शुरुआत 2017 में हुई, जब ओडिशा ने केवल 90 दिन की तैयारी में एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की मेजबानी कर सबको चौंका दिया. यही आयोजन वह मोड़ था, जिसने ओडिशा को आत्मविश्वास दिया कि वह कुछ बड़ा कर सकता है. उस समय न तो पर्याप्त होटल थे और न ही ढांचा, लेकिन राज्य ने पीछे हटने की बजाय अवसर को चुनौती की तरह लिया.

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ओडिशा का फोकस ओलंपिक 2036

यही दृष्टिकोण हॉकी में भी अपनाया गया. जब यह खेल लोकप्रियता और निवेश के लिहाज से सबसे निचले स्तर पर था, तब ओडिशा ने न केवल भारतीय टीम को प्रायोजित किया, बल्कि दो हॉकी वर्ल्ड कप की मेजबानी भी की. भुवनेश्वर का कलिंगा स्टेडियम और राउरकेला का बिरसा मुंडा हॉकी स्टेडियम आज दुनिया के बेहतरीन स्थलों में गिने जाते हैं.

एक अधिकारी ने इंडिया टुडे से कहा, 'उस समय कई लोगों ने सवाल उठाए थे. एक ऐसा राज्य जिसकी प्राथमिकता गरीबी हटाना होनी चाहिए, वह इन कामों में क्यों लग रहा है? लेकिन लोग यह नहीं समझ पाए कि खेल अपने आप में एक अर्थव्यवस्था है. खेल को बढ़ावा देने का मतलब यह नहीं कि आप आर्थिक विकास को दरकिनार कर रहे हैं. खेल भी अर्थव्यवस्था में योगदान करता है.'

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नई ओडिशा की नई दृष्टि

अब ताजा कदम एथलेटिक्स की ओर है. नव-निर्वाचित मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी के नेतृत्व में ओडिशा का लक्ष्य साफ है- भारत को 2036 ओलंपिक तक का खेल स्तंभ बनाना.

सीएम माझी ने इंडिया टुडे से कहा, 'सच कहूं तो बड़ी योजना बनाने और उसे अंजाम देने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होती है.' हाल ही में उन्होंने 4,124 करोड़ रुपये का अब तक का सबसे बड़ा खेल निवेश घोषित किया.

भाजपा सरकार के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के तहत राज्य के 314 प्रखंडों में स्टेडियम बनेंगे, जिनमें फुटबॉल मैदान, 400 मीटर एथलेटिक ट्रैक, दो बैडमिंटन कोर्ट और एक इंडोर हॉल शामिल होंगे.

मुख्यमंत्री ने कहा, 'यह एक समग्र परिसर होगा. हमने जमीन तय कर ली है, खरीद प्रक्रिया पूरी कर ली है और निर्माण कार्य अगले तीन-चार महीनों में शुरू हो जाएगा. यह पांच साल की योजना है.'

खिलाड़ी लंबे समय से जमीनी स्तर पर इस तरह की सुविधाओं की मांग कर रहे थे. इस योजना से उनकी वह मांग पूरी होगी. पैरा बैडमिंटन की पूर्व विश्व नंबर-1 खिलाड़ी मानसी जोशी जैसी हस्तियों ने भी इन सुविधाओं का समर्थन किया है. ओडिशा सरकार समझती है कि खेल संस्कृति को मजबूत करने के लिए तीन स्तंभों पर काम करना जरूरी है.

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इंफ्रास्ट्रक्चर, कोचिंग और प्रतियोगिता

कलिंगा स्टेडियम इसका उदाहरण है, जिसमें मुख्य स्टेडियम, इंडोर स्टेडियम, अभ्यास मैदान और स्पोर्ट्स साइंस सेंटर सब कुछ एक साथ मौजूद हैं. ओडिशा का खेल पारिस्थितिकी तंत्र अचानक नहीं बना. यह बारीकी से बनाई गई रणनीति का नतीजा है. कई अधिकारियों को विदेश भेजा गया, ताकि वे बेहतरीन स्टेडियम प्रबंधन और निर्माण के गुर सीख सकें.

रिलायंस, टाटा और आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया जैसी कंपनियों को अलग-अलग खेलों की जिम्मेदारी दी गई. अभिनव बिंद्रा फाउंडेशन और राज्य सरकार ने मिलकर कलिंगा स्टेडियम में स्पोर्ट्स साइंस सेंटर स्थापित किया, जिसमें क्रायोथेरेपी, ड्रीम पॉड और एंटी-ग्रैविटी ट्रेडमिल जैसी सुविधाएं मौजूद हैं.

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कलिंगा स्टेडियम का स्पोर्ट्स साइंस सेंटर.

इसके अलावा राज्य ने पर्यटन पर भी निवेश किया ताकि अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के आने पर होटल और ठहराव की दिक्कत न हो. खेल पर्यटन और रोजगार दोनों को बढ़ावा देता है। जैसे कि किसी 5-स्टार होटल के एक कमरे से सीधा 3 और परोक्ष रूप से 10 रोजगार मिलते हैं.

निवेश का लाभ और सामाजिक असर

ओडिशा को उम्मीद है कि यह निवेश राज्य को बड़े सामाजिक-आर्थिक लाभ देगा. मुख्यमंत्री और खेल सचिव दोनों का कहना है कि 5 वर्षों में 4000 करोड़ रुपये राज्य के 3 लाख करोड़ रुपये के वार्षिक बजट का बहुत ही छोटा हिस्सा है.

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पुरी का हाई-परफॉर्मेंस सेंटर इसका उदाहरण है, जहां खो-खो खिलाड़ियों के लिए विशेष ढांचा बनाया गया. अब वहां के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर महाराष्ट्र को हरा रहे हैं और अन्य जिलों में उत्साह फैला रहे हैं.

कलिंगा स्टेडियम का स्पोर्ट्स साइंस सेंटर

खिलाड़ियों को नकद पुरस्कार, शिक्षा और सरकारी नौकरियों में खेल कोटे का फायदा मिलता है, जिससे उनके परिवार आर्थिक रूप से सुरक्षित हो रहे हैं. खेल सचिव सचिन जाधव कहते हैं, 'यह समग्र विकास है. जो भी बच्चे इन खेल छात्रावासों में आते हैं, उन्हें किसी न किसी तरह की आर्थिक सुरक्षा लगभग सुनिश्चित होती है. मुझे विश्वास है कि यह मॉडल जल्द ही देश भर में अपनाया जाएगा.'

भारत का ओलंपिक सपना तभी साकार होगा जब कई राज्य इसकी जिम्मेदारी साझा करें. अगर ओडिशा जैसे राज्य कुछ खेलों की जिम्मेदारी उठाएं और ढांचे को आगे बढ़ाते रहें, तो भारत बहु-शहर मॉडल के जरिए ओलंपिक की मेजबानी के लिए तैयार हो सकता है.

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