Sharad Purnima 2022: हिंदू धर्म में पूर्णिमा का बड़ा महत्व है. प्रत्येक महीने में एक पूर्णिमा तिथि होती है. साल में 12 पूर्णिमा तिथियां होती है. प्रत्येक पूर्णिमा तिथि अपने आप में विशेष महत्व रखती है. हर पूर्णिमा में पूजन करने का विधान भी अलग होता है. इसी तरह आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. शरद पूर्णिमा का महत्व ज्यादा इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है. इस दिन चंद्रमा की रोशनी सभी दिशाओं में फैली होती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणों से अमृत की वर्षा होती है. इसलिए इस दिन चंद्रमा को भोग में खीर अर्पित की जाती है. फिर उस भोग को खुले आकाश के नीचे रखा जाता है, जिससे की भोग में चंद्रमा की रोशनी पड़ सके. और जीवन अमृतमय हो सके.
शरद पूर्णिमा महत्व
इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इस दिन माताएं अपनी संतान की मंगल कामना और लंबी उम्र के लिए देवी-देवताओं का पूजन और उपवास करती हैं. इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के बेहद करीब आ जाता है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की किरणों अगर इंसान के शरीर पर पड़ें तो यह बहुत ही शुभ माना जाता है.
शरद पूर्णिमा के दिन इन बातों का रखें ध्यान
शरद पूर्णिमा पर केवल जल और फल ग्रहण करके ही उपवास रखने की कोशिश करें. अगर उपवास नहीं भी रख सकते हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन इस दिन सात्विक भोजन ही ग्रहण करने की सलाह दी जाती है. पूजा पाठ वाले दिन काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए. ऐसे में आप भी इस दिन काले रंग के कपड़ों की जगह अगर चमकदार सफेद रंग के वस्त्र पहनेंगे तो ज्यादा अच्छा होगा. शरद पूर्णिमा के दिन व्रत कथा आवश्य सुननी चाहिए.
शरद पूर्णिमा पूजन विधि
इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लें और फिर किसी पवित्र नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें. इसके बाद पूजा वाली जगह को साफ़ करें और वहां आराध्य देव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद उन्हें सुंदर वस्त्र, आभूषण इत्यादि पहनाएं. अब वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित करें और फिर पूजन करें. रात के समय गाय के दूध से खीर बनाए और फिर इसमें घी और चीनी मिलाकर भोग लगा दें. आधी रात में इस खीर को चांद की रोशनी रख दें. रात को खीर से भरा बर्तन चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें और सबको प्रसाद के रूप में बाटें. पूर्णिमा के दिन व्रत करके कथा अवश्य कहनी या सुननी चाहिए. कथा कहने से पहले एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें और दक्षिणा चढ़ाएं. इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा होती है.