सर आर्थर कोनन डॉयल. शेरलॉक नाम के किरदार को रचने वाले राइटर. लिक्खाड़ होने के अलावा डॉक्टर भी थे और इसका पूरा असर शेरलॉक पर दिखाई भी पड़ता है. लेकिन आर्थर इस सब के अलावा एक क्रिकेट प्रेमी भी थे.
जब ये तय हो गया था कि वो लेखक के तौर पर 'सेटल' हो गए हैं और 'शेरलॉक को कुछ नहीं होगा', उन्होंने अपनी मेडिकल प्रैक्टिस बंद की, लिखना और क्रिकेट खेलना शुरू किया. कोनन डॉयल ने एक टीम से खेलना शुरू किया था जिसमें लेखक ही लेखक थे. उनके साथ पीटर पैन के कैरेक्टर को लिखने वाले जेम्स मैथ्यू बैरी, पीजी वोडहाउस खेलते थे.
1900 में आर्थर ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में कदम रखा. एमसीसी की टीम में उन्हें जगह मिली. अपने फर्स्ट क्लास करियर में आर्थर ने लॉर्ड्स में 8 मैच खेले. और इन्हीं 8 मैचों में से शुरूआती एक मैच ने आर्थर को क्रिकेट के इतिहास में एक सुनहरी जगह बिठाया. आर्थर कोनन डॉयल ने डब्लू जी ग्रेस का विकेट लिया. ये आर्थर का एकमात्र फ़र्स्ट क्लास विकेट रहा.
आर्थर ने साल 1927 में एक डब्लू जी ग्रेस की याद में एक लेख लिखा. इसमें आर्थर ने लिखा: "जो उन्हें जानते थे, वो लॉर्ड्स के उस शानदार घास से लदे मैदान को बगैर उस महान खिलाड़ी को ज़हन में रखे नहीं देखेंगे. आप उन्हें कई तरीक़ों से देख सकते हैं. ज़्यादातर ऐसा दिखता है कि वो पवेलियन की सीढ़ियों से नीचे उतर रहे हैं और लगभग 10 हज़ार लोग तालियां बजा रहे हैं.

लाल और पीली टोपी, भारी कंधे और वो मशहूर लम्बी दाढ़ी उस खुले दरवाज़े से बाहर निकलती दिख रही होती है. आप साफ़-साफ़ वो मौका भी देख सकते हैं जब वो विकेट की स्थिति से नाख़ुश थे और उन्हें एक ऐसी जगह दिख गयी थी जिसे रोलर ने मिस कर दिया था.
वो पिच पर घुटने मोड़कर, अपनी एड़ियों पर बैठते थे और अपने बल्ले से पिच के उस शरारत कर सकने वाले हिस्से की मरम्मत में जुट जाते थे. इस सबसे ज़्यादा, आपको याद रहती थी वो लम्बी-चौड़ी कद-काठी और चहुंओर फैलने वाली वो हंसी जो लंच के बाद इकट्ठा हुए लोगों के बीच मौजूद दिखती थी. वो क्रिकेट का दूसरा रूप थे और खेल में एक नयी हवा का झोंका लेकर आये थे.
वो ख़ुशी, द्वेष से दूर अच्छी प्रतिस्पर्धा, उदात्त मतभेद के प्रचारक थे और हमेशा बगैर कोई ग़लत कदम उठाये जीतना चाहते थे और नियमों के उल्लंघन से दूर छिटकते थे. वो ऐसे थे और ऐसे ही रहेंगे. जिस पीढ़ी में वो मौजूद हैं, उससे आने वाले बहुत कम ही लोगों ने उन जैसा योगदान किया है. क्रिकेट बेहद स्वाभाविक और बेइरादा रूप में उनके पास आया, फिर भी इस खेल पर उनका प्रभाव किसी और से कम नहीं है."
ग्रेस सेंचुरी बनाकर 110 रनों पर बैटिंग कर रहे थे और आर्थर अपनी स्पिन गेंदबाज़ी में लगे हुए थे. उनके साथ एक अच्छी और बुरी बात ये थी कि उनकी फेंकी बॉल की फ़्लाइट कब कैसी होगी, किसी को नहीं पता होता था. खुद उन्हें भी नहीं. डब्लू जी ग्रेस शायद इसी में फंस गए और एक लुप्पा बनाकर फेंकी गयी गेंद को बाउंड्री पार भेजने के चक्कर में सर के ऊपर ही खड़ा कर दिया. कीपर ने कैच पकड़ा और कोनन डॉयल के खाते में क्रिकेट के महान नामों में से एक का विकेट आया.

इस सबके साथ शेरलॉक के नाम की कहानी भी मज़ेदार है. साल 1885 में डर्बीशेयर और एमसीसी की टीमों के बीच लॉर्ड्स में एक मैच खेला जा रहा था. इस वक़्त कोनन डॉयल एमसीसी मेंबर थे. डर्बीशेयर की टीम में दो खिलाड़ी थे - फ्रैंक शैकलॉक और शैकलॉक का भाई विलियम मायक्रॉफ्ट. ये साथ में बॉलिंग करते और सामने वालों को धूल चटा देते.
कोनन डॉयल इनसे बेहद इम्प्रेस्ड हुए. शैकलॉक इससे पहले नॉटिंघम से खेलते थे जहां उनकी टीम में मॉर्डेसे शेरविन मौजूद थे. शेरविन को उस वक़्त का सबसे बेहतरीन विकेट कीपर माना जाता था. कोनन डॉयल ने नॉटिंघम के दो दोस्तों के नामों, शेरविन और शैकलॉक को मिलाकर बनाया शेरलॉक. और उसके भाई का नाम - मायक्रॉफ्ट. 1887 में उन्होंने शेरलॉक की पहली कहानी 'अ स्टडी इन स्कारलेट' लिखी.
आर्थर कोनन डॉयल का 22 मई को जन्मदिन होता है.