चंद्रगुप्त नाम के बच्चे को पूरे भारत का सम्राट बनाने वाले आचार्य चाणक्य ने सफल जीवन के लिए नीतियां निर्धारित की हैं. इनका उल्लेख चाणक्य नीति में मिलता है. महान राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री चाणक्य ने प्रेम के रिश्ते के बारे में कुछ ऐसी बात कही है जो आम धारणा से बिलकुल अलग है. आइए जानते हैं कि प्रेम को लेकर क्या कहते हैं चाणक्य..
यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥
चाणक्य के मुताबिक जिससे प्रेम होता है उसी से भय भी उत्पन्न होता है. इसलिए प्रेम ही सारे दुखों का जड़ है. वो कहते हैं कि प्रेम के बंधन को तोड़कर सुखी जीवन बिताना चाहिए. जो प्यार करते हैं वही डरते भी हैं. उन्हें खोने का डर होता है.
दह्यमानां सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना।
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते॥
दुष्ट व्यक्ति दूसरे की खुशी व सफलता को देखकर जलता है, परेशान होता है. वह स्वयं कभी सफल नहीं हो सकता. यही कारण है कि वह निन्दा करने लगता है.
बन्धन्य विषयासङ्गः मुक्त्यै निर्विषयं मन।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयो॥
बुराइयों में मन को लगाना ही बंधन कहलाता है. जो लोग हमेशा बुराई करने में लगे रहते हैं वो दुष्ट हैं. जो व्यक्ति बुराई से खुद को अलग कर लेता है वो सुखी रहता है, उसके लिए मोक्ष का मार्ग खुल जाता है. इस प्रकार के व्यक्ति का मन मोक्ष प्राप्त करने वाला होता है.