scorecardresearch
 

इस एक शख्स ने हिला दी BCCI की नींव, बदल जाएगी बोर्ड की राजनीति

विश्व क्रिकेट के इस चौंकाने वाले घटनाक्रम के पीछे जिस एक शख्स को सबसे ज्यादा जिम्मेदार बताया जा रहा है वो है बिहार के एक छोटे से जिले छपरा से आने वाले बिजनेसमैन आदित्य वर्मा. 53 साल के आदित्य कभी बिहार की रणजी टीम का हिस्सा हुआ करते थे और उनकी लड़ाई भी इस टीम को दोबारा उसकी पहचान दिलाने के लिए ही थी.

Advertisement
X
आदित्य वर्मा
आदित्य वर्मा

देश का सबसे लोकप्रिय खेल और उसकी विश्व की सबसे अमीर संस्था बीसीसीआई. किसी ने सोचा तक नहीं होगा कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जिसकी तूती अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट समिति यानी आईसीसी तक बोलती है उसके दो ताकतवर अध्यक्ष, पहले एन श्रीनिवासन और फिर अनुराग ठाकुर को इस तरह अपने पद से हाथ धोना पड़ेगा. विश्व क्रिकेट के इस चौंकाने वाले घटनाक्रम के पीछे जिस एक शख्स को सबसे ज्यादा जिम्मेदार बताया जा रहा है वो है बिहार के एक छोटे से जिले छपरा से आने वाले बिजनेसमैन आदित्य वर्मा. 53 साल के आदित्य कभी बिहार की रणजी टीम का हिस्सा हुआ करते थे और उनकी लड़ाई भी इस टीम को दोबारा उसकी पहचान दिलाने के लिए ही थी.

आदित्य वर्मा ने जब बीसीसीआई के आकाओं से दो-दो हाथ करने का फैसला किया था तो उनकी लड़ाई महज इसके लिए थी कि बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआई से मान्यता मिल जाए. बीसीसीआई के इससे इनकार करने पर वर्मा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. धीरे-धीरे ये कानूनी संघर्ष भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे क्रांतिकारी बदलावों का कारण बना और अनुराग ठाकुर और अजय शिर्के जैसे दिग्गजों की एक झटके में बर्खास्तगी हो गई.

Advertisement

2000 में पड़ी थी झगड़े की नींव

आदित्य वर्मा की इस लड़ाई की नींव पड़ी साल 2000 में जब मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बिहार का भी विभाजन हुआ और क्रमशः छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड जैसे प्रदेश अस्तित्व में आए. मध्यप्रदेश और यूपी की क्रिकेट एसोसिएशनों पर तो इस विभाजन का कोई बड़ा असर नहीं पड़ा लेकिन बिहार क्रिकेट एसोसिएशन का नाम बदलकर झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन कर दिया गया. बीसीसीआई ने उसे पूर्ण राज्य एसोसिएशन की मान्यता भी दे दी. वर्मा ने बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को मान्यता दिलाने की मांग के साथ अपनी लड़ाई शुरू की. वे इस एसोसिएशन के सचिव हैं.

फिक्सिंग की फांस में गई एन श्रीनिवासन की कुर्सी

आईपीएल फिक्सिंग मामला सामने आने के बाद 2013 में वर्मा ने बांबे हाईकोर्ट में याचिका डाली कि मामले की जांच के लिए बीसीसीआई द्वारा बनाए गए पैनल को असंवैधानिक घोषित किया जाए. उनकी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कोर्ट के एक के बाद एक आए आदेशों के बाद ही बीसीसीआई के पूर्व प्रमुख एन श्रीनिवासन को अपनी कुर्सी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. तब माना जा रहा था कि आदित्य वर्मा के पीछे श्रीनिवासन के धुर विरोधी ललित मोदी का हाथ है जो वर्मा के बहाने श्रीनिवासन को बेदखल करने की कोशिश कर रहे हैं. खास बात ये कि श्रीनिवासन की विदाई और अनुराग ठाकुर की बीसीसीआई के अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के बावजूद आदित्य का मकसद हल नहीं हुआ क्योंकि बिहार की एसोसिएशन को मान्यता नहीं मिली. वर्मा को अब उम्मीद है कि ठाकुर के हटने से और जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें लागू होने से बिहार को मान्यता का रास्ता साफ हो जाएगा.

Advertisement

बीसीसीआई में निजाम बदला, नीयत नहीं

आदित्य का तर्क है कि जब गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की तीन-तीन टीमें रणजी में खेलती हैं तो बिहार जैसे बड़े राज्य को इससे क्यों महरूम रखा गया है. 1935 से बिहार क्रिकेट एसोसिएशन BCCI का पूर्ण सदस्य था. उसकी रणजी टीम भी थी जिसमें खुद भारत के सबसे सफल कप्तान महेंद्र सिंह धोनी खेल चुके हैं. उसे सिर्फ इसलिए मान्यता नहीं दी जा रही क्योंकि बीसीसीआई के आकाओं को उसका वोट अपने खिलाफ पड़ने की उम्मीद थी. आदित्य ने जब ये लड़ाई शुरू की थी तब मीडिया में उनके तर्कों को ज्यादा तरजीह नहीं दी जाती थी. वे जिस तरह कोर्ट में याचिकाएं दायर करते हैं उससे उनके करीबी उन्हें आदतन याचिकाकर्ता तक कहने लगे थे. उनका बेटा बंगाल की अंडर 19 टीम से खेल चुका है और जानता है कि पिता की बीसीसीआई आकाओं से अदावत के चलते उसका आगे का करियर स्याह है.

आदित्य वर्मा भले ही लो प्रोफाइल रहते हों लेकिन सियासत और क्रिकेट में उनके कई दोस्त हैं. जब से बीसीसीआई से उन्होंने दो-दो हाथ शुरू किए हैं तब से उनके कई नए दोस्त बने हैं तो कुछ पुराने उनसे अलग भी हुए हैं. एक वेबसाइट से बातचीत में उन्होंने खुद बताया कि बीसीसीआई के कई कद्दावर वर्तमान और निवर्तमान पदाधिकारी उनसे संपर्क में रहते थे. वे बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा और अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा के लिए भी काम कर चुके हैं.

Advertisement
Advertisement