पितृपक्ष का समय, पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का समय माना गया है. इसलिए शास्त्र कहते हैं कि, ये समय ऐसा होना चाहिए कि जब मनुष्य का मन और कर्म पूर्वजों को याद करने और उनसे आशीर्वाद पाने के लिए केंद्रित रहे. तब सांसारिक उत्सव और अन्य क्रिया-कलापों से ये नियम टूट सकता है इसलिए इसलिए विवाह, नया व्यवसाय, नया घर आदि कार्य टाले जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार इस पक्ष में यज्ञ, तर्पण, पिंडदान और दान जैसे कार्य प्रमुख होते हैं. जैसे किसी परिवार में शोक या पुण्यतिथि पर हंसी-ठिठोली या उत्सव नहीं किए जाते, उसी तरह इस काल में भी बड़े उत्सवों से परहेज़ रखा जाता है. यह भी माना जाता है कि पितरों का आशीर्वाद ही हमारे सभी शुभ कार्यों की सफलता का मूल है. अगर हम उनके सम्मान को प्राथमिकता दें, तो वे स्वयं हमें जीवन के हर शुभ कार्य में आशीष देते हैं.
पितृपक्ष को क्यों मानते हैं अपशकुन?
कुछ लोग पितृ पक्ष को 'अपशकुन' जैसा मानने लगे हैं. यह धारणा गलत है. शास्त्र कहीं भी यह नहीं कहते कि पितृ पक्ष बुरा है. वह केवल यह कहते हैं कि इस समय हमें अपनी ऊर्जा और संसाधन पितरों की स्मृति में लगानी चाहिए. यह सोचना भी गलत है कि पितृ हमारी खुशी या प्रसन्नता से नाराज़ हो जाते हैं. वे तो चाहते हैं कि उनकी संतान सुखी और समृद्ध हो. बात केवल इतनी सी है कि पितरों के लिए समर्पित कर्म करते हुए मन और विचार उनके लिए निर्धारित कर्म में लगा रहे.
ज्योतिष और पांडित्य की जानकारी रखने वाले ज्योतिषि मनीष मिश्र बताते हैं कि, असल में पितृ पक्ष एक परंपरा है जो अनुशासन का महत्व भी सामने रखती है. वर्ष भर में बारह मास हम अपने लिए जीते हैं, त्यौहार मनाते हैं. लेकिन कम-से-कम पंद्रह दिन ऐसे हों जो केवल पितरों और उनकी स्मृति के लिए हों, यही इस पर्व का वास्तविक उद्देश्य है.
गीता भी कर्म को बताती है महान
गीता कहती है—“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.” कर्म ही प्रधान है. पितृ पक्ष हमें उस कर्म की दिशा दिखाता है जिसमें हम अपने पूर्वजों का स्मरण कर आभार व्यक्त करें.
ज्योतिषी मनीष मिश्र बताते हैं कि इसकी कथा महाभारत में भी आती है. महाभारत में कर्ण को महादानी कहा गया है. उन्होंने जीवनभर सोना, रत्न, भूमि, वस्त्र और जो कुछ भी उनके पास था, सब दान कर दिया. यहां तक कि मृत्यु से पहले अपने शरीर का कवच-कुंडल तक दान कर दिया. इसलिए उन्हें 'दानवीर कर्ण' और 'महादानी' के रूप में स्मरण किया जाता है.
कर्ण की कथा से समझिए पितृपक्ष का महत्व
लेकिन जब कर्ण की मृत्यु के बाद उनका स्वर्गारोहण हुआ, तो उन्हें वहां अन्न और जल का भोजन नहीं मिला. उनके लिए केवल स्वर्ण और रत्नों से बना हुआ भोजन उपस्थित था. आश्चर्यचकित होकर कर्ण ने देवताओं से पूछा- मुझे अन्न और जल क्यों नहीं मिल रहा? देवताओं ने उत्तर दिया, हे कर्ण! तुमने जीवनभर स्वर्ण और रत्न बांटे, किंतु कभी अपने पितरों के नाम से अन्न और जल का तर्पण नहीं किया. इसलिए तुम्हें वही प्राप्त हो रहा है जो तुमने दान किया.'
यह सुनकर कर्ण को गहरा दुख हुआ. तब इंद्र ने उन्हें अवसर दिया और 15 दिन के लिए पृथ्वी पर लौटने की अनुमति दी, ताकि वे अपने पितरों के नाम से अन्न और जल का तर्पण कर सकें.
यही कालखंड आगे चलकर पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहलाया. माना जाता है कि इस समय पितरों के लिए अन्न, जल, तिल और कुश से किया गया तर्पण अत्यंत फलदायी होता है. पितृ पक्ष बुरा नहीं है, बल्कि यह तो श्रद्धा, संयम और कृतज्ञता का पर्व है. इस दौरान नए कार्यों को टालना केवल अनुशासन और परंपरा है, ताकि हमारी भावनाएं पितरों की स्मृति पर केंद्रित रहें.