27 जुलाई को इस सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण होने जा रहा है. पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य एक सीधी रेखा में आ जाएंगे और पृथ्वी की गहरी छाया चंद्रमा को पूरी तरह से ढक लेगी.
27 जुलाई को लोग इस खूबसूरत नजारे को अपनी आंखों में बसाने को उत्सुक हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था कि जब लोग चंद्रग्रहण से भयभीत रहते थे. प्राचीन समय में लोग चंद्रग्रहण को विनाश का संकेत मानते थे और बुरी तरह से इस खगोलीय घटना को लेकर डर जाते थे.
प्रचलित कहानियों में चंद्रग्रहण को लेकर एक दिलचस्प उदाहरण मिलता है. अमेरिका की खोज करने वाले महान यात्री क्रिस्टोफर कोलंबस चंद्र ग्रहण की घटना से अच्छी तरह वाकिफ था और 29 फरवरी 1504 को उसने इस चीज का भरपूर फायदा उठाया.
स्पेस.कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, कोलंबस और उसके साथी यात्रा के दौरान एक द्वीप में 6 महीनों तक फंसे रह गए थे. अब इस द्वीप को जमैका के नाम से जाना जाता है. जैसे-जैसे समय बीत रहा था, स्थानीय लोगों की उदारता और मेहमाननवाजी में कमी आने लगी. उन लोगों ने कोलंबस और उसके साथियों को खाना खिलाना बंद कर दिया.
तब कोलंबस ने आने वाले पूर्ण चंद्रग्रहण का फायदा उठाया. उसके पास जर्मन
खगोलविद जोहान्स मूलर का एक कैलेंडर था जिससे उसे पहले ही पता चल गया था कि
29 फरवरी 1504 को पूर्ण चंद्रग्रहण पड़ने वाला है.
कोलंबस ने इस परिस्थिति से निपटने के लिए एक चाल चली. उसने वहां के लोगों से कहा कि उनका भगवान बहुत नाराज है क्योंकि वे उन्हें खाना नहीं खिला रहे हैं. कोलंबस ने उन लोगों के मुखिया से कहा कि इसलिए अब उनका भगवान चंद्रमा को गायब कर देगा और 3 दिनों के भीतर चंद्रमा गुस्से से लाल हो जाएगा.
रविवार की रात को जब वाकई ब्लड मून आसमान में दिखा तो स्थानीय अरावाक भयभीत हो गए. डर के मारे वे कोलंबस और उसके साथियों को उनकी जरूरत का सारा सामान उपलब्ध कराने के लिए राजी हो गए. उन्होंने कोलंबस से कहा कि वह अपने भगवान से कहें कि वह आसमान में रोज निकलने वाला चंद्रमा लौटा दें.
दुनिया के महान यात्री कोलंबस ने लोगों से कहा कि उन्हें अपने भगवान से बात
करने के लिए थोड़ी देर एकांत में छोड़ना होगा. इसके बाद उसने खुद को लगभग 50
मिनट के लिए एक केबिन में बंद कर लिया. कोलंबस ने चंद्रग्रहण के चरणों का
सटीक अंदाजा लगाने के लिए बालू घड़ी का इस्तेमाल किया.
चंद्रग्रहण खत्म होने के कुछ मिनट पहले कोलंबस केबिन से बाहर निकले और लोगों के सामने ऐलान कर दिया कि उनके भगवान ने सबको माफ कर दिया है और अब वह धीरे-धीरे आसमान में चांद लौटा देंगे. कोलंबस के इस ऐलान के तुरंत बाद ही धीरे-धीरे चांद नजर आने लगा क्योंकि गणना के मुताबिक चंद्रमा पृथ्वी की छाया से बाहर निकल चुका था.
लोग अवाक रह गए. उन्हें यह किसी चमत्कार से कम नहीं लगा. उन लोगों ने
कोलंबस और उसके साथियों को हिस्पोनिया से राहत दल के ना आने तक
खिलाया-पिलाया. कोलंबस और उसके साथी 7 नवंबर को स्पेन लौट आए.
सांस्कृतिक खगोलविद हैम्चर ने कहा कि आसमान के बारे में भविष्यवाणी करना आसान है लेकिन जब कुछ असामान्य होता है और इस रोजमर्रा के ढांचे में पूरी तरह फिट नहीं बैठता है तो इससे लोगों के मन में हैरानी या डर का भाव जग जाता है.
उदाहरण के तौर पर, ऑस्ट्रेलिया के स्थानीय लोग लाल रंग को बुराई, खूनी या अग्नि से जोड़कर देखते हैं. आसमान में सामान्यत: कुछ भी ऐसा नहीं नजर आता है जिसका रंग लाल हो. लेकिन यहां के कुछ लोग समझते हैं कि अगर आसमान में लाल रंग नजर आना किसी बुरी घटना का संकेत है.
प्राचीन मेसोपोटामियन मिथकों में भी चंद्रग्रहण को सात राक्षसों के आक्रमण का परिणाम बताया गया है. नैशनल जियोग्राफिक के मुताबिक, पेरू के लोग ग्रहण को चंद्रमा पर किसी के आक्रमण की तरह देखते थे. चंद्रमा और पृथ्वी को बचाने के लिए पेरू के सम्राट चंद्रमा की तरफ भाले फेंकते थे, खूब शोर मचाते थे और अपने कुत्तों की चीख निकालने के लिए उन्हें पीटते थे.
हैम्चर कहते हैं कि अलग-अलग संस्कृतियां अपने आस-पास की दुनिया को अलग-अलग तरह के अर्थ देती हैं. अब लगभग पूरी दुनिया में इस खगोलीय घटना को लेकर लोग जागरुक है और उन्हें इसका वैज्ञानिक कारण पता है. ऐसे में अब हम जानते हैं कि इसमें डरने जैसा कुछ नहीं है.
वास्तव में खगोलीय घटना के ज्ञान से डर एक फैंटसी में बदल गया है.
चंद्रग्रहण पर चिल्लाने, जानवरों को पीटने और डरने के बजाए लोग 'गुस्से से
लाल' चांद को देखने के लिए बेताब रहते हैं. अब लोगों को पता है कि चांद का
लाल रंग वातावरण में होने वाली घटनाओं का नतीजा है और कुछ नहीं.