सावन के महीने में महादेव के दर्शनों की चाह हर भक्त के मन में होती है, लेकिन अगर आपको महादेव के साथ-साथ ब्रह्मा और विष्णु के भी दर्शन हो जाएं, तो सोने पर सुहागे वाली बात हो जाए. मेहकर के शारंगधर बालाजी के दरबार में जहां बालाजी का दिव्य रूप भक्तों को अभिभूत करता है तो वहीं विष्णु संग ब्रह्मा और महेश के दर्शन कर जीवन धन्य हो जाता है.
नागपुर से 350 किलोमीटर दूर मूलधाना प्रणीता नदी के तट पर मेहकर के सारंगधर बालाजी के साथ ब्रह्मा और महेश भी विराजते हैं. एक साथ तीन देवताओं के दर्शन ही इस मंदिर को विशेष और अद्भुत बना देते हैं.
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है 12 फीट की बालाजी की प्रतिमा, जो हजारों साल पुरानी है. इस मंदिर में आने वाले भक्तों को यहां आकर एक अलौकिक अनुभूति होती है, उनकी माने तो यहां आकर मन को शांति मिलती है और आत्मा को तृप्ति. साथ ही त्रिदेव से मांगी हर मन्नत पूरी होने का विश्वास भी भक्तों यहां खींच लाता है.
सुशील फतेहरपुरा एक भक्त हैं और कहते हैं कि ये मंदिर जितना सुंदर है उतना ही प्राचीन भी है. इस मंदिर का उल्लेख पद्मपुराण, मत्स्य पुराण के साथ-साथ भगवत गीता में भी मिलता है. कहा जाता है कि एक बार शिव जी से माता पार्वती ने पूछा कि धरती पर ऐसा कौन का मंदिर है जहां सावन के महीने में पूजा करने से कष्टों से मुक्ति और मन को शांति मिल सकती है, तब शिव जी ने मां पार्वती को इसी बालाजी मंदिर के दर्शन का महत्व बताया. पुराणों में बताये गए इस महत्व के चलते सावन में बड़ी संख्या में यहां आकर पूजा और अभिषेक करते हैं.
पुजारी नरेन्द्र नाराणी कहते हैं कि इस मंदिर में सिर्फ त्रिदेव के ही एक साथ दर्शन नहीं होते, बल्कि इस भव्य मूर्ति में विष्णु के दशावतार के भी दर्शन होते हैं इसलिए कहा जाता है कि यहां आकर दर्शन करने से देवलोक के दर्शनों का भी सौभाग्य मिल जाता है.
सावन में भगवान शिव की पूजा तो होती ही है, लेकिन मेहकर के इस मंदिर में बालाजी और ब्रह्मा जी की भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है. सावन के पूरे महीने में तीनों देवताओं का अभिषेक किया जाता है, साथ ही इनकी भव्य आरती भी उतारी जाती है. सबसे खास बात ये है कि यहां भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी भी विराजमान हैं, जो भगवान विष्णु के चरणों पर नजरें गड़ाए हुए हैं. कहते हैं यहां दर्शन करने वालों पर मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है.
वैसे तो बालाजी यानि विष्णु हर जगह अकेले ही विराजते हैं, लेकिन ये एक ऐसा अकेला मंदिर है, जहां महालक्ष्मी संग भगवान विष्णु विराजे हैं और जहां मां लक्ष्मी अपनी दृष्टि भगवान के पैरों पर गड़ाए हुए हैं. यानी इसका मतलब साफ है कि जो भी भगवान की शरण में आता है उसपर लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं.
सावन के महीने में दशावतार वाले बालाजी के इस मंदिर में सुबह से ही भगवान का अभिषेक शुरू हो जाता है और भक्त घंटों यहां आकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करते हैं. इस पावन महीने में रोज बालाजी को नई पोशाक पहनाकर उनका श्रृंगार किया जाता है.
पुराणों में इस मंदिर की कहानी का भी उल्लेख है. कहते हैं प्रणिता नदी के इस तट पर मेहकर नामक एक राक्षस रहता था, जो शिव तपस्या में लीन ऋषि मुनियों को परेशान किया करता था और उनकी तपस्या में विघ्न बाधाएं डाला करता था. ऐसे में परेशान ऋषियों ने शिव जी को प्रसन्न कर मुक्ति का मार्ग पूछा. तब शिव जी ने कहा कि इसके संहार का शस्त्र विष्णु जी के पास है, जिसे सारंग कहते हैं. तब ऋषियों ने तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने सारंग रूपी धनुष से मेहकर का वध कर दिया. इसके बाद से इस मंदिर को मेहकर के सारंगधर बालाजी कहा जाने लगा. इस मंदिर में भी सारंग धनुष भगवान विष्णु की मूर्ति में दिखायी देता है.