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Varadraj Perumal Mandir: छिपकली को छूने से बढ़ेगी धन-दौलत! अनोखी है इस मंदिर की मान्यता

Varadraj Perumal Mandir: तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित वरदराज पेरुमल मंदिर अपनी अनोखी परंपराओं और चमत्कारी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि यहां मंदिर के गर्भगृह में सिल्वर और गोल्डन कलर की दो छिपकलियों को छूने से इंसान के सारे संकट दूर हो जाते हैं और धनधान्य की प्राप्ति होती है.

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वरदराज पेरुमल मंदिर के गर्भगृह में दो छिपकलियों के स्पर्श से सर्प दोष और पिछले जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है. (Photo: Screengrab/Social Media)
वरदराज पेरुमल मंदिर के गर्भगृह में दो छिपकलियों के स्पर्श से सर्प दोष और पिछले जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है. (Photo: Screengrab/Social Media)

Varadraj Perumal Kanchipuram: भारत में ऐसे अनगिनत मंदिर हैं, जिनकी दुर्लभ परंपरा और रिवाज किसी भी इंसान को हैरान कर सकते हैं. तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में वरदराज पेरुमल नाम का एक ऐसा ही मंदिर है. ऐसी मान्यताएं हैं कि इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने वालों के घर कभी धन का अकाल नहीं पड़ता है. ऐसे लोग आर्थिक मोर्चे पर हमेशा मालामाल रहते हैं. एक और खास बात है जो इस मंदिर को बाकी दूसरे मंदिरों से खास बनाती है.

वरदराज पेरुमल मंदिर के गर्भगृह में दो छिपकलियों की आकृति को नक्काशी से उकेरा गया है. मंदिर की सीलिंग पर बनी गोल्डन और सिल्वर कलर की इन छिपकलियों के पास सूर्य और चंद्रमा भी दिखाई पड़ते हैं. स्थानीय लोगों में ऐसी मान्यता है कि मंदिर में मौजूद छिपकलियों को छूने से धनधान्य और सुख-संपन्नता की प्राप्ति होती है.

ऐसा भी कहते हैं कि इन छिपकलियों को छूने से आरोग्य का वरदान मिलता है. सर्प दोष और पिछले जन्म के पापों से भी लोगों को मुक्ति मिलती है. यही कारण है कि इन्हें स्पर्श करने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं और घंटों तक लंबी कतारों में खड़े रहते हैं. इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है.

वरदराज पेरुमल मंदिर की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महर्षि गौतम के आश्रम में उनके दो शिष्यों से भूलवश जल में छिपकली गिर गई. महर्षि गौतम जब उस जल का प्रयोग करने चले तो उनकी नजर छिपकली पर पड़ गई. यह देखकर महर्षि गौतम क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने दोनों शिष्यों को छिपकली के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया. दोनों शिष्यों ने जब महर्षि से क्षमा मांगी तो उनका दिल पिघल गया और उन्होंने इस श्राप से मुक्त होने का उपाय उन्हें बताया.

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महर्षि गौतम ने अपने श्रापित शिष्यों से कहा कि तुम कांचीपुरम जाकर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करो. अपने गुरु की आज्ञा पर दोनों शिष्यों ने ऐसा ही किया. भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना करने से उन दोनों को श्राप से मुक्ति मिल गई.

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