महाराष्ट्र से निकलकर गणेश उत्सव अब पूरे देश का उत्सव बन चुका है. इसलिए देशभर में पंडाल और प्रतिमाओं की मौजूदगी देखने को मिल रही है. वैसे भी श्रीगणेश सबसे अधिक स्वीकृत देवता हैं और खास बात यह है कि उत्तर से दक्षिण तक वह अपने पहले नाम गणेश से ही जाने-पहचाने जाते हैं. ये और बात है कि अपनी मुद्राओं और अलग-अलग अवस्थाओं के कारण उनके कई अन्य नाम भी हैं, लेकिन समाज में उनका गणेश नाम सबसे अधिक प्रचलित है.
असल में गणेश देवता बाद में है, लेकिन पहले वह अपने आप में ही सर्वसमाज के प्रतीक हैं. वह हर उस वर्ग के प्रतिनिधि हैं, जो प्रकृति और जमीन से जुड़ा है. इसलिए वह प्रकृति पुत्र कहलाते हैं. उनका हाथी मुख उन्हें वन्यजीवन के संरक्षण का प्रतीक बनाता है तो साथ ही आदिवासी जनजाति का जुड़ाव नगरीय सभ्यता से कराता है. क्योंकि हाथी जंगली जंतु भी है और पालतू भी. उनका वाहन चूहा, खेतिहर भूमि और अनाज की मौजूदगी का प्रतीक है. क्योंकि चूहे का होना यह बताता है कि भंडार भरे हुए हैं और यह उन्नति का प्रतीक है. वह बिल खोदकर खेत की मिट्टी को कुरेदते हैं और जमीन को नर्म और उपजाऊ बनाते हैं.
खैर, यह बात रही गणेशजी की मौजूदगी और उनकी व्यापक स्वीकार्यता की, लेकिन जब गणेशजी की व्यापकता को और अधिक विस्तार करके देखें तो इसमें भी कई आयाम नजर आते हैं. इनमें से एक प्रमुख पहलू है स्वास्थ्य का. आयुर्वेद का और निरोगी जीवन का.
इसलिए गणपति पूजा का जुड़ाव आयुर्वेद से भी है. गणेश जी का स्मरण मंत्र सिर्फ उनकी पूजा या उपासना का मंत्र नहीं है. बल्कि यह अपने आप में रोग का निदान है. एक बार इस मंत्र को ध्यान से देखिए.
गजाननं भूत गणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥
'गजमुख वाले देवता, जिनकी भूत व अन्य गण भी सेवा करते हैं. जो कपित्थ कैंथ (कत्था) फल और जामुन का सेवन बहुत ही रुचि से करते हैं. देवी पार्वती (उमा) के पुत्र कहलाते हैं और शोक का निवारण करते हैं. ऐसे विघ्नेश्वर (श्रीगणेश) के चरण कमल में मेरा नमन है. मैं उनकी वंदना करता हूं.'
श्रीगणेश के प्रिय फल क्यों हैं कैंथा और जामुन
इस मंत्र में श्रीगणेश के प्रिय फलों के नाम कैथा और जामुन बताए गए हैं. प्रश्न उठता है कि श्रीगणेश इन दोनों फलों को क्यों पसंद करते हैं? इसका बहुत सूक्ष्म रहस्य है. इस रहस्य से पर्दा उठाती है महाभारत की वह कथा, जिसमें दर्ज है कि श्रीगणेश ने महर्षि वेदव्यास की प्रार्थना पर महाभारत के ग्रंथ का लेखन किया.
इस कथा में जिक्र आता है कि जब वह इस कथा को लिख रहे थे तो उनकी लेखनी एक बार भी नहीं रुकी. वह अपना कार्य समाप्त करके ही उठे.
इस बात को सीधे-सीधे समझें. गणेशजी ने जो कार्य किया वह मेहनत का था, लेकिन मेहनत शारीरिक श्रम की नहीं थी, बल्कि मानसिक और बौद्धिक थी. इसके साथ ही इस मेहनत को लंबे समय तक करते रहने के लिए वह एक ही मुद्रा में एक ही स्थान पर बैठे रहे.
कितने गुणकारी हैं कैथा और जामुन
अब गणेशजी की इस स्थिति की तुलना आज के कार्पोरेट दौर से करिए. जो लोग लिपिक, स्टेनो, कम्प्यूटर ऑपरेटर, कंटेट राइटर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, बैंकर या ऐसे किसी भी पेशे में हैं, जहां लंबे समय तक कुर्सी पर बैठे रहना आपकी जरूरत बन जाती है, वह इसे समझ सकते हैं. एक ही जगह पर बैठे रहने, शारीरिक श्रम न करने से शरीर की पाचक अग्नि धीमी पड़ती है. मोटापा बढ़ता है. मोटापा बढ़ने से कई तरह के रोग धीरे-धीरे घेरने लगते हैं.
इसीलिए गणेश जी की पसंद कैथ का फल और जामुन है. कैथा का फल गले के रोगों को दूर करता है, पेट के रोगों को ठीक करता है, इसके प्रयोग से हृदय की मांसपेशियां मजबूत होतीं हैं. वहीं जामुन भी बहुत गुणकारी है. जामुन डायबिटीज में बहुत लाभदायक है. जिन्हें मधुमेह है वह इसका खूब प्रयोग करते ही हैं. जामुन कसैला होता है, वजन घटाने में भी सहायक है. साथ में गले में इंफेक्शन, सर्दी खांसी, दमा में सहायता करता है.
इस तरह गणेशजी आयुर्वेद में भी उतने ही स्वीकार्य हैं, जितना वह अग्रपूजा के लिए.
आयुर्वेद से उनका एक और जुड़ाव योग की क्रिया के जरिए होता है. योग में एक गणेश क्रिया का जिक्र आता है, जिसे मूल शोधन या अश्वनी मुद्रा भी कहते हैं. इसे गणेशधौति भी कहते हैं. अगर किसी के आंत में मल चिपकता है, या ऐंठन होती है, जिसे मलबद्धता (मल का कड़ा होना) कहते हैं, इस तरह की परेशानी होती है तो इसका निदान गणेशधौति क्रिया द्वारा किया जाता है.