Shani Pradosh Vrat: धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष व्रत सबसे शुभ माना जाता है. हर महीने में दो बार प्रदोष व्रत रखा जाता है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष. इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है. किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है. इस महीने का प्रदोष व्रत शनिवार, 5 नवंबर को पड़ रहा है. इसलिए इसे शनि प्रदोषव्रत कहते हैं.
प्रदोष व्रत महत्व (Shani pradosh vrat importance)
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. शनि प्रदोष व्रत करने वालों को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है. यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि जो लोग संतानहीन हैं, उनको खासतौर से शनि प्रदोष व्रत करना चाहिए. भगवान शिव की कृपा से संतान की प्राप्ति भी होती है. साथ ही, इस व्रत को करने से भक्त शनि दोष से भी छुटकारा पाते हैं.
शनि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त (Shani pradosh vrat shubh muhurat)
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस महीने का पहला शनि प्रदोष व्रत 05 नवंबर को रखा जाएगा. इस बार प्रदोष व्रत 5 नवंबर, शनिवार को शाम 05 बजकर 06 मिनट से शुरू होकर 06 नवंबर, रविवार को शाम 04 बजकर 26 मिनट तक रहेगा. प्रदोष व्रत के दिन शिव जी की पूजा का समय शाम को 06 बजकर 03 मिनट से शुरू होकर रात 08 बजकर 35 मिनट तक रहेगा.
प्रदोष व्रत पूजन विधि (Shani pardosh vrat pujan vidhi)
प्रदोष व्रत करने के लिए सबसे पहले आप त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं. स्नान आदि करने के बाद आप साफ़ वस्त्र पहन लें. उसके बाद आप बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें. इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है. पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफ़ेद रंग का वस्त्र धारण करें.
आप स्वच्छ जल या गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें. अब आप गाय का गोबर ले और उसकी मदद से मंडप तैयार कर लें. पांच अलग-अलग रंगों की मदद से आप मंडप में रंगोली बना लें. पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं. भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं.
प्रदोष व्रत के दिन करें ये उपाय
1. संतान प्राप्ति के लिए
यदि आप संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं तो शनि प्रदोष व्रत के दिन शिव मंदिर में शिवलिंग पर 11 फूल और 11 बेलपत्र से बनी माला अर्पित करें. हर शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाएं और शनि मंत्र का जाप करें.
2. आर्थिक समस्याओं का समाधान
शनि प्रदोष के दिन दूध लेकर भगवान शिव के मंदिर में दान करें. इस उपाय को करने से घर में धन वृद्धि होगी और आय के नए रास्ते खुलेंगे.
3. वैवाहिक जीवन से दूर करें परेशानी
वैवाहिक जीवन में अगर कोई परेशानी चल रही है तो शनिवार के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें. फिर काली गाय के माथे पर कुमकुम से तिलक लगाएं. इससे आपके दांपत्य जीवन में खुशियां भर जाएंगी.
प्रदोष व्रत कथा (Shani pradosh vrat katha)
स्कंद पुराण की कथा के अनुसार, पुराने वक्त की बात एक गांव में गरीब विधवा ब्राह्मणी और उसका एक पुत्र रहा करते थे . जो भिक्षा मांग कर अपना भरण-पोषण करते थे. एक दिन वह दोनों भिक्षा मांग कर वापस लौट रहे थे तभी उन्हें अचानक नदी के किनारे एक सुन्दर बालक दिखा. विधवा ब्राह्मणी उसे नहीं जानती थी. की वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार, धर्मगुप्त है. और उस बालक के पिता विदर्भ देश के राजा है ,जो की युद्ध में के दौरान मारे गए थे और उनके सारे राज्य पर दुश्मनों ने कब्जा कर लिया था.
जिसके बाद पति के शोक में धर्मगुप्त की माता का भी निधन हो गया, और अनाथ बालक को देख ब्राह्मण महिला को उसपर बहुत दया आई और वह उस अनाथ बालक को अपने साथ ले आई और अपने बेटे के सामान ही उस बालक का भी पालन-पोषण करने लगी और फिर एक दिन बुजुर्ग महिला की मुलाकात ऋषि शाण्डिल्य से हुई , उन्होंने उस बुजुर्ग महिला और दोनों बेटों को प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी, और इस प्रकार दोनों बालकों ने ऋषि के द्वारा बताए गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने अपना व्रत सम्पन्न किया जिसके कुछ दिन बाद ही दोनों बालक जंगल में सैर कर रहे थे तभी उन्हें दो सुंदर गंधर्व कन्याएं दिखाई दी .
जिनमें से एक कन्या जिसका नाम अंशुमती था उसे देखकर राजकुमार धर्मगुप्त आकर्षित हो गए . और फिर गंधर्व कन्या अंशुमती और राजकुमार धर्मगुप्त का विवाह सम्पन्न हो गया. जिसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने पूरी लगन और मेहनत से दोबारा गंधर्व सेना को तैयार किया, और अपने विदर्भ देश पर वापस लौटकर उसे हासिल कर लिया. और सब कुछ हासिल होने के बाद धर्मगुप्त को यह ज्ञात हुआ की आज उसे जो कुछ भी हासिल हुआ है वो उसके द्वारा किए गए प्रदोष व्रत का फल है. उसके बाद से प्रदोष व्रत रखने की मान्यता है.