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Paryushana Mahaparva 2025: पर्युषण को क्यों कहते हैं पर्वों का राजा, जानें जैन समाज में क्या है इसका महत्व

पर्युषण पर्व का सबसे महत्वपूर्ण क्षण होता है- क्षमापना. अंतिम दिन जैन समुदाय के लोग 'मिच्छामि दुक्कड़म्' कहकर एक-दूसरे से विनम्रता से क्षमा मांगते हैं. इसका अर्थ होता है कि यदि जाने-अनजाने में किसी को ठेस पहुंची हो तो उसके लिए क्षमा कर दें.

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पर्यूषण पर्व 2025 (Photo: Getty Images)
पर्यूषण पर्व 2025 (Photo: Getty Images)

Paryushan Mahaparva 2025: 21 अगस्त से जैन धर्म का महत्वपूर्ण 10 दिवसीय पर्व पर्युषण शुरू हो रहा है. जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय दिगंबर और श्वेतांबर में इस पर्व का विशेष महत्व है. श्वेताबंर में यह पर्व 8 दिन मनाने की परंपरा है. जबकि दिगंबर संप्रदाय के लोग यह पर्व 10 दिन मनाते हैं. इस बार ये त्योहार गुरुवार, 21 अगस्त से शुरू हो रहा है. आइए जानते हैं इस 10 दिवसीय पर्व को लेकर जैन धर्म के लोगों में क्या मान्यताएं हैं और यह कैसे मनाया जाता है.

पहला दिन- पहला दिन अपने भीतर क्रोध को पैदा न होने देने पर आधारित है. क्रोध का भाव उत्पन्न हो भी, तो उसे धैर्य और शांति से नियंत्रित करना चाहिए. 

दूसरा दिन- व्यवहार में मधुरता और पवित्रता लाने की कोशिश की जानी चाहिए. इस दौरान मन में किसी के प्रति द्वेष या घृणा का भाव नहीं रखना चाहिए.

तीसरा दिन- इस दिन इस बात पर विचार करें कि अपने वचनों को पूरा करना और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना महत्वपूर्ण है.  

चौथा दिन- इस दिन  कम बोलने की कोशिश करना चाहिए और जो भी बोलें उसमें अपनी वाणी पर संयम रखने का प्रयास करें. 

पांचवें दिन- मन में किसी भी प्रकार की लालच या स्वार्थ नहीं रखना चाहिए, निस्वार्थ भाव से जीना चाहिए. 

छठा दिन- मन पर नियंत्रण रखते हुए संयम और धैर्य से काम लेना चाहिए.  

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सातवें दिन- इस दिन मन के नकारात्मक विचारों को दूर करने के लिए आत्म-संयम और तपस्या करनी चाहिए.  

अष्टमी दिन- इस दिन जरूरतमंद लोगों को ज्ञान, भोजन आदि महत्वपूर्ण चीजों दान करना चाहिए.

नौवें दिन- किसी भी वस्तु के लिए स्वार्थ नहीं रखना चाहिए, निस्वार्थ भाव से जीवन जीना चाहिए.  

दसवें दिन- इस दिन अच्छे गुणों को अपनाना और अपने आप को पवित्र और शुद्ध रखना चाहिए. 

पर्युषण पर्व का महत्व

जैन समाज के लिए पर्युषण पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने और जीवन को सही दिशा देने का अवसर भी है. इसलिए इसे पर्वों का राजा कहा जाता है. पर्युषण शब्द का अर्थ है- अपने भीतर ठहरना. यानी इंद्रियों और इच्छाओं को संयमित कर आत्मचिंतन करना. इन दिनों में जैन समुदाय उपवास, स्वाध्याय, प्रार्थना, सामायिक और ध्यान जैसी साधनाओं में लीन रहते हैं.  इसका उद्देश्य है– क्रोध, अहंकार, लोभ, मोह जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों को त्यागकर करुणा, क्षमा और आत्मसंयम को अपनाना.

पर्युषण पर्व का सबसे महत्वपूर्ण क्षण होता है- क्षमापना. अंतिम दिन जैन समुदाय के लोग 'मिच्छामि दुक्कड़म्' कहकर एक-दूसरे से विनम्रता से क्षमा मांगते हैं. इसका अर्थ होता है कि यदि जाने-अनजाने में किसी को ठेस पहुंची हो तो उसके लिए क्षमा कर दें. पर्युषण पर्व जैन समाज में न केवल धार्मिक साधना है, बल्कि मानवीय मूल्यों को गहराई से जीने की प्रेरणा भी है. यह पर्व सिखाता है कि सच्चा धर्म वही है, जो दूसरों के लिए करुणा और अहिंसा का भाव जगाए.

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