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सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे धार्मिक ही नहीं ये वैज्ञानिक कारण है शामिल, जानें कितना है ये लाभदायक

सनातन धर्म में सूर्य को जल से दिन की शुरुआत होती है. लेकिन क्या आपको पता है कि सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे जितना बड़ा धार्मिक महत्व है उतना ही बड़ा वैज्ञानिक महत्व है. आइए जानते हैं कि सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे क्या वैज्ञानिक कारण छुपा है.

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सूर्य अर्घ्य
सूर्य अर्घ्य

Surya Arghya: पूरे ब्रह्मांड में सूर्य हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. सूर्य न सिर्फ पृथ्वी पर रहने वाले जीवों को, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करता है. पौराणिक काल से ही सूर्य को देवता का दर्जा प्राप्त है. वैदिक ज्योतिष और हमारे पुराणों में सूर्य के महत्व का विस्तृत उल्लेख मिलता है. हिंदू धर्म में सुबह की शुरुआत प्रायः सूर्य देव को जल अर्पित करने से होती है. सूर्य को जल अर्घ्य देना एक महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है और आज भी उतनी ही मान्य है. आइए जानते हैं सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे के वैज्ञानिक कारणों के बारे में.

सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे का वैज्ञानिक कारण

सूर्य अर्घ्य का सीधा संबंध हमारे शरीर की जैविक प्रणाली से है. जब हम किसी स्थान की यात्रा करते हैं तो उस क्षेत्र के सूर्योदय और सूर्यास्त के अनुसार हमारा शरीर अपनी दिनचर्या व ऊर्जा स्तर को स्वतः परिवर्तित कर लेता है. इसका अर्थ है कि सूर्य का प्रभाव सीधे हमारे शरीर पर पड़ता है.

अर्घ्य देते समय जब हम जल की धारा के माध्यम से सूर्य की ओर देखते हैं, तो सूर्य से निकलने वाली सात प्रकार की किरणें हमारी आंखों तक पहुंचती हैं. इससे आंखों की रोशनी को लाभ मिलता है और शरीर को भी सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता है. इस प्रक्रिया को कलर थेरेपी कहा जाता है, जिसे क्रोमोथेरेपी भी कहा जाता है. यह थेरेपी शरीर और मन के संतुलन को बनाए रखने में सहायक होती है और तनाव कम करने में भी उपयोगी मानी जाती है.

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यह अवधारणा प्राचीन मिस्र सभ्यता से भी जुड़ी हुई है, जहां लोग सूर्य की पूजा करते थे और मानते थे कि रंगीन क्रिस्टल के माध्यम से सूर्य की किरणें शरीर में प्रवेश कर बीमारियों को दूर करती हैं. इसी प्रकार प्राचीन भारत में भी सूर्य अर्घ्य को ऊर्जा और स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माना गया.

प्राचीन भारत में सूर्य अर्घ्य की परंपरा

भारत के ऋषि-मुनियों ने सूर्य को जल अर्पित करने की इस प्रक्रिया को ‘अर्घ्य’ नाम दिया और इसके सही तरीके का वर्णन भी किया. उनका मानना था कि यदि अर्घ्य सही विधि से दिया जाए तो शरीर, मन और आत्मा को अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है.

सूर्य को अर्घ्य देने का सही तरीका

1. सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र का उपयोग सबसे श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि तांबा ऊर्जा प्रवाह को सक्रिय करता है.

2. अर्घ्य देने का सर्वोत्तम समय सूर्योदय के समय होता है. चाहें तो सूर्योदय के एक घंटे के भीतर भी अर्घ्य दिया जा सकता है.

3. जल में लाल चंदन, सिंदूर और लाल फूल मिलाना शुभ माना जाता है.

4. अर्घ्य देते समय सूर्य की किरणें बहुत तेज न हों, बल्कि हल्की हों, इसका ध्यान रखना चाहिए.

5. अर्घ्य के दौरान ‘ऊं सूर्याय नमः’ मंत्र का 11 बार जप करना लाभकारी माना गया है.

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6. इसके बाद सूर्य की ओर मुख करके तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए.

7. अर्घ्य देते समय गायत्री मंत्र का जप भी अत्यंत शुभ माना जाता है.

8. सूर्य पूर्व दिशा से उदित होता है, इसलिए अर्घ्य पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही अर्पित करना फलदायी होता है.

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