Hasta Rekha Shastra: अक्सर आपने देखा होगा कि हस्त रेखा शास्त्र के जानकार हाथ की लकीरों को देखकर इंसान का भविष्य बता देते हैं. लेकिन क्या आपने कभी किसी से सुना है कि हमारी हथेली पर लक्ष्मी, पितृ सहित ग्रहों और देवी-देवताओं का भी वास होता है. सामुद्रिक शास्त्र में हथेली पर इनका निश्चित स्थान भी निर्धारित किया गया है. आइए आज आपको बताते हैं कि हथेली के किन हिस्सों में पितरों और देवी-देवताओं का वास होता है और इनका क्या महत्व है.
हथेली पर कहां बैठती हैं मां लक्ष्मी?
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, इंसान की हथेली के अग्र भाग में देवी लक्ष्मी का स्थान होता है. ज्योतिषविद ऐसा कहते हैं कि हमें रोज सुबह ब्रह्म मुहूर्त में दोनों हथेलियों को जोड़कर अग्र भाग का दर्शन करना चाहिए. ऐसा करने वालों पर हमेशा मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और जीवन में कभी आर्थिक समस्याएं नहीं आती हैं.
हथेली पर कहां होती है सरस्वती?
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, हथेली के मध्य हिस्से यानी मिडिल में ज्ञान की देवी मां सरस्वती का वास होता है. इसलिए जब भी मां लक्ष्मी को कुछ अर्पित करना हो तो हमेशा हथेली के बीच में रखकर ही अर्पित करना चाहिए.
ब्रह्म देव और ब्रह्म तीर्थ का स्थान
हथेली के निचले हिस्से यानी कलाई के मणिबंध से ठीक ऊपर ब्रह्म देव का स्थान होता है. जब कोई व्यक्ति हाथ में गंगाजल लेकर उसे ग्रहण करता है तो वो सीधे ब्रह्मा जी के चरणों से होते हुए शरीर में दाखिल होता है. यहां से ग्रहण किया गया जल हमारे शरीर और आत्मा दोनों को शुद्ध कर देता है. इसके अलावा, अंगूठे के नीचे ब्रह्म तीर्थ भी होता है. पूजा-पाठ या धार्मिक अनुष्ठान के बाद विशेष अर्घ्य ब्रह्म तीर्थ से ही किए जाते हैं.
देव तीर्थ कहां होता है?
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, उंगलियों के अग्रम भाग यानी ऊपर वाले हिस्से पर देवतीर्थ बताया गया है. ऐसा कहा जाता है कि यह वही स्थान होता है, जहां से अर्पित किया गया जल सीधे देवी-देवताओं को लगता है.
पितृ तीर्थ कहां है?
हाथ के अंगूठे और तर्जनी उंगली के बीच पितृ तीर्थ बताया गया है. ज्योतिषविद कहते हैं कि अंगूठे और तर्जनी उंगली के बीच वाले स्थान से ही पितरों को जल अर्पित किया जाता है. पितृ तीर्थ से अर्पित किया गया जल सीधे हमारे पूर्वजों तक पहुंचता है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, हथेली केवल रेखाएं नहीं, बल्कि देवत्व का प्रतीक भी मानी जाती है. हथेली के विभिन्न उभरे स्थानों को देवी-देवता और ग्रहों का आसन कहा गया है. इन्हीं के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव, भाग्य और जीवन को समझा जाता है.