होली के आठ दिन पूर्व से होलाष्टक मनाया जाता है. इसकी शुरुआत होली के आठ दिन पहले हो जाती है. इस काल का विशेष महत्व है और इसी में होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. माना जाता है कि होलाष्टक की शुरुआत वाले दिन ही शिव जी ने कामदेव को भस्म कर दिया था. इस काल में हर दिन अलग अलग ग्रह उग्र रूप में होते हैं अतः इसमें शुभ कार्य नहीं करते हैं. होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं करते , परन्तु जन्म और मृत्यु के पश्चात किये जाने वाले कार्य कर सकते हैं. इस बार होलाष्टक 23 फरवरी से 02 मार्च तक रहेगा.
होलाष्टक के पर्व का वैज्ञानिक आधार क्या है?
- मौसम के परिवर्तन के कारण मन अशांत, उदास और चंचल रहता है
- अतः इस मन से किये हुए कार्यों के परिणाम शुभ नहीं हो सकते
- इस समय मन को आनंदित करने के कार्य किये जाना बेहतर होता है
- इसीलिए जैसे ही होलाष्टक समाप्त होता है , रंग खेलकर हम आनंद में डूबने का प्रयास करते हैं
क्या करते हैं होलाष्टक में?
- होलाष्टक के दिनों में ही संवत और होलिका की प्रतीक लकड़ी या डंडे को गाड़ा जाता है
- इस समय में अलग अलग दिन , अलग अलग चीज़ों से होली खेलते हैं
- पूरे समय में शिव जी या कृष्ण जी की उपासना की जाती है
- होलाष्टक में प्रेम और आनंद के लिए किये गए सारे प्रयास सफल होते हैं
क्या हैं होलाष्टक के अपवाद ? (कौन से शुभ कार्य कर सकते हैं )
- लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान जैसे शतरुद्रा, विपाशा, इरावती एवं पुष्कर सरोवर के अलावा बाकी सब स्थानों पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है
- पंजाब और उत्तर भारत के अलावा अन्य जगहों पर होलाष्टक का प्रभाव नहीं माना जाता है
- जन्म और मृत्यु के पश्चात के कार्य निश्चित होते हैं , अतः वे किये जा सकते हैं