भारत भूमि संसार में अकेली ऐसी भूमि है जहां प्रकृति के निर्माण में शामिल पांचों तत्वों को ईश्वरीय तत्व का दर्जा मिला हुआ. यहां आकाश को ब्रह्न या परमपिता कहा गया है, भूमि को माता और देवी कहा गया है. अग्नि को ऊर्जा का देवता माना गया है. वायु भी देवताओं के श्रेणी में आकर पवनदेव कहलाते हैं और इसी तरह जल को वरुणदेव कहकर पुकारा गया है.
भारत की भूमि पर बहने वाली सभी नदियां और जल के सभी स्त्रोत वरुण देव का ही स्वरूप हैं. इसी तरह अपने जल से धरती के विशाल भू-भाग को सींच कर हर प्राणी की प्यास बुझाने वाली नदियां भी माता और देवी ही मानी जाती हैं. इन सभी नदियों में गंगा को सबसे ऊंचा दर्जा मिला हुआ है. देवी और मां के रूप में प्रतिष्ठित गंगा सिर्फ देवलोक से उतरने के कारण ही पवित्र नहीं कहलाईं बल्कि उनके साथ ऋषियों और मुनियों के वरदान भी जुड़े हैं. मान्यता है कि देवी को मिले ये वरदान उनमें स्नान करने वाले लोगों को भी मिल जाते हैं.
लोक आस्था में हैं गंगा नदी के कई नाम
हिमालय की गोद से निकलने के बाद उत्तर के मैदानों को सींचती हुई गंगा जब बंगाल की खाड़ी में गिरती है तो इस सफर के दौरान लोक आस्था उन्हें कई नामों से पुकारती है. यह नाम गंगा के जल की पवित्रता को और अधिक बढ़ाते हैं. गंगा स्नान का महत्व इसलिए भी है ताकि मनुष्य पानी की तरह सरलता और तरलता की को सीखे.उसका सारा अभिमान नदी की धारा के साथ बह जाए और जब वह घाट से बाहर निकलकर सामाजिक जीवन में पहुंचे तो एक उत्कृष्ट मनुष्य बनकर पहुंचे. गंगा की यही शिक्षाएं उनके कई नामों से जुड़ी हैं. पुराण कथाओं से लेकर लोककथाओं तक में गंगा की महिमा अलग-अलग नामों से बताई गई हैं.
ब्रह्मकन्या, विष्णुपदी, जटाशंकरी... पुराणों में है गंगा की महिमा
ब्रह्मा के कमंडल से निकलने के कारण उन्हें ब्रह्म कन्या कहा गया, भगवान विष्णु के चरणों में निवास के कारण वह विष्णु पदी कहलाती हैं. हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका एक नाम हिमसुता भी है तो देवताओं के स्वर्ग में बहने के कारण वह देवनदी भी पुकारी जाती हैं. तीनों लोकों में उनका धाराओं के बहाव के कारण वह त्रिपथगा बन जाती हैं और जब भगवान शिव उन्हें अपनी जटा में स्थान देते हैं तब गंगा जटाशंकरी कहलाती हैं. त्रिभुवन तारिणी, सुरसरिता, अमिसलिला, पुण्या जैसे कई नामों से पूजी जाने वाली गंगा की महिमा पुराणों में कई तरह से गाई गई है.
प्रयागराज स्थित विशालाक्षी शक्तिपीठ के अध्यक्ष स्वामी अखंडानंद देवनदी गंगा की महिमा बताते हुए बाबा तुलसी का संदर्भ लेते हैं. वह कहते हैं कि रामचरित मानस में एक जगह संत तुलसी ने लिखा है -
धन्य देस सो जहं सुरसरी,
धन्य नारि पतिव्रत अनुसरी..
यानी वह देश धन्य है जहां देवनदी गंगा बहती हैं और जहां पतिव्रत का अनुसरण करने वाली स्त्रियां निवास करती हैं. वह कहते हैं कि, गंगा एक जीवंत देवी शक्ति के रूप में ममतामयी मां के रूप में एवं परमार्थ के रूप में चारों ओर मौजूद हैं. भगवती गंगा हरिस्वरूपा भी हैं, हरिभक्त भी हैं और हरिभक्त प्रिया भी हैं.
‘शब्द कल्पद्रुम’ में ‘गंगा’ शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है -
‘गमयति प्रापयति ज्ञापयति वा भगवत्पदं या शक्ति: सा गंगा’.
गंगा सभी नदियों में श्रेष्ठ है. इसलिए भगवान कृष्ण ने गीता में खुद को गंगा नदी कहा है -
‘स्त्रोत सामस्मि जान्हवी’ (श्रमद भगवद्गीता)
गंगा भारत की पवित्र नदी है. इस नदी का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है–
‘इमं मे गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि’. (ऋग्वेद)
‘सतयुग में सभी तीर्थों का प्रभाव रहता है ,त्रेता में पुष्कर का विशेष महत्व हो जाता है ,द्वापर में कुरुक्षेत्र का और कलयुग में गंगाजी का विशेष महात्म्य है.’ (बृहन्नारदीय पुराण)
गंगा ब्रह्मा के कमंडलु का जल, विष्णु का चरणोदक एवं शिव की जटाओं में स्थित पावन रसामृत है. गंगा में दो गुणधर्म हैं गति और शब्द. यानी गंगा में गति ब्रह्मा तथा शब्द ब्रह्म का निवास रहता है. जिस किसी भी प्रवाह में ये दो तत्व हमेशा रहते हों, वह गंगा है.
कैसे धरती पर लाई गंगा देवी गंगा?
गंगा का भारत भूमि पर अवतरण कोई सामान्य बात नहीं है, बल्कि इस अमृतसुधा को धरती पर लाने में कई महात्माओं के कई हजार वर्षों की तपस्या का फल लगा हुआ है. पुराण कथाओं में दर्ज है कि राजा सगर के साठ हजार पुत्र जो महर्षि कपिल के श्राप से भस्म हो गए थे, उनकी अकाल मृत्यु और मृत आत्माओं की शांति के लिए गंगा को धरती पर लाना जरूरी हो गया था.
पहले तो सगर ने ही इसके लिए तपस्या की, फिर उनके बाद राजा अंशुमान ने 32000 वर्षों तक, फिर राजा दिलीप ने भी 30000 वर्षों तक और इसके बाद राजा भगीरथ ने 1000 वर्षों तक की कठोर साधना की और उनके तप के फलस्वरूप गंगा को धरती पर लाए हैं. राजा भागीरथ ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए 1 वर्ष तक दाहिने पैर के अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या की थी. इसके परिणाम स्वरूप भगवान शिव गंगा को मस्तक पर धारण करने हेतु तैयार हो गए थे. श्रीवाल्मीकि रामायण में राजा भगीरथ को ‘नरश्रेष्ठ’ शब्द से संबोधित किया गया है.
गंगा अवतरण की तिथि है गंगा दशहरा
गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की तिथि उस समय मानी गई है जब सूर्य की किरणों से जीव जंतु त्रस्त हो रहे थे. ज्येष्ठ मास में सूर्य के किरणों की प्रखरता से सभी परिचित हैं. इस मास के शुक्ल पक्ष की हस्त नक्षत्र युक्त दशमी गंगावतरण "की तिथि है. इस तिथि पर गंगा जी में स्नान दान और संकल्प करने से ‘दसविध’ पापोंका नाश होता है. इस कारण इस पावन पर्व को प्रसिद्धि दसविध पापों का हरण करने वाली ‘गंगा दशहरा ’ के रूप में है.
ब्रह्मपुराण में दर्ज है-
ज्येष्ठ मासि सिते पक्षे,
दशमी हस्त संयुता.
हरते दश पापानि,
तस्मादं दशहरा स्मृता..
दस पाप ये बताए गए हैं–
पहला- कायिक
1.बिना दी हुई वस्तु को हड़प लेना.
2. अविहित हिंसा करना.
3. पर स्त्रियों से अवैध संबंध रखना.
दूसरा- वाचिक
4. कठोर वाणी बोलना.
5.असत्य भाषण करना.
6. चुगलखोरी करना
7. अनर्गल वार्तालाप करना.
तीसरा- मानसिक
8. पराए धन का लालच आना.
9.मन ही मन किसी के विरुद्ध अनिष्ट चिंतन.
10.नास्तिक बुद्धि रखना.
दस तरह के पाप हर लेती हैं देवी गंगा
ज्येष्ठ शुक्ल हस्त युक्त गंगा दशहरा पर्व पर गुड़ और सत्तू के दस पिंड , ‘ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा’ मंत्र से दान करने से, और दस–दस फल, पुष्प, नैवेद्य दीप, दशांश, धूप, दस ब्राह्मण को दस सेर तिल दान करने से मनुष्य दस जन्म के दस प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है.
संत कहते हैं की गंगा स्नान करने वाला त्रिदेव रूप हो जाते हैं. गंगा स्नान करने वाला गंगाजल में पैर रखते ही चरणों से गंगाजल का स्पर्श होने के कारण विष्णु रूप, गंगा में डुबकी लगाते ही सिर पर गंगा धारण करने से शिव रूप तथा गंगा स्नान करके घर लौटते समय कमंडल में गंगाजल धारण करने से ब्रह्म रूप हो जाता है.
गंगा हमारे देश की पहचान है, गंगा हमारी अस्मिता है हमारी धरोहर है और हमारी संस्कृति की पहचान है. गंगा दशहरा और पर्यावरण दिवस का संयोग भी एक ही दिन हो गया है और यह पर्व एक तरह से भारत के पर्यावरण के प्रति उसकी प्राचीन मनीषा की जागरूकता को ही रेखांकित करता है. जरूरत है कि हम अपनी संस्कृति को उसकी सही स्वरूप में और सही समझ के साथ अपनाएं.