मां दुर्गा की आराधना का विशेष पर्व शारदीय नवरात्रि अब समाप्ति की ओर है. एक तरफ इस पर्व की आध्यात्मिक आस्था और दूसरी ओर इन दिनों का सकारात्मक प्रभाव... लिहाजा चौमासे के बावजूद नवरात्रि का पर्व कुछ शुभ शुरुआत के लिए अच्छा माना जाता है. इसलिए आप देखते होंगे कि नवरात्र में पूजन कर गृह प्रवेश कराया जाता है, दुकान-मकान के लिए पगड़ी (टोकन मनी) देनी हो तो इसके लिए भी शुभ समय माना जाता है, इसके साथ ही सबसे अच्छा समय इन दिनों वाहन खरीदने को लेकर माना जाता है.
नवरात्रि से लेकर धनतेरस-दीपावली तक गाड़ियों के शोरूम गुलजार रहते हैं. लोग बड़ी संख्या में वाहन खरीदने में पहुंचते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वाहन खरीदने के बाद सनातन परंपरा में उसकी पूजा की मान्यता क्यों है? क्यों नई गाड़ी के नीचे नींबू-नारियल कुचले जाते हैं और नए वाहन को चुनरी क्यों बांधी जाती है?
दुर्गा सप्तशती से जुड़ा है कारण
इन सारे सवालों का जवाब श्रीदुर्गा सप्तशती से जुड़ा हुआ है. इसमें देवी दुर्गा के 108 नाम खुद महादेव शिव ने बताए हैं, नामों की इन्हीं कड़ी में जहां देवी दुर्गा को ब्राह्नी (ब्रह्ना की शक्ति, एक औषधि वनस्पति), महेश्वरी (शिव की शक्ति), ऐंद्री (इंद्र की शक्ति), वैष्णवी (विष्णु की शक्ति), चामुंडा. वाराही. लक्ष्मी, पुरुषाकृति, विमला, उत्कर्षिणी, ज्ञान, क्रिया, नित्या, बुद्धि, बहुत प्रेम करने वाली और आखिरी में सर्ववाहनवाहना, यानी सभी वाहनों की स्वामिनी कहा गया है.
श्लोक देखें...
ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा,
चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः!!
विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना॥
देवी दुर्गा का ही एक नाम, एक स्वरूप सर्ववाहनवाहना है, जिसमें वह सभी प्रकार के वाहनों की स्वामिनी हैं. इसलिए सभी प्रकार के वाहन देवी दुर्गा का ही रूप माने जाते हैं. आपने ध्यान दिया होगा कि ट्रक या बस के ड्राइवर्स अपने बस-ट्रक का बहुत शृंगार करते हैं. उन्हें काली चोटी, परांदा, चुनरी, लहरिया, फूल-माला आदि से सजाते हैं. इसके साथ ही वह काली स्वरूप का एक मुखौटा ट्रक या बस के आगे लगाते हैं. पीछे की ओर कीर्तिमुख नाम के दैत्य की तस्वीर लगाकर 'बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला' लिखते हैं.
क्यों ट्रक ड्राइवर्स ट्रक को पहनाते हैं चोटी-परांदा, और गजरा?
ट्रक या बस के इस शृंगार की वजह देवी दुर्गा और काली के ही स्वरूप से जु़ड़ी है. इसे लेकर महाभारत में भी एक प्रसंग है. जब श्रीकृष्ण अर्जुन का रथ हांकने के लिए बैठ रहे थे तो उससे पहले उन्होंने अर्जुन से देवी दुर्गा का ध्यान कराया था.
महाभारत में श्रीकृष्ण ने बताई थी वजह
अर्जुन को वह रथ खुद वरुण देव ने दिया था और उस पर रुद्रांश हनुमान भी सवार थे जो ध्वज के रूप में थे. अर्जुन ने पूछा कि युद्ध की इस वेला में अचानक देवी दुर्गा का ध्यान क्यों? आप मेरे साथ हैं, खुद हनुमान जी रथ पर विराज रहे हैं और यह रथ भी वरुण देव का दिया हुआ है, जिसे देवराज इंद्र ने विश्वकर्मा से खुद बनवाया था. तब श्रीकृष्ण ने उन्हें त्रिपुर के विनाश की घटना सुनाई.
त्रिपुर के विनाश में वाहन की भूमिका
वह कहते हैं कि जब महादेव को त्रिपुर का विनाश करने जाना था, तब वह एक दिव्य रथ पर सवार पर थे. रथ के पहिये बने सूर्य और चंद्र, देवगुरु बृहस्पति ने उन्हें इंद्रछत्र दिया. सूर्य ने घोड़े और नागलोक के सर्प रथ की खींचने वाली रस्सी बने. फिर भी उस रथ को वह गति नहीं मिली कि वह आकाश मार्ग पर जाकर ग्रहों की गति के साथ तालमेल कर ठीक उस समय त्रिपुर के सामने जा सके, जब वह एक सीध में आ जाएं.
क्या है जीवन में वाहनों का महत्व
तब महादेव ने देवी भगवती ललिता (जो दुर्गा का प्रधान स्वरूप हैं) का ध्यान किया. देवी भगवती ने प्रसन्न होकर रथ को काल की गति प्रदान की और वह रथ दुष्ट दलन में सक्षम हो गया. देवी खुद उस रथ पर शिव की आध्यात्मिक शक्ति के रूप में विराजमान हुईं और पिनाक धनुष पर चढ़ाए जाने वाले बाण की नोंक में समा गईं. त्रिपुर के विनाश के बाद देवी भगवती ने सभी देवताओं को दर्शन दिया. तब उन्होंने इस रहस्य को बताया कि संसार के सभी वाहन सिर्फ साधन नहीं हैं. अगर वाहन जीव-जंतु के रूप में है तो वह खुद जीवात्मा है और उसका आगे बढ़ने वाला हर एक कदम काल के आगे बढ़ने का संकेत है.
भूत-वर्तमान और भविष्य तीनों के एक साथ दर्शन कराता है वाहन
जैसे-जैसे वाहन आगे बढ़ता है, भूतकाल पीछे रहता जाता है, वर्तमान दिख रहा होता है और भविष्य भी नजर आ रहा होता है. इस त्रिआयामी दर्शन की एक साथ अनुभूति होने के कारण ही कोई भी वाहन त्रयंबक (शिव और दुर्गा दोनों का ही एक नाम) बन जाता है. अगर वाहन पहियायुक्त है तब तो उसे कालचक्र का ही प्रतीक मानना चाहिए. वह कालचक्र जो हर स्थिति और भाव में एक जैसा है. चलना ही उसका कर्म है. देवी से इस रहस्य को सुनकर शिवजी समेत सभी देवताओं ने उन्हें सर्ववाहनवाहना कहा और सभी वाहनों की स्वामिनी कहकर पुकारा. देवी भागवत पुराण में भी इसका जिक्र आता है.
इसलिए अर्जुन तुम भी उन्हीं देवी का ध्यान करो. इस तरह तुम्हारा यह रथ हर दिशा में निर्बाधगति से चलने के अधीन हो जाएगा. देवी काली के काल स्वरूप का यह अर्थ नकारात्मक शक्तियों की इस भीड़ में कई दैत्यों का विनाश तो खुद ही कर देगा और तुम्हारे सुरक्षा करेगा. क्योंकि सभी वाहन उसकी कालस्वरूप काली देवी का रूप हैं.
यह वजह है कि ड्राइवर्स बस और ट्रक को देवी की तरह सजाते हैं. उनका शृंगार करते हैं, फूल लगाते हैं और इस तभी रोज की यात्रा करते हैं.
इसके अलावा नींबू और नारियल का कुचलना एक तरह से बलि क्रिया है, जो नकारात्मक शक्तियों को दूर करने की एक पारंपरिक प्रक्रिया है. इसके जरिए कामना की जाती है कि इस वाहन से किसी का अहित न हो, यह वाहन चलाने वाले और सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों की अधिक से अधिक सुरक्षा करे. किसी का अनिष्ट न करे, 'सर्वे जना सुखिनो भवन्तु' की यह कामना ही, नए वाहन को खरीदने के बाद, चलाने से पहले पूजा करने का विधान और इसकी वजह यही है.