
दिवाली के मौके पर सद्गुरु ने अपना संदेश साझा किया, जिसमें उन्होंने लोगों से अपने अंदर की रोशनी प्रज्वलित करने का आग्रह किया. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर सद्गुरु ने कहा, "अंधेरे का मिटना प्रकाश की प्रकृति है. मेरी कामना है कि आपका आंतरिक प्रकाश बढ़ता रहे — ताकि वह आपको और आपके संपर्क में आने वाली हर चीज को रोशन कर सके. आपको एक शानदार दिवाली की शुभकामनाएं. प्रेम और आशीर्वाद."
प्रकाश के उत्सव के महत्व को समझाते हुए सद्गुरु ने कहा, "केवल प्रकाश में ही हम बेहतर देख सकते हैं. तो जब तक हम बेहतर नहीं देखते, क्या हम बेहतर चल सकते हैं, क्या हम बेहतर दौड़ सकते हैं, क्या हम अपने जीवन में कुछ भी बेहतर कर सकते हैं?"
सद्गुरु ने कहा, "हमें बेहतर देखने की जरूरत है. बेहतर देखना केवल हमारी आंखों से नहीं होता. अपने मन में, हमें स्पष्टता से देखना चाहिए… अगर हम चीज़ों को स्पष्ट नहीं देखते, तो हम कहीं नहीं पहुंच रहे हैं."
दिवाली के पीछे का वैज्ञानिक कारण
त्योहार के पीछे के वैज्ञानिक कारण पर बोलते हुए सद्गुरु ने बताया कि दिवाली उत्तरी गोलार्ध में मौसमी बदलावों की समझ से आई है. उन्होंने कहा, "ये बातें इस गहरी समझ से आती हैं कि सर्दियों में, जब धरती का उत्तरी भाग सूर्य से दूर हो जाता है, ठंड बढ़ जाती है, पर्याप्त धूप नहीं मिलती… तो यह ऐसा समय होता है जब इंसान उदास होने लगते हैं, न केवल मानसिक रूप से, बल्कि शारीरिक रूप से भी, एक तरह का अवसाद आता है."

उन्होंने आगे कहा, "हर चीज धीमी पड़ने लगती है. तो दीपक जलाना इसका एक हिस्सा है. हम कई तरह के दीपक जला सकते हैं, लेकिन अरंडी के तेल से दीपक जलाना सबसे अच्छा है, क्योंकि इसमें धुएं का स्तर कम होता है."
निडर, लालच रहित और अपराधबोध से मुक्त बनने का संदेश
भारतीय संस्कृति और त्योहारों के अधिक गहरे उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए सद्गुरु ने कहा कि यह एक ऐसी सभ्यता से आया है जो ऐसे इंसान पैदा करना चाहती है जो निडर, लालच रहित और अपराधबोध से मुक्त हों. उन्होंने समझाया कि डर इसलिए पैदा होता है क्योंकि व्यक्ति कुछ ऐसी कल्पना करता है जो अभी तक नहीं हुआ है और जब किसी व्यक्ति का अपनी इंद्रियों पर अच्छा नियंत्रण होता है, तो वह निडर हो जाता है.
सद्गुरु ने कहा, व्यक्ति खुद को समावेशी बनाकर अपराधबोध से मुक्त हो जाता है; जब हम समावेशी होते हैं, तो हम कभी कुछ गलत नहीं करेंगे, और इसलिए कोई अपराधबोध नहीं होगा. इसी तरह, हम लालच रहित तब होते हैं जब हम खुद को इस तरह से बनाते हैं कि बस यहाँ बैठे हुए, हम तृप्त महसूस करें - तब बेहतर बनने के लिए कुछ और करने की आवश्यकता नहीं रहती.

उन्होंने निष्कर्ष में कहा, "आप निडर हैं… आप अपराधबोध से मुक्त हैं और आप लालच रहित हैं… अगर ऐसा होता है, तो हमने एक अद्भुत मानवता का निर्माण किया है. मानवता का मतलब कोई एक या सभी लोग नहीं होते. इसका मतलब ‘स्वयं’ से है. अगर यह शानदार बन जाता है, तो बाकी हर चीज शानदार हो जाती है." सद्गुरु ने इस दिवाली पर लोगों से अपनी आंतरिक ज्योति जलाने का आग्रह किया.